गाल फुलाना – शुभ्रा बैनर्जी  : Moral Stories in Hindi

“बहू,लो अब टी वी पर दिखाने लगा, रीचार्ज करना पड़ेगा।आज रात को बंद हो  जाएगा।गज़ब है ये आजकल का डिश सिस्टम।पहले ही ठीक था,हर महीने केबल वाले आकर ले जाते थे पैसा।ये धमकी तो नहीं देते थे,बंद करने की।”शीला जी यह चेतावनी सुना रही थी। निर्मला सुन रही थी,पर रसोईघर साफ करने में व्यस्त होने के कारण जवाब  नहीं दिया था उसने।

पहले तो चिढ़ लग गई ,पर खुद ही बेटे से बोली”बाबू दादी का टी वी रीचार्ज करना है।कल बंद हो जाएगा।”बेटे ने आंख सिकोड़ कर पूछा”दादी का टी वी??ये बोलो कि आपका और दादी का टी वी।मानना पड़ेगा आप दोनों को।इतने मनोयोग से बकवास सीरियल कैसे देख लेतें हैं आप दोनों?”

बेटे की बातों में व्यंग का पुट समझकर निर्मला हमेशा की तरह बोली”मैं ज्यादा कहां देखती हूं?वो तो आखिर में एक सीरियल आता है,बस वही देखती हूं।अपने सारे काम निपटाकर देखती हूं।तुम लोग तो सारा दिन मोबाइल में ही जाने क्या-क्या देखते रहते हो,हम तो बस सीरियल ही देखतें हैं।”

बेटे ने हथियार डालते हुए कहा”हां मम्मी,आप कहां देखती हो?ठीक है कर दूंगा रीचार्ज।”

बातों-बातों में उसके,और निर्मला के दिमाग से यह बात निकल गयी।अगले दिन सुबह से दौड़ भाग करके सारा काम निपटा कर स्कूल निकल गई निर्मला,बेटा भी नौकरी पर चला गया।

दोपहर स्कूल से लौटने पर हमेशा की तरह शीला जी पलंग पर बैठी नहीं मिली।जब तक निर्मला स्कूल से आकर खाना ना खा ले,सासू मां सोती नहीं थीं।जैसे ही निर्मला का खाना होता,वो सो जातीं थीं।यही दायित्व का गुण उन्हें बाकी सासों से विशिष्ट बनाता था।वैसे तो यह कोई बड़ी बात नहीं थी,पर निर्मला को इसमें एक आत्मिक सुख मिलता था,कि कोई तो है जो उसके खाने ना खाने की परवाह करता है।शीला जी मां से भी बढ़कर थीं, निर्मला के लिए।

आज उन्हें लेटा देखकर ताज्जुब हुआ।काम वाली दीदी से पूछा”आज मां जल्दी सो गई,क्या बात है दीदी?खाना खाया ना उन्होंने?तबीयत ठीक तो है उनकी?”दीदी ने भी आश्चर्य जताते हुए कहा”हां दीदी,थोड़ी देर पहले ही खाना खाया है मां ने।अभी तक तो जगी थीं। तबीयत खराब तो लग नहीं रहा था।”ओह!!! निर्मला पास गई और आवाज दी”मां,ओ मां!क्या हुआ?तबीयत तो खराब नहीं है?”शीला जी ने झट से कहा”नहीं तो,सब ठीक है।

नींद आ गई अचानक तो सो गई। पता नहीं कब आंख लग गई?तुमने खाना खा लिया ना?”निर्मला भी पिछले तीस सालों से साथ रह रही थी उनके।इतना तो समझ ही गई थी कि,कुछ गड़बड़ी है।या तो किसी का फोन आया होगा,या तो बेटियों की तबीयत ठीक ना होने की खबर मिली होगी।ऐसे असमय सोने वाली तो नहीं थी,मां।खाना खाकर उन्हीं के बिस्तर में लेटकर आंख जैसे ही बंद की निर्मला ने,उन्होंने टी वी की तरफ देखा।

झट से समझ गई निर्मला,ओह!ये बात है।उनके बिस्तर से उठकर बैठक में आकर मोबाइल चलाने लगी निर्मला।

शाम को ठीक छह बजे उनका टी वी देखना शुरू होता था।क्या करेंगी वो भी।सारा दिन एक ही कमरे में बैठे-बैठे बोर हो जाती होंगी।पैर के आपरेशन के बाद ज्यादा चलना-फिरना वैसे भी नहीं कर पातीं थीं।सारा दिन अखबार, रामायण और गीता पढ़कर निकाल देतीं थीं।शाम छह बजे से अपनी मातृभाषा (बंगाली)के कुछ सीरियल देख कर ही मनोरंजन कर लेती थीं।काम की व्यस्तताओं की वजह से बहुत सारे सीरियल छूट जाते थे, निर्मला के।हर छूटे हुए सीरियल का रीकैप हूबहू सुना भी देतीं थीं वे। सीरियल देखते हुए दोनों सास-बहू अपना दुःख -सुख भी बांट लेते थे।

शाम को जैसे ही निर्मला ने टी वी ऑन किया, उन्होंने मौन रहकर अपनी जिज्ञासा बता दी”अरे,ये नहीं चलेगा अब।कल ही बता दिया था इसमें कि रीचार्ज करना है।”

निर्मला ने भी कुशल अभिनय करते हुए टी वी ऑन किया।टी वी के चलते ही,उस अस्सी साल की बुजुर्ग महिला के चेहरे में खुशी और संतोष की लहर देख सकती थी निर्मला।

काम पर आते ही काम वाली दीदी ने ,जब मां को देखा तो निर्मला से पूछा कि क्या हुआ था मां को? निर्मला ने चुटकी लेते हुए कहा”कुछ नहीं दीदी,मां की तबीयत बिगड़ी नहीं है,बस मुंह में सूजन आ गई थी।”शीला जी ने अचंभित होते हुए कहा”हैं!!!!!!,कहां सूजन ?कब आई सूजन?मुझे तो ऐसा लग ही नहीं रहा बहू।तुम्हें कहां दिखी सूजन मेरे चेहरे पर?”निर्मला ने हंसकर कहा”अरे नहीं मां,टी वी रीचार्ज ना होने से,तुम गाल फुला ली थी।सुबह ही रीचार्ज कर दिया है।अब गाल फुलाना बंद।तुम पर यह सूट नहीं करता।”

शीला जी मुस्कुराते हुए बोली”तुम भी ना बहू,भला मैं तुमसे गाल फुलाकर रह सकती हूं कभी?”

“नहीं कभी नहीं।”निर्मला  भी मां को छेड़ते हुए हंस दी।

शुभ्रा बैनर्जी

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