” मम्मी कल मेरी कॉलेज की फीस जमा करने का आखिरी दिन है फीस नही जमा हुई तो अंतिम वर्ष की परीक्षा नही दे पाऊंगा मैं !” नीलेश ने रुआँसा हो कहा।
” बेटा बहुत कोशिश की मैने पर अभी रुपयों का इंतज़ाम नही हुआ तेरे पापा के इन्शोरेंस के पैसे भी अभी नही आये । तू ऐसा कर मेरे साथ चल मैं अपने कंगन बेच आती हूँ उससे कुछ समय कट जायेगा !” परेशान माला जी बोली।
” मम्मी पापा ने कभी परेशानी मे भी आपके गहनों को हाथ नही लगाया फिर मैं कैसे !” नीलेश लगभग रो दिया ।
” बेटा जब तुम्हारे पापा जिंदा थे तब बात अलग थी अब तुम्हारी माँ भी मैं हूँ पिता भी चलो देर मत करो !” माला जी बोली।
” मम्मी क्यो ना आप चाचा से कुछ पैसे उधार ले लो जब हमारे पैसे आएंगे तब लौटा देंगे पापा ने भी तो उनकी कितनी बार मदद की है जबकि चाचा तो कभी लौटाते भी नही थे पैसे। फिर कुछ समय बाद मेरी भी नौकरी लग ही जाएगी । थोड़े बहुत गहने है आपके मैं कैसे उन्हे बेचने दे सकता हूँ !” नीलेश बोला।
“तुम्हे क्या लगता है मैं इतने दिनों मे चुप बैठी थी मैने तुम्हारे चाचा , मौसी सबसे मदद मांगी पर इंसान के गाढ़े दिन जब आते है सबसे पहले रिश्तेदार ही मुंह मोड़ते है । रही गहनों की बात अब मैं गहनों का क्या करूंगी तू पढ़ लिख अपने पैरो पर खड़ा हो जा बस यही मेरी इच्छा है अब देर ना कर चल जल्दी !” माला जी बेटे को ले बाजार चली गई।
कुछ समय बाद नीलेश इंजीनियर बन अच्छी जॉब पर लग गया , इधर इन्शोरेंस का पैसा भी आ गया पर वो अपने गाढ़े दिनों और उसमे सबका मुंह मोड़ना कभी नही भूला।
संगीता अग्रवाल
#गाढ़े दिन