गंवार कहीं का- अमिता कुचया : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : जो मां बाप का ख्याल रखें, ताउम्र साथ निभाए तो ऐसे बेटे को क्या कहेंगे। आज्ञाकारी बेटा न •••पर ऐसा नहीं है समय के अनुसार जो हमें हाथ में मोटी गड्डी रखें वहीं लायक बेटा होता है, यही इस परिवार की कहानी है समीर अपने परिवार में तीसरे नंबर का बेटा है, वह पढ़ लिख न पाया।तो हमेशा से उसकी स्थिति रही है।

चाहे मां पिता जी के हाथ पैर दबाने हो,उनका ख्याल रखना हो वह ही हाजिर रहता या तब भी उसके पिताजी उसे गंवार ही कहते•••मां तब समझाती बेटा अपने पिताजी की बात दिल पर मत ले, वह हर परिस्थिति में तत्पर रहता ,तब भी वही स्थिति •••

आज दस दिन हो गए उसकी मां को अस्पताल में भर्ती हुए  ,वह मां बाप के साथ अडिग खड़ा है,लेकिन फिर भी उसकी पिता की नजरों में कोई कद्र नहीं है ••••

उसके परिवार में दो भाई, और एक बहन है जो अच्छे पढ़ लिख गए। और उसकी मां के पैरों में भी घुटने का दर्द रहता है…तब पर भी बिना किसी  की परवाह किए अपना फर्ज निभाता चला जा रहा है।उसकी मां घुटने के दर्द के कारण चल फिर नहीं पाती है।

उसका सबसे बड़ा भाई संजय, सुधीर और बहन सुनीता है। वो तो मां का लाडला था, जब भी उससे कोई गलती होती मां हमेशा पक्ष ले लेती ।

उसका पढ़ाई लिखाई में मन नहीं लगा। इसलिए वह पिता की आंखों का किरकिरी बना रहा। उसके  तीनों भाई बहन बहुत होनहार निकले थे।

उसकी पढ़ाई न कर पाने के कारण जनरल मर्चेंट की दुकान खुला दी गई। बहन सुनीता पढ़ लिखकर अपने ससुराल चली गई ।और संजय इंजीनियरिंग की पढ़ाई करके नार्वे में बस गया। वहीं साथ में नौकरी करने वाली क्रिस्टीना से  शादी कर ली। और संजय हर दूसरे साल ही मिलने आता पर भाभी….

नहीं , कहीं न कहीं उसकी मां नहीं चाहती कि वह घर आए। क्योंकि भाभी की छवि भारतीय नहीं थी।न सिर पर  पल्लू ,न बात करने का लहजा ,जो हम सबको अच्छा लगे।

बड़ा बेटा बहुत आग्रह करता पर वो नहीं मानते

वो वीडियो काल में बात करता। पैसे, सामान सब भेजता।

उसके माता-पिता से पुस्तैनी घर भी नहीं छोड़ा जाता है ,दूसरा भाई सुधीर हमेशा अपने पास बुलाता पर पापा का अपने घर से मोह नहीं छूट रहा था। वह बैंगलोर में मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करता है ,उसकी पत्नी भी सलवार सूट में रहती है।वह सिर चुन्नी से ढंक कर बात करती है ।वो भारतीय संस्कारों वाली थी।

फिर भी मां-पापा उनके पास नहीं जाना चाहते।हर महीने कुछ न कुछ उपहार भेजता रहता था। पिछले महीने बड़ा फ्लैट टीवी लगवाया।अभी कुछ दिन पहले पापा के लिए नया मोबाइल दिया।

कहते हैं न दूर के ढोल सुहावने होते हैं।

आज उसके पापा भाई बहनों पर प्यार उड़ेलते, फिर भी उसने कभी कोई शिकायत नहीं की। उन्हें लगता कि अकांउट  में पैसे आ जाने सब कुछ हो जाता है। यही उनकी सबसे बड़ी भूल थी।

आज जब अस्पताल से डिस्चार्ज होना था। तब दोनों बेटे नहीं थे। समीर ही हमेशा ख्याल रखता था। उन्हें उठाया, बैठाया करता।

यहां तक अस्पताल की दौड़ भाग वहीं कर रहा था।

एक  दिन डाक्टर साहब राउंड पर आए।तो उन्होंने कहा कि आपका बेटा तो बड़ी जी-जान से आपकी सेवा कर रहा । आपका पूरी तरह ध्यान रख रहा है।

फिर उन्होने अचानक ही पूछ लिया- आपके कितने बेटे हैं?

तो समीर के पिता जी बोले दो और है। पर  वो बाहर है।एक नार्वे में है  वो नहीं आ पाया ,दूसरा बैंगलोर में मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करता है ,वो भी नहीं आ पाया। क्योंकि उसका वहां सेमिनार चल रहा है।

फिर डाक्टर साहब ने कहा- शुक्र है… कम से कम आपका छोटा बेटा आपके पास है जो पूरा- पूरा ध्यान रख रहा है। अगर ये भी आपके न होता तो आपको कितनी परेशानी होती!

अब शर्मा जी को अपनी गलती का अहसास हुआ कि जिसे नकारा समझ रहे थे।

वो ही मेरे पास है। मैंने इसे अपने दिल से कितना दूर रखा। फिर उन्होने अपनी गलती सुधारी।जैसा है उसी रुप में समीर को मन से अपना लिया। गले लगा कर माफी मांगी। उससे कहा-” बेटा तुझे कितना नकारा समझता रहा हूं।पर तू एक टांग से हर परिस्थिति में मेरे साथ खड़ा रहा।

और मेरा सहारा बना। डाक्टर साहब ने आज मेरी आंखें खोल दी । मुझे माफ़ कर दे बेटा।तब समीर ने कहा -“पापा आप कैसी बातें कर रहे हैं, माफी मांगते हुए अच्छे नहीं लग रहे हैं।बस आप अपना आशीर्वाद बनाए रखियेगा ,इससे ज्यादा क्या चाहिए ।” उसी समय वह पैर छूने लगा।तब शर्मा जी उसे उठाया और सीने से लगा लिया।ये देखकर उसकी मां की आंखें भी खुशी से भर गई।

इस तरह पिताजी के मन की खटास कम हो गई। वे जो समीर को गंवार समझते थे,वह गंवार बेटा ही काम आया और मां के लिए इतनी दौड़ भाग की , नहीं तो कहां मैं इतनी भागदौड़ इस उम्र में कर पाता,वहीं बुरे वक्त में आज उनके साथ है।अब उन्हें समीर पर नाज है जो उनके साथ ही रह गया।

दोस्तों- पढ़ा लिखा होना अच्छा है, पर हाथ की उंगलियां एक जैसी नहीं होती, वैसे ही सब बच्चे एक से हो ये नहीं सोचना चाहिए। वैसे कम पढ़े-लिखे बेटे को गंवार समझकर उसकी उपेक्षा नहीं करना चाहिए। हर कोई ऊंचे पद पर पहुंचे।ये आवश्यक नहीं होता है। इसलिए उसे नजरंदाज मत कीजिए।ना ही तुलना कीजिए।

स्वरचित मौलिक और अप्रकाशित रचना

अमिता कुचया

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