फ्रिज का पानी – नेकराम : Moral stories in hindi

गर्मी शुरू हो चुकी आज बर्फ का ठंडा पानी पियेंगे मां ने मुझे दो रूपए देते हुए कहा,,मैंने झट दो का नोट पकड़ते हुए मां से कहा  मुझे शर्म आती है दो रुपए की बर्फ लाने में दुकानदार हमेशा चिक चिक करता है कहता है पांच रुपए की बर्फ है फिर भी मुझे दे देता है यह कहकर की अगली बार से पांच रुपए लाना ,,,मोहल्ले के सभी लोगों के घरों में फ्रिज आ चुके हैं सब फ्रिज का ठंडा पानी पीते हैं अपने घर में कब फ्रिज आएगा,,

तब मां बताने लगी तेरे बापू जितना कमाते हैं सब घर में खर्च हो जाता है हम फ्रिज नहीं खरीद सकते

मैं दो रूपए लेकर बर्फ लेने चल पड़ा इस बार दुकानदार अपनी बात पर अड़ गया ,, कहने लगा तू फिर आ गया दो रुपए लेकर इस बार तुझे बर्फ नहीं मिलेगी जा कोई दूसरी दुकान ढूंढ ले उस दिन मैंने सारी मार्केट छान मारी मगर दो रूपए की बर्फ कहीं ना मिली

धूप में कमीज पसीने से भीग चुकी थी चिलचिलाती तेज धूप में नंगे सर इधर-उधर दौड़ता रहा अंत में खाली हाथ वापस घर लौटना पड़ा मन उदास था इस बार भी गर्मियों के दिनों में गर्म पानी पीना पड़ेगा पड़ोसी भला अपने फ्रिज का पानी हमें क्यों देंगे एक बार पड़ोसी ने तो साफ मना कर दिया था कहने लगे हमारे फ्रिज का बिजली का बिल भी आता है तुम्हारे घर फ्रिज नहीं है तो हम क्या करें उनकी जली कटी सुनने से अच्छा है कि गर्म पानी ही पी लिया जाए

लेकिन उस दिन मेरा दिमाग खराब हो गया बिजली चली गई सूरज की तपन से ऊपर वाला हमारा कमरा एकदम तपने लगा मां और बहन तो गली के बाहर चौखट पर बैठ गई लेकिन मैं कहां बैठूं मुझे घर से बाहर निकलना इधर-उधर घूमना पसंद नहीं था

तभी गली में रिक्शा पर लदा एक फ्रिज आता नजर आया लो एक और पड़ोसी का फ्रिज आ गया मां ने बहन को बताया मैं छज्जे पर खड़ा सुन और देख रहा था

अचानक मेरे कदम सीढ़िओ से नीचे उतरे चौखट पर बैठी अम्मा और बहन के बीच से निकलकर मैं बाहर की तरफ चल पड़ा

मां ने एक बार टोका भी नेकराम इतनी भरी दुपहरी में कहां जा रहा है मगर मैंने कोई जवाब ना दिया बस इतना कहा अभी आता हूं ,,

मोहल्ले की एक बड़ी सी फ्रिज की दुकान पर पहुंचा वहां बहुत सारे छोटे बड़े फ्रिज रखे हुए थे उन फ्रिजों को देख मन बड़ा खुश हो गया काफी देर तक उन फ्रिजों को देखता रहा तभी दुकान के अंदर बैठे एक मोटे आदमी ने घूरते हुए अपने नौकर से कहा जरा देख दुकान के बाहर कौन लड़का खड़ा है कहीं चोर ना हो हमारा सामान दुकान के बाहर तक फैला हुआ है,,  वह नौकर गले में गमछा डाले मेरी और बढ़ा,,

क्या चाहिए इतनी देर से दुकान के भीतर क्यों झांक रहा है नौकर की बात सुनकर पहले तो मैं डर गया कि इन्हें क्या जवाब दूं फिर मैंने बोला जी हमारे घर फ्रिज नहीं है मुझें एक नया फ्रिज खरीदना था मेरी बात सुनकर नौकर मुझे दुकान के भीतर ले गया और दुकानदार से मिलवा दिया

दुकानदार ने मुझे नीचे से ऊपर तक देखा पतला दुबला शरीर बदन पर पसीने से भीगी हुई एक पतली सी कमीज पैरों में पुरानी घिसी चप्पल उम्र 13 साल के आसपास

हां बोल छोकरे ,,,  तुझें क्या चाहिए,,  हम फ्रिज बेंचते हैं तब मैंने कहा मेरे पास पैसे नहीं है मगर एक फ्रिज खरीदना था

