“गम उठाने के लिए मैं तो जिए जाता हूं” – सुधा जैन

 

मैं एक हंसता खिलखिलाता जिंदादिल पुरुष था। मेरे पास एक प्यारा सा दिल और ढेर सारे अरमान थे। बचपन में मेरी परवरिश सौतेली मां के हाथों हुई, मैं बड़ा तो हो गया पर दिल के किसी एक कोने में मां के प्यार की कमी रह गई। मन कभी-कभी बेचैन हो जाता था कि सभी बच्चों की मां उनसे कितना प्यार करती है, पर मेरी मां प्यार कम और चिढती ज्यादा थी । समय गुजरता गया मैं बड़ा होता रहा ।

मेरे कालेज शुरू हो गए ,मैं पढ़ने में अच्छा था ।मैंने एमएससी  गणित में कर लिया …मेरा व्यक्तित्व बहुत आकर्षक था… लड़कियां मुझ पर जान छिड़कती  थी…  पर मेरे जीवन के अपने उद्देश्य थे… मुझे कुछ बनना था …मैं बनना तो  आईएएस चाहता था… पर उसकी राह बड़ी कठिन थी …और सही मार्गदर्शन भी नहीं मिला… और मैंने लेक्चररशिप स्वीकार कर ली। मुझे स्पोर्ट्स में भी बहुत रूचि थी। मैं बैडमिंटन का खिलाड़ी था। जीवन अच्छे से चल रहा था। लड़की वालों के लिए मैं एक सुयोग्य एवं आकर्षक वर था। 

आपस में रिश्तेदारी में बात हुई। लड़की देखने दिखाने का कार्यक्रम हुआ, और मेरी रजामंदी से मेरी शादी हो गई। मेरी जीवनसंगिनी रूप और सौंदर्य की स्वामिनी थी, पर स्वभाव की सुंदरता में बहुत कमी थी… उसका व्यवहार तीखा एवं रूखा था… कभी कभी मुझे लगता है कि वह मुझे बहुत प्यार करें…. मुझसे अच्छे से बात करें …मेरा ख्याल करें …पर यह सिर्फ सपना ही बनकर रह गया… देह धर्म का पालन करते हुए मेरे यहां पर बेटा एवं बेटी का जन्म हुआ। मेरी जहां नौकरी थी …वह शहर छोटा था, मेरी धर्मपत्नी को मेरा शहर पसंद नहीं था…. बच्चों की शिक्षा के लिए वह पास के बड़े शहर में चली गई, और मैं इस शहर में अकेला रह गया ….

सुबह उठता… अपनी चाय बनाता…. खाना बनाता…  स्कूल चला जाता… वहां पर अपने कर्तव्य का निर्वाह करता …सभी दोस्तों के साथ बहुत हंसता… मेरी हंसी पूरी शाला को गुंजा देती थी…. पर मेरे मन का एक कोना खाली था… शाम को आता… अपने लिए खाना बनाता… खाता… कभी कभी बाहर भी खा लेता…. बाहर का खाना कितने दिनों तक खाया जा सकता था… कभी मेरा मन करता ,मेरी पत्नी अपने हाथों से चाय पिलाए …खाना बनाकर खिलाएं.. लेकिन वह सपना ही बनकर रह गया… लोग कहते हैं शादी एक समझौता है… दोनों पक्षों को एक दूसरे को अपनाना होता है… इसी बात को ध्यान में रखकर मैं अपनी शादी को चला रहा था …जीवन  एक समझौता बनकर रह गया… मैं कमाता पैसे अपनी पत्नी को देता। 



 बस यही महीने का रूटीन था। बच्चे बड़े हो रहे थे ,पर मुझसे दूर थे तो कहीं ना कहीं  आत्मीयता में भी कमी दिखाई दे रही थी। कोरोना काल में ही बेटे की शादी कर दी …बहुत छोटे समारोह में …मेरे अरमान दिल के दिल में रह गए… ना मैं किसी को निमंत्रण दे सका… ना किसी को खाना खिला सका… समय बीतता रहा…. मेरा दिल कभी-कभी अपने आप में एक दर्द महसूस करता… और ऐसा लगता है कि मेरे दिल को दवा की जरूरत है….

 कभी सोचता शादियां निभाने के लिए क्या स्त्रियां ही समझौता करती हैं? पुरुष भी बहुत समझौता करते हैं, इस बात को मैंने महसूस किया। मैं अपनी शादी को शिद्दत से जीना चाहता था …पर मेरी पत्नी ने मेरे सपने को कभी पूरा नहीं होने दिया…. बेटे और बहू के साथ भी मैं कभी रह नहीं पाया… मैंने एक कार खरीदी और सोचा कि इसमें सभी बैठकर यात्रा करेंगे…. लेकिन वह दिन ही नहीं आया…. मैं अपने अकेलेपन से घबरा गया था… बाहर ही बाहर में हंसता था पर अंदर ही अंदर मेरे दिल में तूफान चलता था….

 मैं अपने दिल की बात किसी को भी नहीं बता पाया। मैं जीना चाहता था ….खुश रहना चाहता था…. लेकिन मेरे दिल के दर्द में मुझे धोखा दे दिया…. और एक दिन अचानक रात्रि में तेज दर्द उठा… और मैं धड़ाम से गिर पड़ा और  ऐसे गिरा कि फिर उठ नहीं पाया। बस मरते मरते मैने ईश्वर से यही प्रार्थना की, की भगवान सभी स्त्रियों को सद्बुद्धि दे …और वह अपने पति के दर्द को समझे… उनसे प्यार से बात करें…. बात-बात में ताने न मारे…. उल्टी सीधी बातों की लड़ाई ना करें ….पति सिर्फ कमाने की मशीन ही नहीं है… उसके भी जज्बात होते हैं…. भावनाएं होती है… एक प्यारा सा दिल होता है… और वह भी खुशी के लिए जीना चाहता है….

 मेरी इस कहानी को पढ़कर अगर किसी एक नारी में भी सुधार आ गया तो मैं अपने आप को धन्य समझूंगा….

 बस यही थी मेरी कहानी।

#समझौता

सुधा जैन

 रचना मौलिक है

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