आज अगस्त महीने का पहला रविवार था दोनों बच्चे अनुज व अनुजा अपने हाथों में ढेर सारे रंग बिरंगे फीते लेकर यहाँ वहां भाग रहे थे ,दोनों बेहद खुश नजर आ रहे थे ।
” मम्मी आज फ्रैंडशिप डे हैं ” बच्चों का उत्साह देखने लायक था।
फ्रैंडशिप डे !! मनीषा ने चकित होकर सोचा और मुस्कुराते हुए एक खुबसूरत रंगीन घुंघरू वाला फीता उठाकर उसकी तरफ चल पड़ी।
” आज फ्रैंडशिप डे हैं, मैंने तुम्हारे लिए यह घुंघरू वाला फीता बनाया हैं तुम इसे पहनकर बहुत सुन्दर लगोगी, तुम मेरी सबसे अच्छी और सच्ची दोस्त हो ” मनीषा उससे बोली।
पर वो मासूम फ्रैंडशिप डे का अर्थ क्या समझती लेकिन मनीषा को अपने करीब आता देखकर वो अपनी बड़ी बड़ी पलकें झपकाकर और पूंछ हिलाकर खुशी से रंभाने लगी।
जी हाँ!! पूंछ हिलाकर।
मनीषा की यह प्यारी दोस्त और कोई नहीं मेरी कहानी की नायिका चितकबरी गाय हैं, मनीषा ने चितकबरी गाय को फ्रैंडशिप वाला फीता बांधा और आज से एक साल पहले के दृश्य को याद करने लगी जब उसका और चितकबरी की नयी दोस्ती वाली नयी शुरुआत हुई थी।
” चितकबरी तुम्हारे रवि भाई, मनीषा भाभी व बच्चे अनुज-अनुजा जल्दी ही तुमसे मिलने आ रहे हैं ” मनोहर जी ने चितकबरी से कहा।
चितकबरी ने अपनी बड़ी-बड़ी आखों वाली पलकें झपकाकर और गर्दन हिलाकर अपनी खुशी जाहिर करी।
” देखो चितकबरी कितनी खुश नजर आ रही हैं ” मनोहर जी की पत्नी गायत्री देवी खुशी से बोली।
और चितकबरी अपना बंधन तोड़कर जैसे नृत्य करना चाहती थी।
चितकबरी मनोहर जी व गायत्री जी की पालतू गाय जो उनके इकलौते बेटे रवि की भी बेहद प्रिय थी, रवि मुम्बई शहर में इंजीनियर के रूप में कार्यरत था उसकी पत्नी मनीषा शहर की आधुनिक लड़की थी और दोनों बच्चे अनुज व अनुजा भी शहरी तौर-तरीकों में पले-बढे थे।
रवि अपने परिवार के साथ कुछ दिनों के लिए गाँव के अपने पैतृक घर में छुट्टियाँ मनाने आता था और वे दिन मनोहर जी व गायत्री देवी के लिए स्वर्णिम होते थे।
चितकबरी भी अपने रवि भैय्या का इंतजार करती रहती थी।
” वाह दादी!! आपके यहाँ का दही व पनीर की सब्जी कितनी स्वादिष्ट हैं ” अनुज व अनुजा खाते हुए बोले।
” स्वादिष्ट कैसे नहीं होगी? चितकबरी के शुद्ध दूध से जो बनी हैं” गायत्री देवी बोली।
” मम्मी जी!! सब्जी व रायता तो मैंने बनाया हैं ” मनीषा जो चितकबरी से चिढती थी वो बोली।
मनीषा का मानना था की जब बाहर से दूध, दही, पनीर,घी सब आता हैं तो घर में गाय पालने की क्या आवश्यकता हैं?
