शिल्पी की शादी माता-पिता ने उसकी मर्जी से मोहक से करवाई थी। शिल्पी एक बहुत ही पढ़ी लिखी और हाई सोसाइटी से संपर्क रखने वाली लड़की थी। उसे शुरू शुरू में साधारण दिखने वाला मोहक बहुत पसंद आया था लेकिन अब शादी के बाद उसे ऐसा लग रहा उसने मोहक से शादी करके गलती कर दी है। उसे लग रहा था कि उसने यह निर्णय लेने में जल्दबाजी कर दी।
हालांकि मोहक भी पढ़ा लिखा और समझदार था लेकिन वह सच्चा और सीधा इंसान था। दुनिया वालों की चालाकियां और चालबाजियां उसे समझ नहीं आती थी। वह जैसा अंदर से था वैसा ही बाहर से था। वह सब को अपने जैसा ही समझता था।
उसके सीधे पन को शिल्पी गंवार कहती थी। उसे लगता था कि मैं किसी गंवार से शादी कर ली है। उसके माता-पिता को ऐसा कुछ नहीं लगता था, उन्हें अपना दामाद बहुत पसंद था। हर वक्त मिलते समय वह उनके चरण स्पर्श करता था और बहुत ही आदर पूर्वक बात करता था। उन्होंने कभी उसे गुस्सा करते हुए नहीं देखा था।
शिल्पी उसकी इस बात से चिढ़ती थी कि वह वेटर और चपरासी से भी इतने आदर पूर्वक बात क्यों करता है। वे लोग तो हमारे अंडर काम करते हैं। वह हमसे नीचे हैं। लेकिन मोहक यह कहता था कि वे लोग भी तो इंसान हैं उन्हें भी इज्जत की जरूरत है।
शिल्पी के साथ मोहक जब भी किसी पार्टी में जाता तो वह शराब को हाथ भी नहीं लगाता था। शिल्पी उसे मॉडर्न सोसाइटी में ले जाने लायक नहीं समझती थी और शराब पीने में सबका साथ न देने के कारण उसे गंवार समझती थी।
वह खुद को कोसती थी कि उसने उसे क्यों पसंद करके शादी कर ली। ऐसे ही साधारण घर में रहना, साधारण कपड़े पहनना, साधारण खाना पसंद करना जैसे कि दाल चावल और मक्की की रोटी सरसों का साग इन सब बातों पर शिल्पी उसे चिढ़ती थी।
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ऐसे ही एक बार दोनों कहीं घूमने गए थे। तब मोहक ने शिल्पी को सरप्राइज देने के लिए एक ड्रेस खरीदी। जब उसने शिल्पी को वह ड्रेस उपहार में दी, तब शिल्पी ने उसे देखकर बेकार और घटिया ड्रेस कहकर फर्श पर फेंक दिया और अपने पति से कहा कि” तुम जैसे गंवार को क्या पता कि मुझे कौन सी ड्रेस पसंद आएगी आगे से कभी भी मेरे लिए कुछ मत खरीदना। लोकल मार्केट से खरीदी हुई ऐसी सस्ती ड्रेस मैं नहीं पहनती।”
तब मोहक बहुत दुखी हो गया था लेकिन फिर भी उसने शिल्पी से कुछ नहीं कहा और यही सोचा कि कोई बात नहीं शिल्पी का नेचर ही ऐसा है वह जल्दी गुस्से हो जाती है। गुस्सा उतरेगा तो अपने आप मेरी दी हुई ड्रेस पहन लेगी।
ऐसे ही कई बातों में शिल्पी उसका अपमान कर देती थी और वह चुपचाप सहन कर लेता था।
एक बार शिल्पी किसी छोटी सी बात पर पड़ोसन से लड़ बैठी। पड़ोसन उसे उल्टी सीधी सुनाने लगी तब शिल्पी ने भी उसे खूब खरी कोटी सुनाई और साथ ही उसने गालियां भी दी।
मोहक ने आकर बीच बचाव करके बड़ी मुश्किल से दोनों को चुप करवाया। अंदर जाकर शिल्पी मोहक पर फिर से बरस पड़ी।”तुम तो मुझे ही चुप करवा रहे थे, सामने वाली से तो तुमने कुछ नहीं कहा। क्या तुम्हें पता है कि उसने मुझे कितना कुछ सुनाया और फिर भी तुम उससे आप -आप कह कर बात कर रहे थे। ऐसी औरत को आप कहना क्या ठीक लग रहा था। वह लड़ाकू औरत तो तू कहने के भी लायक नहीं है।”
मोहक-“हां शिल्पी, मुझे पता है कि वह एक लड़ाकू औरत है वह और लोगों से भी कई बार लड़ चुकी है, लेकिन यह सोचो कि कीचड़ से कीचड़ को धोया नहीं जा सकता और लड़ाई के समय में उनके इस्तेमाल किए हुए शब्दों से ही पता चलता है कि कौन वास्तव में गंवार है? उसे औरत के शब्दों से ही पता चल रहा था कि वह कैसी औरत है और अगर तुम उसके साथ उसके जैसी होकर गालियां देने लगोगी तो दोनों में क्या फर्क रह जाएगा?”
इस बार शिल्पी के पास कोई उत्तर नहीं था क्योंकि मोहक की बात उसे बिल्कुल ठीक लगी और उसे लगने लगा कि सचमुच मैंने मोहक से शादी करके कोई गलती नहीं की है। वह वास्तव में बहुत ही अच्छा और सच्चा इंसान है। उसकी बातें सुनकर तो ऐसा लग रहा है कि गंवार मैं ही हूं। अब वास्तव में यह सोचना है कि गंवार सचमुच कौन है?”
शिल्पी का व्यवहार इस घटना के बाद बदल गया और वह मोहक का बहुत सम्मान करने लगी और उसे सच्चा प्यार करने लगी।
स्वरचित अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली
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