गंगा नहाना जरूरी तो नहीं… – मंजू तिवारी : Moral Stories in Hindi

 हम दोनों बहनों की शादी नहीं हुई थी तब मेरे पापा से लोग बातों बातों में ही कहते रहते थे दोनों बेटियों की शादी करने के बाद गंगा नहाना… एक बार की बात है ।कि मैं वहीं खड़ी थी और मेरे पापा ताई जी से बात कर रहे थे ताई  जी बेटियों की शादी के बाद गंगा नहाने की बात कह रही थी…

पापा इस कथन पर बिल्कुल भी सहमत नहीं थे… पापा का कहने का मतलब था कि मुझे गंगा नहाने में कोई एतराज नहीं है ।लेकिन बेटी की शादी के बाद ही गंगा नहाने से मुझे ऐतराज है।

 मैं धूमधाम से अपने बच्चों की शादी करूंगा लेकिन  बेटी की शादी के बाद गंगा नहीं नहाउंगा 

मैंने  कोई गायों की हत्या नहीं की  है। जो मैं अपने पाप धोने लिए गंगा में डुबकी लगाऊं । मेरी बेटियां हैं। और बेटियां पैदा करके मैंने कोई पाप नहीं किया है।जो इनके विवाह के बाद में ही गंगा नहाने जाऊं…

 पापा की बात का मतलब मैं बहुत अच्छी तरह से समझ पा रही थी और पापा बिल्कुल सही ही कह रहे थे कि बेटियों की शादी के बाद ही लोग गंगा नहाने की बात करते हैं। क्या बेटी की शादी करने के बाद ही सभी का कर्तव्य पूरा होता है। अगर कर्तव्य की बात है। तो बेटे की शादी करने के बाद भी तो गंगा नहानी चाहिए…

फिर यही बात मेरे सामने ससुराल में आई जब मेरी सासू मां ने कहा कि तुम्हारे पापा मम्मी शादी के बाद गंगा नहाने  नहीं गए मैं और तुम्हारे पापा तो तुम्हारी नंनद  की शादी करने के बाद गंगा नहाने हरिद्वार गए थे

  मैंने सासू मां से कहा मेरे पापा ऐसा नहीं सोचते बेटी पैदा की है। कोई पाप नहीं जो बेटी का विवाह करने के बाद  अपने पाप धोने के लिए गंगा नहाने  जाय..

वैसे बेटी की शादी के बाद गंगा स्नान जरूरी होता है। बेटा

मम्मी जी कुछ भी हो मेरे पापा तो गंगा नहाने नहीं गए ना वह जाएंगे

मुझे गर्व  हो रहा था अपने पापा की सोच पर

कर्तव्य पूरा तो बेटा बेटी दोनों के विवाह का होता है। फिर क्यों

 बेटी  के विवाह के बाद ही गंगा नहाना क्यों…?

बेटे के विवाह के बाद गंगा नहाना क्यों नहीं….?

मंजू तिवारी गुड़गांव

स्वलिखित मौलिक रचना 

सर्वाधिकार सुरक्षित 

प्रतियोगिता हेतु

मुहावरा

लघु कथा.. गंगा नहाना

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