Moral Stories in Hindi : आज फिर माला अपने मायके आ गई। उसका ससुराल और मायका एक ही गॉंव में था। यह उसका हमेशा का काम था, अभी चार दिन पहले तो माँ जानकी देवी समझा बुझा कर उसे ससुराल में छोड़कर आई थी। और कह दिया था, कि अब अगर वो ससुराल को छोड़कर आई, तो वह उससे बात नहीं करेगी।
जब माला घर पर आई तब जानकी जी बाजार गई थी, घर पर माला की भाभी ही थी। जानकी जी जब घर पर आई तब वह सोफे पर मुंह फुलाए बैठी थी। जानकी जी उससे कुछ नहीं बोली। अपने बेटा बहू,आनन्द और जया से भी कह दिया था, कि वे इस बार उससे बातें नहीं करें।
सुरेन्द्र कुमार जी तो पहले ही अपनी बेटी की हरकतों से परेशान थे, और उससे बात नहीं करते थे। इतना अच्छा ससुराल था माला का, कोई उससे कुछ नहीं कहता था, सब उसके साथ प्यार से रहते थे, वह अपनी इच्छा से जब चाहती तब मायके आ जाती, फिर भी वे कुछ नहीं कहते थे।
सुरेन्द्र कुमार जी जानते थे कि उनकी बेटी कितनी ईर्ष्यालु है, जलन की भावना उसके रग-रग में भरी है, वे उससे बात नहीं करते थे। माँ भी उसे समझा-समझा कर थक गई थी, इसलिए उन्होंने मौन धारण कर लिया। उस दिन किसी ने माला से बात नहीं की। वह मन ही मन भुनभुनाती रही। रात को भूख लगी तो रसोई में जाकर हाथ से भोजन लेकर खाया। उसे बहुत बुरा लग रहा था, वह अपने कमरे में सोने के लिए गई तो उसे नींद नहीं आई।
वह सोच रही थी कि सब कितने सुखी हैं आराम से जीते हैं मगर मेरी किस्मत में तो खुशी लिखी ही नहीं है। वह सोचती जा रही थी और ऑंखों में बादल उमड़-घुमड़ कर आ रहै थे। जब इन्सान अकेला हो जाता है तो तरह-तरह के विचार उसके मन में आते हैं। आज वह अपना अवलोकन कर रही थी। उसका अतीत उसके सामने चलचित्र की तरह घूम रहा है,उसे याद आया अपना बचपन। वो अपने माता-पिता और भाई बहिन के साथ रहती थी।
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माता पिता कितने प्यार से रखते थे उसे, भाई आनन्द और बहिन लीला तो हमेशा खुश रहते जो मिलता खाते पीते और मस्त रहते इसलिए सब उन्हें बहुत प्यार करते थे, मगर वह कभी सन्तुष्ट नहीं रहती थी।उसे हर चीज में चाहे उसके कपड़े हो, खिलौने हो या बस्ता किताब हर चीज में कुछ न कुछ नुक्स निकाल कर झगड़ा करना रहता था।
हर पल अपने भाई बहिन से ईर्ष्या करती, जलन होती थी उसे कि सब राजन और लीला दीदी को चाहते हैं, उसे कोई नहीं चाहता।वह यह समझ ही नहीं पाती थी कि उसके व्यवहार में क्या कमी है। घर पर ही नहीं विद्यालय में भी उसका यही रवैया था, किसी के सुन्दर कपड़े, बस्ता या कुछ देखती तो उसे जलन होती, कि यह सब उसके पास क्यों नहीं है।
इस बात को लेकर वह घर में झगड़ा करती। विद्यालय में जब किसी विद्यार्थी को उसके अच्छे अंको के लिए या किसी साहित्यक, सांस्कृतिक, खेलकूद स्पर्धा में पुरस्कृत होते देखती, तो उसे जलन होती। वह कभी यह प्रयास नहीं करती की वह भी अच्छी पढ़ाई करे, या किसी कार्यक्रम में भाग लेकर मेहनत करे।
अजीब स्वभाव था उसका और उसकी इस जलन की भावना के कारण ही कोई उसे पसंद नहीं करता था। इसके विपरित उसकी लीला दीदी सबकी उन्नति को देखकर खुश होती उन्हें बधाई देती और समय पड़ने पर सबकी मदद करती। इसलिए विद्यालय में भी लीला दीदी को सब चाहते थे, और यह माला की जलन का कारण था।
बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण करने पर लीला का विवाह निश्चित हो गया, साथ ही आनन्द की शादी भी जया के साथ तय कर दी। मध्यमवर्गीय परिवार था, सोचा दोनों भाई बहिन की शादी साथ में करने से खर्चा कुछ कम हो जाएगा। फिर माला की शादी करेंगे। लीला और जया के गहने,कपड़े देखकर भी माला को जलन होती।
माँ ने माला के लिए भी नये कपड़े बनवाए और कहा -‘बेटा तेरी शादी में तेरे लिए भी सबकुछ मंगवाऊॅंगी’ मगर माला पता नहीं किस माटी की बनी थी, पूरी शादी में मुंह फुलाए रही। लीला ने अपने ससुराल में भी सबका दिल जीत लिया, सब उसकी तारीफ करते।जया भी संस्कारी लड़की थी,
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माला के साथ बहुत अच्छे से रहती, कभी किसी चीज से परहेज नहीं करती वार त्यौहार पर अपनी साड़ी निकाल कर देती, कहती दीदी पहले आप पसंद कर लो, यह साड़ी आप पर बहुत अच्छी लगेगी। मगर उसका एक ही जवाब होता तुम्हारी साड़ी है तुम पहनो। अपने व्यवहार से उसने अपनी भौजाई से भी दूरी बना ली। धीरे-धीरे जया ने भी पूछना बंद कर दिया।
परिवार की साख और माला की किस्मत भी बहुत अच्छी थी कि उसका बहुत अच्छे परिवार में रिश्ता हुआ। देवर, ननन्द सभी अच्छे थे। मगर वहाँ भी वह अपनी आदतों से बाज नहीं आ रही थी। छोटी-छोटी बात पर माला उनका खार करती, सास-ससुर को घर की इज्जत बहुत प्यारी थी, इसलिए वे उसे कुछ कहते नहीं थे। वह जब मन होता मायके में आ जाती।
यहाँ भी मॉं हमेशा उसे सही शिक्षा देती कि बेटा अपनी ये जलन की आदत छोड़ दे। तेरे ससुराल के सब लोग अच्छे हैं। उनके साथ प्रेम से रह मगर वह चिकने घड़े की तरह थी, मॉं की बातों का उस पर कोई असर नहीं होता था। आज उसकी हर गलती उसे याद आ रही थी, और उसे लग रहा था कि उसकी खुशियों की दुश्मन वह स्वयं है। माँ जो हमेशा मुझे प्यार से समझाती थी आज मुझसे बात नहीं कर रही है।
मैं अपनी जलन की आदत छोड़ कर सबकी खुशियों में शामिल होऊॅंगी और आगे की जिन्दगी सबके साथ खुशी-खुशी बिताऊॅंगी।कल मैं परिवार में सभी से क्षमा मांगूगी और एक नए जीवन की शुरुआत करूँगी सकारात्मक विचार उसके मन में आया और उसे शांति से नींद आ गई। सुबह वह माँ के पास गई तो वे कुछ बोली नहीं।
वह उनकी गोदी में सिर रखकर सो गई। माँ तो माँ होती है उनकी उंगलियाँ उसके माथे को सहलाने लगी तो उसकी आँखों में ऑंसू आ गए बोली- ‘मॉं मुझे माफ करदो, मैंने सबके साथ गलत व्यवहार किया है, आगे से शिकायत का मोका नहीं दूंगी।’ माँ ने उसे प्यार से कहा -‘बेटा माता- पिता के लिए उनकी सभी औलाद बराबर होती है। तूने अपनी इस जलन की बुरी आदत के कारण सबसे दूरी बना ली, बेटा!
तू नहीं जानती कल तुझसे मैंने बात नहीं की तो पूरी रात कितनी मुश्किल से काटी, जया और आनन्द भी परेशान रहै। तुम्हारे पापा भी इसी कारण तुझसे बात नहीं करते हैं। बेटा आज तुझे समझ में आ गया है, हम सब खुश हैं। बेटा अपने ससुराल में भी सबके साथ अच्छा व्यवहार रखना तेरे ससुराल के लोग भी बहुत अच्छे है। हॉं माँ अब मुझे अपनी गलती समझ में आ गई है, मैं आज ही अपने ससुराल जाकर उनसे भी क्षमा मांग लूंगी।
जया चाय लेकर आ गई थी बोली-‘ दीदी हम भी आपके ससुराल चलेंगे। मगर पहले हम सब आपके पसन्द के लड्डू बाफले खाऐगे, मैं अपने हाथों से बनाऊँगी।’ ‘हॉं भाभी मैं भी आपके साथ आपकी मदद करती हूँ।’। आज घर में सर्वत्र खुशियाँ फैल गई थी।
प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित
#जलन