गाजर-मूली समझना – डाॅक्टर संजु झा : Moral Stories in Hindi

राखी  को  जितना अपने रुप और पैसे का  घमंड था ,उसके पति राजीव उतने ही सरल और विनम्र स्वभाव के थे।राखी अपने समक्ष हर किसी को गाजर-मूली के समान तुच्छ  समझती थी,चाहे वो परिवार के सदस्य हों, सहेलियाँ हों या नौकर -चाकर!

उसके घमंडी स्वभावके कारण उसके पड़ोसी या दोस्त सभी उससे खिंचे-खिंचे से रहते थे।उसके पति राजीव उसके व्यवहार से आहत होकर उसे समझाते हुए कहते -“राखी!संसार में रुप,धन-वैभव कुछ भी स्थायी नहीं है।मनुष्य का सद्व्यवहार ही उसे महान बनाता है।”

राखी तुनकते हुए कहती है-” राजीव!आपको पता नहीं है,सभी सहेलियाँ  मेरे रूप और ऐश्वर्य से जलती हैं!”

राजीव-“राखी!अच्छा ये तो बताओ कि सहेलियाँ तो तुम्हारे रुप और ऐश्वर्य से जलती हैं,परन्तु  मेड रीना  और रसोईये के साथ तुम्हारा व्यवहार गाजर-मूली सा क्यों है?”

प्रत्युत्तर में राखी कहती है-” राजीव!आप समझते नहीं हैं,वक्त-वक्त पर इन्हें न हड़काओ,तो ये मनमानी करने लगते है।”

राजीव-” तुमसे बहस करना बेकार है”कहकर दफ्तर  चला जाता है।

उस दिन सुबह होली त्योहार  के अवसर पर  मेड रीना ने राखी से 1000 रुपए बच्चों के कपड़े के लिए एडवांस माँगे थे।

राखी ने गुस्साते हुए कहा था -“रीना!अभी कुछ दिनों पहले दीवाली में तुमने अग्रिम पैसे लिए थे,जो अभी खत्म हुआ  है,और पैसे अभी मैं नहीं दे सकती हूँ!”

रीना -” दीदी!बच्चे ने नए कपड़े के लिए जिद्द कर रहें हैं,वर्ना मैं पैसे नहीं माँगती।”

राखी तमकते हुए  -” रीना!बच्चों को दीवाली वाले कपड़े पहना।उन्हें अपनी औकात में रहना सीखा!”

रीना मायूस होकर  काम करने के बाद  घर चली जाती है।

दफ्तर से लौटने के समय अचानक से राजीव  की कार का एक्सीडेंट हो जाता है।अस्पताल पहुँचते-पहुँचते उसके शरीर से काफी रक्त बह चुका था।

तत्काल  एक-दो सहकर्मी ने राजीव को अपना रक्त दे दिया,परन्तु उसे और रक्त की जरूरत थी।पति की हालत देखकर राखी परेशान थीं।बच्चे  छोटे थे।राखी को समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें?बच्चे भी घर पर अकेले थे।

राजीव के एक्सीडेंट के बारे में पता चलते ही  बदहवास रीना पति के साथ  अस्पताल पहुँच गई।

विपत्ति की घड़ी में रीना को पति के साथ  देखकर  राखी के सब्र का बाँध टूटकर पड़ा।उसने कहा -” देख रीना!आज मैंने तुझे 1000 नहीं दिए,फिर भी तुम इस घड़ी में मेरा संबल बनने के लिए आ खड़ी हो गई  हो।

रीना-“दीदी!आपने आज पैसे नहीं दिए,तो क्या? साहब के एहसान को कैसे मैं भूल जाऊँगी?बच्चों की चिन्ता मत करो,मैं यहाँ से बच्चों के पास चली जाऊँगी।”

राखी-” रीना!बच्चों की चिन्ता तो दूर हुई,परन्तु समझ में नहीं आ रहा है कि कल रक्त का इंतजाम कैसे करुँगी?”

रीना-” दीदी!आप चिन्ता मत करो।कल मेरे पति अपने दोस्तों के साथ  रक्त  देने अस्पताल आ जाऐंगे। हम 

साहब को कुछ नहीं होने देंगे।”

रीना का पति -” मैडम!आप मुझपर  भरोसा रखो।कल मैं दोस्तों के साथ  समय पर रक्त देने आ जाऊँगा।”

राखी का अहं इनके सामने चूर-चूर हो चुका था।भावुक होकर राखी रीना को गले लगा लेती है और पश्चाताप करते हुए कहती है-“रीना!मैंने हमेशा तुमलोगों को गाजर-मूली के समान समझा,परन्तु  आज तुमलोगों की निःस्वार्थ सेवा से मेरा घमंड टूटकर विखंडित हो गया है!”

रीना  बच्चों की देख-भाल के लिए  राखी के घर चली जाती है और उसका पति कल दोस्तों के साथ आने का आश्वासन देकर चला जाता है।

राखी बेसुध पड़े हुए पति की ओर निहारते हुए सोचती है-“विपत्ति भी जिन्दगी में कुछ नई सीख लेकर आती है।आज एक सीख मिली है कि सभी मनुष्य बराबर हैं।सभी के शरीर में लाल रूधिर ही बहता है।किसी को गाजर-मूली के समान तुच्छ कभी नहीं समझना चाहिए। कब कौन व्यक्ति मुसीबत में आकर उठ खड़ा हो जाएँ,कहा नहीं जा सकता!”

राखी भींगे नयनों से पति के सिरहाने बैठकर सिर सहलाने लगती है।

समाप्त। 

लेखिका-डाॅक्टर संजु झा(स्वरचित)

 

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!