hindi stories with moral : निम्न मध्यम वर्गीय संयुक्त परिवार में जन्म हुआ था गंगा का.. आठ भाई बहनों में बड़ी गंगा पिता से छोटे तीन भाइयों के बच्चों से भी बड़ी थी.. इसलिए सभी छोटे भाई बहन उसे दीदीया कह के बुलाते.. उस समय के हिसाब से चौदह वर्ष की उम्र में हीं गंगा की शादी हो गई थी..
भले ही लड़का विधुर था पर सिपाही था.. उम्र में बड़ा था.. सोलह साल में मां भी बन गई गंगा.. ससुराल में भी बड़ा परिवार था.. कमानेवाला सिर्फ गंगा के पति.. मायके में गंगा अपने छोटे भाई बहनों को संभालती थी क्योंकि अकेली मां गंगा से छोटे सात बच्चों को कैसे संभालती.. गंगा ने बचपन तो जिया हीं नहीं क्योंकि वो तो दीदीया थी.. अपरोक्ष रूप में मां छोटे भाई बहनों के लिए..
ससुराल में भी छोटे छोटे देवर ननद को संभालना सास ससुर दादी सास विधवा बुआ सास सबकी देखभाल गंगा के नाजुक कंधों पर था.. अभाव के कारण स्कूल का मुंह देखना नसीब नही हुआ.. पर दुखों और मुसीबतों ने गंगा को कम उम्र में हीं फौलाद सा मजबूत बना दिया था.. गंगा भी चार बच्चों की मां बन गई..
गेहूं की कटनी होती या धान उसनना या सरसो पिटना गंगा को मायके से बुलावा आ जाता.. बेचारी गंगा बच्चों के साथ आ जाती.. बदले में अपने और चचेरे भाइयों बहनों के उतरन बच्चों के लिए लाती.. थोड़ा चूड़ा सरसों साथ में बांध के लाती.. पति भी इतने सीधे थे की सास सारी तनखाह रख लेती अपनी बेटियों के दहेज जुटाने के लिए मगर गंगा और उसके बच्चे पाई पाई को तरस जाते..
समय बिता.. भाइयों की सरकारी नौकरी लग गई घर का काया पलट हो गया.. कच्चा घर पक्का छत दार मकान में बदल गया.. पर नही बदली गंगा की किस्मत..
भाईयों की शादी हुई.. बच्चे होने पर गंगा को बुलाया जाता.. जापा संभालने के लिए.. हलवा मसाला बनाना तेल मालिश करना जच्चा और बच्चा को.. बच्चे का पोतड़े धोना ये सारा काम दीदीया के जिम्मे था.. भाभियां शहरी थी इसलिए ये सब कुछ गंवार गंगा के हिस्से में आता..
बदले में कुछ पुरानी साड़ियां थोड़े पैसे नेग के और बचे हुए लड्डू.. आर्थिक स्थिति अच्छी हो जाने के कारण बहनों ने पढ़ाई भी की और रिश्ते भी अच्छे संपन्न परिवार में हुआ.. शादी में काम करने की जिम्मेवारी हमेशा की तरह दीदीया के हिस्से में आती क्योंकि भौजाईयां बड़े घर से आई थी.. बहने सजने संवरने में लगी रहती..
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पढ़ने में थोड़ा अटपटा या अजीब सा लगे मगर ये कड़वा सच है कभी कभी माता पिता भी बेटियों के दुख को अनदेखा कर देते हैं.. गंगा के मायके की जमीन रेलवे ने तीन गुने पैसे लेकर ले ली.. पैसा पिता के हाथ आया.. गंगा को उम्मीद थी पिता उसकी दयनीय दशा को देख कुछ सहायता जरूर करेंगे पर एक पैसा भी गंगा को नही दिया..
मायके में अपने बच्चों के साथ गंगा आती तो वही भाई बहन जिसे मां की तरह पाला था कभी प्यार से दो शब्द बोलते नही थे और उनके बच्चे देहाती और #गंवार# कह के मुंह बिचका लेते.. गंगा के बच्चे छोटी छोटी चीजों के लिए तरस जाते.. मां का दिल तड़प उठता..
गंगा अपने बड़े होते बच्चों की जरूरतों को देखते हुए पति से कहा इस महीने से पैसे मुझे दीजिएगा.. सास के कान में बात पड़ते हीं हंगामा हो गया.. पर गंगा इस बार अपने फैसले पर अडिग थी..
मायके से खबर आया पिता को लकवा मार दिया है डॉक्टर ने घर ले जाकर सेवा करने को कहा है.. भाइयों की नौकरी थी बहनों की गृहस्थी थी सब ने कहा दीदीया को बुला लो.. मायका औरत के जिंदगी की बहुत कमजोर कड़ी होती है जहां वो अपने मान अपमान भूल कर माता पिता की एक दर्द भरी आवाज पर दौड़ी चली जाती हैं..
गंगा ने जी जान से पिता की सेवा की.. इसी बीच दिल के दौरे से मां चल बसी..
भाई बहनों ने आपस में निर्णय कर तीन दिन में सब निपटा दिया.. गंगा मन मसोस कर रह गई.. क्योंकि गंगा के हिस्से में सिर्फ कर्तव्य आया था अधिकार नही.. दो महीने बाद पिता भी चल बसे…
गंगा के चारो बच्चों की शादी हो चुकी थी और वो अपने पैरों पर खड़े थे..
गरीबी में पले बढ़े बच्चे दुनियादारी जल्दी समझ लेते है..
गंगा के पति किडनी फेल होने से चल बसे..
गंगा का मायका अब बहुत संपन्न हो गया था पर दिल और सोच उतना हीं गरीब और निम्न स्तरीय था.. भतीजे और भतीजी की शादी में गंगा को सिर्फ काम करने वाली की जरूरत होने पर बुलाते और किसी के सामने जाने और परिचय कराने की इजाजत नहीं देते क्योंकि गंगा गंवार थी
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तथाकथित उच्च वर्गीय समाज में गंवार गंगा से परिचय कराकर अपनी बेइज्जती थोड़े न करवानी थी..न पहनने के ढंग के कपड़े न उच्च वर्गीय समाज के तौर तरीके थे गंगा के पास…भाई भतीजे अच्छे पोस्ट पर थे पर गंगा के बच्चों की शादी में कुछ पैसे भेज अपने कर्तव्य से मुक्त हो गए.. आठ भाई बहनों वाली दीदीया के बच्चों की इमली घोंटाई बिना मामा के हुई.. बिना भाई भतीजों के.. गंगा तड़प के रह गई..
गंगा को दिल का दौरा पड़ा डॉक्टर ने बाई पास सर्जरी करनेको बोला ..
बच्चों ने मामा को खबर किया क्योंकि गंगा के दिल में आशा की एक किरण अभी भी थी कि दीदीया की बीमारी की खबर से भाई बहन जरूर आयेंगे पर…
ऑपरेशन से एक दिन पहले हीं गंगा को दूसरा दौरा पड़ा.. बार बार दरवाजे की ओर देखती गंगा…
अपने दिल में अपनो से मिले दर्द समेटे गंवार गंगा दुनिया को अलविदा कह दिया… दीदीया अब भूली बिसरी याद बन गई…
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Veena singh…
Is kahani me Patra alag 2 h but puri story meri maa aur mujh par hai very nice 👍