गलतफहमी -माता प्रसाद दुबे

दो साल की नन्ही बच्ची को गोद में लिए मालती वकील के चैम्बर में प्रवेश करते हुए अपने अतीत के डरावने सच से भयभीत हो रही थी। “आओ मालती बैठो,कल तुम्हारा तलाक़ मंजूर हो जायेगा?”वकील ने मालती से कहा।”वकील साहब अब आप ही रवि नाम के जानवर से मुझे मुक्ति दिला सकते हैं?” कहते हुए मालती की आंखें छलकने लगीं। “मालती कल तुम अपने घर से किसी को साथ लेकर आना?”वकील मालती की ओर देखते हुए बोली। घर की बात सुनकर मालती गहरे अन्धकार में डूब गई।

मालती की मनोदशा शून्य हो रही थी।पाॅ॑च साल पहले जब उसने रवि के प्रेम जाल में फंसकर अपने मम्मी पापा दादा (बड़े भाई)का अपमान किया था। दादा के लाख मना करने पर भी उसने रवि से शादी किया था।वह कैसे उनका सामना करेगी।”क्या हुआ मालती कहा खो गई तुम? वकील साहब बोले।”कुछ नहीं वकील साहब?” कहकर मालती खामोश हो गई। “मालती तुम अपने घर का पता फोन नंबर मुझे दे दो मैं बात करूंगा?”वकील ने मालती से कहा। मालती ने एक कागज में घर का पता फोन नम्बर लिखकर वकील साहब को देकर चैम्बर से बाहर निकल गई।


दूसरे दिन कोर्ट के मुख्य द्वार पर खड़े बड़े भैया को देखकर मालती ठिठक गई गलतफहमी जो उसके मन में अपनों के प्रति थी। उसकी एक गलती ने सब कुछ बदल दिया था।

“क्या हुआ मालती, क्या सोच रही हों?” बड़े भैया बच्ची को गोद में उठाते हुए बोलें। मालती की आंखें डबडबा उठीं,दादा को सामने देखकर ।”चलो मालती कोर्ट का समय हों गया है,अब तुम अकेली नहीं हो,तुम्हारे बड़े दादा तुम्हारे साथ है?”

मालती चुपचाप अपने बड़े भैया के साथ कोर्ट रूम की तरफ बढ़ गई।

माता प्रसाद दुबे

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