गला काटना – डाॅक्टर संजु झा। : Moral Stories in Hindi

आँखें बंद कर बिस्तर पर औंधी लेटी शीला बहुत देर तक सोचती रही।आज की आँखों देखी घटना से वह हतप्रभ थी।उसे समझ में नहीं आ रहा था कि अपनी छोटी बहन मीना को दोषी माने या अपने पति अनिल को!जिस पति पर वह आँख मूँदकर भरोसा करती थी,

जिस बहन को अपनी जान से ज्यादा प्यार करती है,आज वही दोनों मिलकर  उसका गला काटने को उतारू हैं।आज की घटना पर उसे विश्वास नहीं हो रहा था।वह चाह रही थी कि उसने जो देखा है,उसे भूल जाएँ,परन्तु  जीवन किसी कम्प्यूटर पर लिखी इबारत तो नहीं है कि डिलीट पर हाथ रखते ही सब खत्म हो जाएँ!

शीला के दिल में  निराशा  और विश्वासघात की कसक बढ़ती जा रही थी।अंतस की ज्वाला खीझ और चिड़चिड़ेपन के रुप  में बाहर आ रही थी।मीना तो नादान थी,परन्तु उसका पति अनिल तो समझदार और एक बच्चे का बाप है,फिर वह कैसे बहक गया?उसे समझ में नहीं आ रहा है।

अपनी गल्ती मानने के बजाए कितनी बेशर्मी से अनिल ने कहा -“शीला!जैसा तुम सोच रही हो ,वैसी कोई  बात नहीं है।”

गल्ती तो 

उसकी भी है ,उसने ही जीजा-साली का रिश्ता समझकर कुछ अधिक ही छूट दे रखी थी।इधर कुछ दिनों से दोनों के रिश्ते को लेकर उसके मन में संशय होने लगा था।उसे कमरे में छोड़कर दोनों दूसरे कमरे में हँसी-ठिठोली करते रहतें।उसने भी इसे महज मजाक का रिश्ता

समझ लिया था,परन्तु कल रात प्यास लगने पर जब वह उठकर रसोई में जाने लगी,तो अन्य कमरे में जीजा -साली बिस्तर पर आलिंगनबद्ध  होकर हँसी -ठिठोली कर रहें थे।उसे देखकर  दोनों हड़बड़ाकर उठ बैठे और अपनी सफाई देने लगें।

उसका चेहरा गुस्से से लाल हो उठा।वह खून का घूंट पीकर अपने कमरे में आ गई। वह तो अपने प्रसव में अपनी बहन मीना को बुलाना ही नहीं चाहती थी,परन्तु अचानक माँ के गिर जाने के कारण पिताजी मीना को लेकर आ गए थे।उन्होंने तो कहा भी था -“बेटी!मीना की अभी इंटर की परीक्षा हो गई  है,इस कारण इसे ही लेकर आया हूँ।अभी नादान है,इसपर ध्यान रखना।”

शीला को क्या पता था कि जीजा -साली मिलकर उसका ही गला काटने लगेंगे?अब उसके मन में शक रूपी साँप अपना फन फैलाए डेरा डाल चुका था।अब डसने से पहले साँप को घर के बाहर का रास्ता दिखाना जरूरी था।स्थिति बेकाबू हो जाएँ,उससे पहले ही शीला ने फोनकर पिता को बुलवा लिया।आते ही उसके पिता ने पूछा -” बेटी!अभी तो मीना का रिजल्ट भी नहीं आया है और तुम्हारी बच्ची भी एक महीने की भी नहीं हुई है,फिर मीना को क्यों भेज रही हो?”

वैसे तो पिता की अनुभवी आँखें समझ चुकीं थीं कि दाल में कुछ काला है ,फिर भी वे शीला के मुख से सबकुछ स्पष्ट सुनना चाहते थे।

शीला ने भी स्पष्ट रूप से जबाव देते हुए कहा -” पिताजी!मैं नहीं चाहती हूँ कि मेरा बसा-बसाया घर टूट जाएँ,और मीना की जिन्दगी बर्बाद हो जाएँ!जब तक मेरी गर्दन पूरी तरह कट जाएँ,उससे पहले ही मैं अपनी गर्दन बचा लेना चाहती हूँ।”

 अब शीला के पिता बिना कोई सवाल पूछे मीना को लेकर वापस लौट गए। 

समाप्त। 

लेखिका-डाॅक्टर संजु झा।

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