मनीषा को चितकबरी की साफ-सफाई व काम से नफरत थी वह उसके पास भी नहीं फटकती थी और दोनों बच्चों को भी चितकबरी के पास जाने से रोकती थी।
रवि चितकबरी से अभी भी बेहद प्यार करता था और इस बार चितकबरी के लिए गले की सजावटी घण्टी लाया था जिसे पहनकर चितकबरी रवि को खुशी से चाट रही थी और मनीषा को उबकाई आ रही थी।
” न जाने इस चितकबरी से कब पीछा छूटेगा ” मनीषा अपने पति व बच्चों के चितकबरी के प्रति प्रेम से क्रोधित होकर बोली।
पर चितकबरी कोई इंसान नहीं थी वह अपनी मासूमियत लिए मनीषा के आसपास मंडराती रहती थी, कभी उसकी साड़ी को मुँह में चबाती थी,कभी अपने मुंह को उसके पैरों पर रगडती थी, कभी उसके कमरे की खिड़की में मुंह डालकर रम्भाती थी कुल मिलाकर वह मनीषा का स्नेह व सानिध्य चाहती थी।
” हे भगवान!! कब छुट्टिया खत्म होगी और इस चितकबरी नाम की बला से मेरा पीछा छूटेगा ” मनीषा मन ही मन चितकबरी को कोसती हुई नाराज हो रही थी।
पर चितकबरी तो भोली, अल्हड़ और नादान थी वो मासूम नहीं जानती थी की दुआएं देने के बदले उसे कोसा जा रहा हैं।
वो बरसात की एक सुनहरी सुबह थी, रात भर तेज बारिश होने के कारण चारों तरफ पानी भर गया था, चितकबरी अपने स्थान पर बंधी हुई चारा चर रही थी और मनीषा पूजा के लिए बगीचे में से फूल चुनने गयी थी।
अचानक चितकबरी जोर-जोर से मनीषा को देखकर रम्भाने लगी थी व गले में बंधी घण्टी हिलाने लगी थी।
” ये गाय इतनी मनहूस और ढीठ हैं, अपनी हरकतों से बाज नहीं आयेगी ” मनीषा क्रोधित होकर बोली।
तभी चितकबरी ने पूरी शक्ति से अपने सामने पड़ी स्टील की भारी-भरकम नांद को जिसमें चारा रखा था कसकर एक लात मारी और नांद उछलकर मनीषा के समीप गिर गयी।
” चितकबरी !! मुझे चोट पहुंचाना चाहती थी ” मनीषा ने वहां पर चितकबरी की आवाज सुनकर आये परिवार वालों को बोला।
” नहीं मनीषा !! चितकबरी बहुत शान्त स्वभाव की हैं उसने ऐसा किसी वजह से किया होगा” रवि बोला।
और जब चारे से भरी नांद को हटाया गया तो वहां पर एक काला भुंजग सांप रेंगता नजर आया सभी परिवार वाले डर से कांप उठे और सर्पमित्र को बुलाकर उस साँप को हटाया।
मनीषा को वह साँप डसने वाला था इसलिए चितकबरी रम्भाने लगी थी और उसने अपनी सूझबूझ से मनीषा की जान बचाई थी।
मनीषा की आखों से पश्चाताप के आँसू बहने लगे आज वह चितकबरी की आजीवन आभारी हो गयी थी,आज उसे समझ में आया की गाय को गौमाता का दर्जा क्यों दिया जाता है?
आज एक माँ की तरह चितकबरी ने मनीषा के प्राणों का संकट हर लिया था, और बदले में वह मासूम गाय सिर्फ मनीषा का स्नेह चाहती थी।
” चितकबरी !! मुझे माफ कर दो मेरी बहुत छोटी सोच हैं मैंने हमेशा तुम्हारे साथ बुरा बर्ताव किया” मनीषा आज चितकबरी को अपने हाथों से चारा खिला रही थी।
यह दृश्य देखकर सभी परिवार वाले भावविभोर हो गये थे।
” अरे मनीषा !! चितकबरी के पास से आज बदबू नहीं आ रही हैं?” रवि हंसते हुए बोला।
और चितकबरी मनीषा का हाथ बड़े प्रेम से चाटने लगी, मनीषा का कोसना अब सच्ची दोस्ती व दुआओं में बदल गया था।
मनीषा अतीत के उन पलों को याद करने लगी और यह सोचने लगी की सच्चा निस्वार्थ प्रेम तो जानवर को भी समझ में आता हैं, वह भी दोस्ती का फर्ज निभाना जानता हैं फिर क्यों इंसान इतना कृत्घन हो जाता हैं कि अपना मतलब निकल जाने पर इन मूक, मासूम जानवरों को कसाईखाने में मरने के लिए छोड़ देता हैं ?
” चितकबरी !! तुम्हारी व मेरी अंतिम सांस तक तुम इसी घर में रहोगी, हमारी दोस्ती हर साल पहले से भी ज्यादा मजबूत बनेगी।
और चितकबरी खुशी से सर हिलाकर फिर से रंभाने लग गयी।
# यारी_ दोस्ती
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पायल माहेश्वरी
यह रचना स्वरचित और मौलिक हैं
धन्यवाद।