” क्या हुआ निशु इतना उदास क्यो हो ?” हेमंत घर मे आते ही पत्नी से पूछने लगा।
“हेमंत पापा ने तुम्हारे साथ इतनी बतमीजी से बात की अपनी बेटी के पति से ..ये मुझे बिल्कुल अच्छा नही लगा !” निशु हेमंत को देख रोते रोते बोली।
” अरे तो इसमे इतना रोने वाली क्या बात है वो पापा है हमारे । ” हेमंत बोला।
” हाँ हेमंत पापा है वो पापा जो कभी मेरा गर्व हुआ करते थे पर आज वो मेरी आँखों से गिर गये थे उन्होंने अपनी बेटी के पति को इतना भला बुरा कहा !” निशु सुबकते हुए बोली।
” निशु गर्व तो तुम भी थी ना अपने पापा का पर तुमने क्या किया मेरे साथ भाग कर उस गर्व को ही नही तोड़ा उन्हे रुसवा भी किया । हम दोनो ने घर से भाग कर शादी की है पापा का गुस्सा जायज है !” हेमंत कुछ सोचते हुए बोला।
” पर हेमंत हमने प्यार किया था कोई गुनाह नही फिर पापा जब इस शादी को तैयार नही हुए तब हम घर से भागे थे !” निशु बोली।
” तुम अपनी जगह सही हो निशु पर पापा की जगह खुद को रखकर देखो अगर कल को हमारी बेटी ऐसा करे तो क्या होगा । शायद मैं भी कल को यहीं करूँ और शायद क्यो हर पिता यहीं करता है जब उसकी जान से प्यारी बेटी उसकी इज्जत की परवाह किये बिना घर से भाग जाती है । हमें पापा के गुस्से को नही उसके
पीछे छिपे दर्द को देखना चाहिए । उन्होंने कितना कुछ सहा होगा लोगो के ताने झेले होंगे । हमसे एक गलती हुई है निशु घर से भागने की अब दूसरी गलती नही करनी पापा से माफ़ी मांगनी है उनके दर्द को कम करना है !” हेमंत बोला।
” ये सब कैसे होगा हेमंत पापा तो हमारी सुनने को तैयार ही नही ?” निशु ने पूछा।
” हमें बार बार कोशिश करनी होगी निशु जबसे तुम्हारे पेट मे हमारा बच्चा आया है मैं हमारे माँ बाप ख़ासकर तुम्हारे माँ बाप का दर्द समझ रहा हूँ । तुम पापा को गलत बोलने की जगह उनकी सुनो उन्हे अपनी भड़ास निकाल लेने दो शायद तभी वो हमें माफ़ कर पाएं !” हेमंत उसे गले लगाता हुआ बोला।
संगीता अग्रवाल
#आँखों से गिरना