“नहीं लगा फोन शरद को?”रामनरेश ने पूछा अपनी पत्नी से जो बार बार उसका नंबर डायल करके थक चुकी
थी।
“किसी मीटिंग में व्यस्त होगा…कर लेगा कॉल बैक जब फुर्सत मिलेगी।”सुधा विश्वास से बोली।
“बस तुम और तुम्हारा बेटा!!हर समय उसे प्रोटेक्ट करती हो ,स्वीकार क्यों नहीं कर लेती कि वो बदल गया
है…।”
“आप क्यों गाल फुलाए बैठे रहते हो उससे, जवान लड़का है,आखिर उसका भी घर परिवार,नौकरी है,व्यस्त
नहीं हो सकता क्या?”
तो कभी हमारी सुध ली उसने?क्या उसका फर्ज नहीं ये देखना कि हमें कितनी आर्थिक तंगी से गुजरना पड़
रहा है,मकान का किराया दूं या दवा दारु करूं?अच्छा पोष्टिक खाना कैसे खाऊं?एक पेंशन ही तो एकमात्र
सहारा है मेरा।
“तो कभी उससे मांग लो,दौड़ा चला आयेगा वो…” सुधा बोली।
“हां..जैसे तुम्हारे फोन करने पर अभी कहा उसने…बोलो अम्मा,कितना पैसा भेजूं?”
“क्यों टोंट कर रहे हो,कहीं व्यस्त होगा नहीं तो फोन तुरंत उठाता,फिर बहू भी तो कितनी अच्छी है…”
“इससे तो बात करनी ही फिजूल है,उन लोगों का गुणगान ही करती रहेगी…”
“तुम्हारी तरह मुंह भी नहीं फुलाती मै…” सुधा बड़बड़ाई।
तभी रामनरेश के फोन पर कोई कॉल आई और उनका चेहरा तनावग्रस्त हो गया,ठीक है सर!कल खाली कर
देंगे हम…ओके,अब आप मोहलत नहीं दे रहे तो यही एक रास्ता बचा है।
“क्या हुआ?”सुधा ने पूछा,”कौन से रास्ते की बात कर रहे हो?”
“इस मकान का किराया बहुत ज्यादा है,हम कल इसे छोड़ देंगे,एक छोटे मकान के लिए मैंने बात की है..तुम
सामान बांध लेना।”वो गंभीरता से बोले।
“क्या??ऐसे कैसे?शरद से बात करनी पड़ेगी फिर तो…”
“लेकिन उसके लिए उसे फोन तो उठाना पड़ेगा पहले…”राम नरेश व्यंग करते बोले।
अगले दिन ठीक बारह बजे घंटी बजी और वो दोनो तैयार बैठे थे मकान का पजेशन देने के लिए…एक आदमी
उन्हें कुछ कागजात पकड़ा गया और बधाई दी…”आप अब इस मकान के मालिक बन गए।”
भौंचक्के से वो दोनो देखते रह गए,तभी शरद का फोन आया।
“बाबा!मुबारक हो,नए मकान की।”
“पर ये सब कैसे हुआ?”वो चकित थे अभी भी।
“कल उनका फोन आया था मेरे पास,पूछ रहे थे घर में कोई परेशानी चल रही है क्या?तब मुझे पता
चला…आपने कभी जिक्र ही नहीं किया..सॉरी बाबा!गलती मेरी ही थी मुझे वक्त निकालना चाहिए था आपके
लिए,अब मैंने ये मकान आपके नाम खरीद लिया है।जल्दी ही मिलता हूं आपसे।
“जुग जुग जियो बेटा!राम नरेश की आंखों से अविरल आंसू बह रहे थे। तू सही थी सुधा!तुझे अपनी औलाद
पर सच्चा विश्वास था, मैं ही बिना मतलब उससे मुंह फुलाए रहता था।”
दोस्तों!आपको ये कहानी कैसी लगी ,बताइए जरूर,आधुनिकता की दौड़ में बच्चे अगर आपसे दूर हैं,व्यस्त हैं
तो इसका मतलब ये नहीं कि वो बदल गए हैं,उन्हें समझे और सबसे बड़ी बात है,अपनी परवरिश पर भरोसा
रखिए।
डॉक्टर संगीता अग्रवाल
#गाल फुलाना