गलती किसकी – ऋतु अग्रवाल

रात के 12:00 बज रहे थे। अचानक से निहारिका की आँख खुली। पानी पीकर फ्रेश होने चली तो माँ बाबूजी के कमरे की लाइट जल रही थी। दरवाजे के पार से आवाजें आ रही थी।

 “कौशल्या, मैं कह रहा हूँ, तुम अपने मायके नहीं जाओगी। कभी नहीं का मतलब कभी नहीं।” बाबूजी शब्दों को चबा चबाकर बोल रहे थे।

  “पर उस बात को कितने साल बीत गए। अब तो भूल जाओ। खत्म कीजिए उन बातों को। सब खुश हैं अपने अपनी जिंदगी में।” मां का सिसकता सा स्वर सुनाई दिया।

 ” एक बार कह दिया तो कह दिया। नहीं जाओगी तुम वहाँ कभी और ना ही कोई वहाँ से यहाँ आएगा। उस बात के साथ ही उनसे हमारा रिश्ता नहीं रहा” बाबूजी भड़क से गए” बस अब कोई बहस नहीं। सो जाओ। मुझे नींद आ रही है।” और लाइट ऑफ हो गई।

    निहारिका को कुछ समझ नहीं आया। शादी के बाद के पिछले 2 महीनों में  यह तो उसने नोटिस किया था कि माँ के मायके से ना कभी कोई आता था और ना ही माँ वहां जाती थी। पर क्यों? यह अब तक समझ नहीं आया था।

    “वीरेन उठो तो जरा कुछ बात करनी है।”  निहारिका ने अपने पति वीरेन को उठाते हुए कहा।



       “क्या है इतनी रात को क्यों उठा दिया?” वीरेन ने आँखें मलते हुए कहा।

   निहारिका ने वीरेन से  पूछा कि आखिर ऐसी क्या बात है कि माँ अपने मायके नहीं जा सकती। पहले तो वीरेन ने आनाकानी की पर निहारिका के बहुत इसरार करने पर उसने बताया कि वीरेन के दादाजी और बाकी परिवार वाले चाहते थे कि वीरेन केचाचा जी की शादी उसकी मौसी से कर दी जाए। सब लोग तैयार थे

पर मौसी किसी नौकरीशुदा  से ही शादी करना चाहती थी और चाचाजी का कारोबार  था तो यह रिश्ता नहीं हो पाया।मौसी का इंकार दादाजी को अपनी अवमानना लगा। बस इस बात से नाराज होकर दादाजी और बाबूजी ननिहाल से रिश्ता तोड़ दिया और माँ को ताकीद कर दी गई कि वह अपने मायके नहीं जाएँगी।

     “यह तो कोई बात नहीं हुई। अगर मौसी जी शादी नहीं करना चाहती थी उसमें जबरदस्ती वाली क्या बात है और फिर इसमें माँ की क्या गलती है? उन्हें किस बात की सजा दी जा रही है? ये अच्छा है कि बात कुछ भी हो बस बहू को उसके मायके जाने से रोक दिया जाए।” निहारिका बोली।

     “यह तो मैं भी मानता हूँ पर  बाबूजी के आगे बोलने की हिम्मत मुझमें  नहीं है और प्लीज तुम भी कुछ मत कहना वरना बहुत बुरा बवाल हो जाएगा।” कह कर वीरेन सो गया।

     निहारिका ने सोच लिया कि वह बाबू जी से बात करेगी चाहे कुछ भी हो। गलत को गलत न कहना भी गलत का साथ देना होता है। निहारिका दृढ निश्चय के साथ अगली सुबह का इंतजार करने लगी।

बात चाहे कुछ भी हो,हमेशा लड़कियों को उनका मायका छोड़ने की सजा क्यों दी जाती है?????

स्वरचित

ऋतु अग्रवाल

मेरठ

3 thoughts on “  गलती किसकी – ऋतु अग्रवाल”

  1. Had you completed the story , it would have been interesting.
    Complete krte to achha lagta. Mein complete kar dun kya mam.
    Plz Don mind.
    Jra dada ji ke bahane baki society ko akal sikhani chahiye na.

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