गैरों की ममता – मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

Moral Stories in Hindi : मैं अपनी बाइस दिन की बेटी को लेकर इस दो कमरे के मकान में रहने को आई थी । मकान मालिक का भरा पूरा परिवार था चार ,चार बेटे और एक बीस साल की बेटी ।मैं अपने परिवार में मेरे पति और बूढ़ी सास बस इतने ही लोग थे । धीरे धीरे मेरी बेटी को खिलाने के लिए मकान मालिक की बेटी मेरे पास आने लगी , मुझे भी उसका आना अच्छा लगता था छोटी बहन लगती थी बड़े प्यार से वो मुझको भाभी कहती थी ।

मकान मालकिन बड़ी उम्र की थी वो भी मुझे बड़ा प्यार और स्नेह देती थी । उनमें मुझे अपनी मां की झलक दिखाई देती थी । धीरे धीरे हमारे और उनके परिवार के बीच काफी अच्छे संबंध बन गए।जब मेरी बेटी सवा साल की थी तभी मुझे बेटा हुआ । मकान मालकिन ने बहुत सहयोग किया मेरे घर पर करने वाला कोई नहीं था सिर्फ बूढ़ी सास के अलावा।

मकान मालकिन के सहयोग से घर और अस्पताल का काम काफी अच्छे से निपट गया। मकान मालकिन को मैं भाभी कह कर बुलाती थी ।मेरी बेटी ज्यादा तर उनके पास ही रहती थी । धीरे धीरे समय बीतता गया हमारे बच्चे बड़े हो गए करीब ढाई साल के हो गए थे दिन भर बच्चे भाभी जी के घर पर ही रहते थे धीरे-धीरे इतना ज्यादा अपनत्व बढ़ गया कि हम लोग आपस में हर बात शेयर करने लगे ।

इसी बीच उनकी बेटी की तबियत बहुत खराब हो गई कोई दवा रिएक्शन कर गई थी अचानक उन्हें उसे लेकर दिल्ली जाना पड़ा पीछे पूरा घर मेरे हवाले कर गई मैंने भी पूरी जिम्मेदारी से घर और सबके खानें पीने का अच्छे से ध्यान रखा।

                 फिर बेटी की शादी की बात चलने लगी तो कोई भी बेटी को देखने आता तो मुझे ज़रूर बुलाती मैं ही बेटी को अपनी साड़ी पहनाकर तैयार करती पूरे नाश्ते पानी का ख्याल मैं ही करती जिस भी चीज की कमी दिखती मैं अपने घर से पूरा करती ।असल में बहुत अच्छा रहने सहन नहीं था

सो जो कमी होती थी मैं पूरा कर देती थी।सब पूछते कौन है तो कहती मेरी बहू है मैं तो उनका इतना अपनापन पाकर निहाल हो गई थी , लगता मां की ममता मिल गई है । बेटी भी मुझको बहुत मानती हर चीज बताना हर चीज पूछना फिर तो मैंने भी घर के मेम्बर की तरह उनका ध्यान रखा।

                      फिर हम लोगों ने अपना घर बना लिया और मुझे उनका घर छोड़कर आना पड़ा बहुत रोए थे सब लोग और मुझे भी अच्छा नहीं लग रहा था मेरा अपने घर ही मन नहीं लगता था हर दूसरे दिन मैं उनके घर पहुंच जाया करती थी ।इतना अपनापन और प्यार मिलता था कि आने का ही मन नहीं करता था । बच्चे भी वही जाने की जिद करते थे ।

                  इस समय भाभी जी करीब 86 साल की हो गई है चलने फिरने में असमर्थ हो गई है यदि मैं कुछ दिन तक न जाऊं तो किसी तरह आटों करके मेरे पास आ जाती है और बड़े हक से डांटती है कि मैं आती नहीं हूं ।उनकी कोई समस्या हो तो उसका भी समाधान कराने आ जाती है ।

प्यार और ममता पाने के लिए खून के रिश्तों का होना जरूरी नहीं है कभी-कभी पराए लोग भी इतनी ममता लुटा देते हैं कि मन गदगद हो जाता है लगता है ऐसे लोगो के सामने खून के रिश्ते भी बेमानी है ।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

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