गलती किसकी? – डॉ संगीता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

जैसे ही रोहन घर में घुसा तो मां के चीखने की आवाज़ आ रही थी, ओह!फिर शामत आ गई नेहा की ,लगता है,आज फिर कोई गलती कर दी उसने।

क्या हुआ मां?क्यों लाल पीली हो रही हैं?कितना बुरा लगता है आपकी चीखने की आवाज़ घर के बाहर तक जा रही हैं…।

ये बात अपनी बीबी को समझा…कैसी गंवार लड़की मेरे सिर पर ला बैठाई है तूने! मै तंग आ गई इससे…मां गुस्से से बोलीं।

अब क्या कर दिया इसने?रोहन झुंझलाया।

देख जरा कैसा खाना बनाया है, दाल कच्ची है और रोटी जली हुई…

रोहन ने देखा,सारी थाली में खाना थूक रखा था उसकी मां ने…

नेहा डबडबाई आंखों से उसे देखने लगी और चुपचाप थाली उठाकर अंदर जाने लगी,कुछ और बना देती हूं अभी कहती हुई वो चली गई।

मां!होश में आओ…नेहा बहुत सीधी है और मुझे बहुत प्यार करती है इसलिए चुपचाप आपकी ज्यादतियां सह रही है ,कोई दूसरी होती तो अभी तक भाग गई होती।

भाग कर जायेगी कहां?अपने भुक्कड़ मां बाप के पास?उन्हें अपने खाने के लाले पड़ रहे हैं…इसे क्या खिलाएंगे?गंवार है सारा परिवार…बड़ी तारीफ करता था तू…पढ़ी लिखी है लड़की,एकदम कूड़ा है कूड़ा..।

तो आपको गुस्सा उसके गरीब परिवार से है या उसकी कम काबिलियत से?रोहन ने तैश में आकर पूछा।

तब तक,नेहा,दोबारा आलू के परांठे ,दही परोस के ले आई थी।

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लीजिए मांजी!उसने थाली उनकी तरफ बढ़ाई।

ये देख!कैसे मोटे परांठें थोपे हैं जैसे कोई जानवर खाएगा इन्हें.. कुछ सिखाया है तेरी मां ने या नहीं।गंवार कहीं की।

वो परांठों को तोड़ कर टुकड़े करती,इससे पहले रोहन ने उनके हाथ से थाली ले ली,ठीक है अम्मा!तुम्हें पसंद नहीं तो मुझे दे दो,बड़ी भूख लगी है…नेहा!प्लीज थोड़ी सब्जी भी ला दो, मै हाथ धोकर आता हूं अभी।

मां बड़बड़ाती रहीं और रोहन स्वाद ले लेकर परांठे खाता रहा।

सोच रहा था वो,क्यों उसकी मां नेहा को नापसंद करती हैं? क्या सिर्फ इसलिए कि उसके पेरेंट्स ने बहुत बड़ी शादी नहीं की थी,उनकी उम्मीद के अनुसार दहेज नहीं दिया था…कितनी ओछी सोच है मां की,वो लज्जित हुआ ये सोचकर…कोई तेज तर्रार लड़की होती तो बता देती उन्हें जुबान चलाने का नतीजा।

अगले ही साल,मां ने रोहन के छोटे भाई अनुज की शादी अपनी पसंद से एक ऊंचे घराने की लड़की मेनका के साथ कर दी।

मेनका सुंदर थी और अमीर मां बाप की इकलौती बेटी थी,खूब दान दहेज लाई थी संग में।

मां की खुशी का ठिकाना न था,अपनी सहेलियों के आगे दिन रात प्रदर्शन करती,कभी उसके लाए गहनों का जिक्र होता तो कभी उसके घर से आए तोहफों का।

मेनका भी समझ गई थी अपनी सास का लालच और खुद को मिलती इज्जत का कारण।धीरे धीरे,उसे भी अपनी गुणी भाभी नेहा को सताने और चिढ़ाने में मजा आने लगा।

वो शुरू में सास का साथ देती,जब भी वो नेहा की बुराई करती,वो आग में घी डालती और मजा लेती।लेकिन जल्दी ही वो खुद,अपनी सास को भी नियंत्रित करने लगी थी।

उसने यही देखा था यहां,जब भी सास गुस्सा होने लगे ,उसके आगे कोई मंहगी चीज मुंह पर मारो और उनकी बोलती बंद कर दो।

दिन और बढ़े तो उसकी जुबान भी खुलने लगी।वो आए दिन,अपनी सास को ही खरी खोटी सुना देती।

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उसकी सास अक्सर नेहा को डांटती थी,जब भी कोई बच्चा बीमार होता और नेहा उसे रोहन को पकड़ाती ,वो झट कहती,हमारे दस बच्चे हुए,हमने तो कभी तुम्हारे ससुर को परेशान नहीं किया,आज कल की औरतों को देखो,हर बात पर पति की हेल्प चाहिए।

एक दिन,उसी तर्ज में वो मेनका को भी डांटने लगी ,मेनका का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया…अम्माजी!मुझे नेहा भाभी समझने की भूल मत करना आप, मैं घर की ईंट से ईंट बजा दूंगी अगर किसी ने मुझसे पंगा लिया या मुझे कुछ भी कहा,जानती नहीं,तीन गाड़ी भरकर सोना लाई थी अपने मायके से..।

रोहन की मां सकते में आ गई,उसे आज तक सुनाने की आदत थी,सुनने की नहीं…,उसने घूर कर छोटी बहू को देखा।

मेनका चिल्लाई….ज्यादा घूरिए मत..अनुज से कहकर आज ही मै अलग घर में रहूंगी,यहां तो अजीब गंवार लोग हैं…जीने ही नहीं देते चैन से।

पैर पटकती वो कमरे से बाहर हो गई।

रोहन की मां को आज पहली बार एहसास हुआ कि किसी को गंवार कह देना कितना सरल होता है पर खुद के लिए गंवार सुनना उतना ही अपमानजनक।वो इतने वर्षो नेहा को गंवार,कूड़ा,बेवकूफ कहती रहीं,उसने कभी पलट कर जबाव नहीं दिया,कितनी शांत और सहनशील है वो और एक ये कल की आई लड़की उनके एक बार गुस्सा करने पर भड़क गई।

उन्होंने खुद की गलती महसूस की और निश्चय किया मन में,आज से वो ध्यान रखेंगी कि बहुओं से कैसे बोलना है?अपनी इज्जत आपके अपने हाथों में ही होती है,अगर दूसरे से लेनी है तो पहले खुद संयमित और शिष्ट व्यवहार करें तभी आपको वो इज्जत मिलेगी।बड़ी बहू नेहा गंवार नहीं बल्कि सचमुच का हीरा है जिसे संभाल कर रखने की जरूरत है उन्हें।

डॉ संगीता अग्रवाल

वैशाली

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