दुकानदार ने एक फ्रिज की तरफ इशारा करते हुए कहा यह लाल रंग का फ्रिज इसकी कीमत साढ़े तीन हजार रुपए है तुम्हारी जेब में कितने रुपए हैं

दुकानदार की बात सुनकर मैंने कहा अभी तो नहीं है इतने रुपए लेकिन मैं इंतजाम कर लूंगा क्या आप मुझें नौकरी पर रख सकते हो दुकानदार ने मुझे गौर से देखा और कहा हम बच्चों को काम पर नहीं रखते बड़े-बड़े फ्रिज रिक्शे पर लादने होते हैं तुमसे तो फ्रिज हिलेगा भी नहीं घर-घर फ्रिज पहुंचाने भी पड़ते हैं

तब मैंने कहा मैं सब काम कर लूंगा आपको शिकायत का मौका नहीं दूंगा मुझे एक फ्रिज खरीदना है इसके लिए मैं सब कुछ करने के लिए तैयार हूं तब दुकानदार कहने लगा ,,  मैं तुम्हें नौकरी पर नहीं रख सकता बात समझा करो तुम अभी बहुत छोटे हो

मैं दो घंटे तक दुकान के बाहर धूप में खड़ा रहा फिर अचानक दुकानदार बोला इधर आओ दुकान के अंदर,,

क्या नाम है तुम्हारा जी मेरा नाम नेकराम है कक्षा सातवीं में पढ़ता हूं ठीक है मैं तुम्हें नौकरी पर रखता हूं मैं चाहता हूं तुम्हारी पढ़ाई भी ना रुके तुम रोज सुबह 9:00 बजे मेरी दुकान पर आओगे 3 घंटे काम करोगे दोपहर के 12:00 बजते ही तुम घर चले जाना तुम्हारा स्कूल दोपहर 1:00 बजे लगता है शाम को स्कूल से 6:00 बजे छुट्टी होने के बाद तुम सीधे दुकान पर आओगे एक घंटे काम करोगे फिर घर चले जाना यही रोज का नियम रहेगा

दुकानदार से नौकरी की बात करके मैं खुशी-खुशी घर लौट आया  ,,,  एक महीने बाद ,,

नेकराम शाम के 7:00 बज चुके हैं मैं देख रही हूं तू रोज स्कूल से लेट आता है स्कूल से छुट्टी तो शाम 6:00 बजे हो जाती है फिर तू एक घंटे कहां गायब रहता है और सुबह भी घर से गायब रहता है कहीं आवारा लड़कों के साथ तो नहीं घूमने लगा  मां ने डांटते हुए कहा

मेरी खामोशी देखकर बहन बोल पड़ी पहले तो नेकराम घर में ही रहता था अब एक महीने से बाहर ही घूमता रहता है बड़े भाई ने भी मौका ना छोड़ा अब नेकराम को कमरे में कैद करके रखना पड़ेगा तभी नेकराम सुधरेगा  ,, अगले दिन ,,

सुबह आंख खुली तो घड़ी में 8 बज चुके थे कमरे में मैं अकेला था दरवाजा बाहर से बंद था मैंने दरवाजा हिलाया मगर ना खुला दीवार पर एक छोटी खिड़की थी जो पड़ोसी की छत की तरफ खुलती थी मैंने एक स्टूल की मदद से खिड़की को खोला और पड़ोसी की छत पर कूद गया

लेकिन अब पड़ोसी की छत से नीचे कैसे उतरू क्योंकि पड़ोसी की सीढ़ियां तो कमरे के भीतर है ,,,

भगवान का नाम लेकर मैं सीढ़िओ से नीचे उतर आया कमला आंटी रसोई घर में कुछ पका रही थी उनका सात महीने का बेटा हर्ष पलने में झूल रहा था मैं दबे पांव आहिस्ता आहिस्ता आंटी के कमरे से बाहर गली में आ गया मौका अच्छा था किसी ने देखा नहीं मैं दौड़कर दुकान पर पहुंच गया ,, फिर रोज की तरह 12:00 बजे घर वापस लौट आया तो

कमला आंटी दरवाजे पर ही बैठी थी गली में मां दूसरी पड़ोसन से बातें कर रही थी मुझे देखते ही मेरा कान पकड़ते हुए बोली सुबह मैंने जब ताला खोला तो तू वहां कमरे में नहीं था,,  अब आ रहा है मौज मस्ती करके ,,, आज तेरी चमड़ी उधेड़ दूंगी ,,  गली में पीटते हुए मुझे कमरे में ले गई भाई दौड़कर रस्सी ले आया बहन ने मेरे दोनों हाथ पैर बांध दिए अब तू कहीं नहीं भाग सकेगा तभी एक मिस्त्री दो चार ईंटें सीमेंट हथौड़ी वसूली लेकर आया और जिस खिड़की से मैं भागा था वह खिड़की उसने बंद कर दी

शायद लगता है घर के लोगों को पता चल गया होगा कि मैं खिड़की से भागा हूं क्योंकि स्टूल तो खिड़की के नीचे ही रह गया था और खिड़की भी खुली रह गई थी

उस दिन मां ने मुझे खाना खिलाया मगर मेरे हाथ पैर न खोले और कहा नेकराम तू सच-सच बात कहां जाता है,, मगर मैं चुप रहा

उस दिन मां ने मेरी शिकायत शाम को पिताजी से लगा दी

पिताजी ने एक मोटे डंडे से तबियत से मुझे कूटा जिस्म पूरा लाल हो गया पड़ोसियों ने आकर मुझें बचाया तब पिता बोले आप लोग नहीं जानते नेकराम घर से बाहर घूमने लगा है आज इसकी दोनों टांगे तोड़ दूंगा ताकि यह भाग न सके तभी गली से एक व्यक्ति दरवाजा खटखटाता हुआ बोला,,  नेकराम का यही घर है पिताजी ने छज्जे से झांका तो एक रिक्शे वाला अपने रिक्शे पर एक लाल रंग का फ्रिज रखें जोर-जोर से नेकराम नेकराम पुकार रहा था

तब पिताजी ने मां से कहा लगता है किसी पड़ोसी ने नया फ्रिज मंगवाया होगा मगर यह नेकराम को क्यों बुला रहा है अम्मा ने कहा जाओ ,, गली में पता करके आओ आखिर बात क्या है और फ्रिज का पता लगाओ किस पड़ोसन ने मंगवाया है भाई ने जवाब दिया कालेराम की किराने की दुकान है खूब चलती है उसी ने मंगवाया होगा

रिक्शे वाले ने अब तक फ्रिज हमारे घर की देहरी पर रख दिया तब मां ,, बड़बड़ाती हुई बोली ,, अरे रिक्शा वाले भैया ,, किसी और का फ्रिज हमारी देहरी पर क्यों रखते हो उठाओ इसे ,, जिसका है वहीं ले जाओ,,

तब रिक्शे वाले ने कहा मेरे पास एक रसीद है इसमें इसी घर का पता लिखा हुआ है और गोपाल नाम लिखा है तब पिताजी बोले गोपाल तो मेरा ही नाम है पता भी हमारे घर का लिखा हुआ है मगर हमने तो कोई फ्रिज नहीं खरीदा शायद तुमसे कोई भूल हो गई होगी

,, मैं छज्जे पर खड़ा सब देख रहा था ,,

अम्मा बोली हमारे घर तो खाने को एक दाना नहीं हम फ्रिज कहां से खरीद सकते हैं और नेकराम के बापू तो दुकान पर फ्रिज खरीदने गए भी नहीं

इतने में फ्रिज के दुकान का मालिक एक स्कूटर पर बैठा गली में आता नजर आया हमारे घर के बाहर स्कूटर रोक दिया और कहा नेकराम ने पेमेंट कर दी है यह फ्रिज अब आप लोगों का है नेकराम एक महीने से हमारी दुकान में नौकरी कर रहा था बड़े-बड़े फ्रिजों को मकान के ऊपर पहुंचाना कोई आसान काम नहीं है पढ़ाई के साथ-साथ पार्ट टाइम जॉब करना और घर में किसी को ना बताना बहुत बड़ी बात है

नेकराम ने ही मुझसें कहा था कि घर में मेरी नौकरी की बात का जिक्र किसी से न करना वरना मेरी  मां को दुख होगा और मां मुझें नौकरी नहीं करने देगी , नेकराम ने यह भी कहा था जब फ्रिज के रुपए इकट्ठे हो जाएं तब यह फ्रिज मेरे पिताजी के नाम पर रसीद काटना घर में पिता के होते हुए में रसीद में अपना नाम कैसे लिखवा सकता हूं  इसमें मेरे पिता का कहीं सर झुक न जाए मैं भी मोहल्ले वालों को बताना चाहता हूं कि हमारे पिताजी ने भी हमारे  लिए एक नया फ्रिज खरीदा है

गली में भीड़ इकट्ठी हो चुकी थी ,, मैंने कान पकड़ते हुए कहा आज के बाद बिना बताए कोई काम नहीं करूंगा

उस दिन मां बहुत रोई जब मेरे हाथों में छाले देखें बहन-भाई के आंसू थम नहीं रहे थे पिताजी ने मुझे सीने से लगा लिया

नेकराम सिक्योरिटी गार्ड

मुखर्जी नगर दिल्ली से

स्वरचित रचना

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