सुचिता अपनी एयर होस्टेस बेटी केतकी के विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने का समाचार सुनकर अचेत हो गई थी। उसके पति सौरभ ने तुरंत डॉक्टर को बुलवाया। डॉक्टर के द्वारा इंजेक्शन लगाने के लगभग आधे घंटे बाद सुचिता को होश आया था और वह रोने लगी थी।
रोते-रोते सौरभ से कहने लगी-“आप केतकी को फोन लगाइए ना।”
सौरभ-“तुम चिंता मत करो, तुम तो इतनी बहादुर अर्पिता की बहन हो। केतकी का फोन आया था ,सब ठीक है। विमान उतरते समय रनवे पर फिसल गया था लेकिन पायलट ने सब कुछ संभाल लिया और हादसा होने से बच गया। सब सुरक्षित है। केतकी थोड़ी देर में घर आ जाएगी।”
सुचिता-“नहीं, आप मुझे तसल्ली देने के लिए ऐसा कह रहे हो, मुझे भी केतकी से बात करनी है।”
सौरभ-“समझो, अभी वह व्यस्त है बात नहीं हो सकती और मैं सच बोल रहा हूं।”
सुचिता उठी और अपनी बेटी के केतकी के बचपन की तस्वीर उठा कर उसे बड़े प्यार से निहारने लगी। इस तस्वीर में केतकी अपनी अर्पिता मासी की पीठ पर चढ़ी हुई थी और दोनों मुस्कुरा रही थी।
“अर्पिता”सुचिता की बड़ी बहन, जो सचमुच देश के लिए समर्पित हो गई। अर्पिता जब फ्लाइट ऑफिसर बन कर पहली बार घर आई थी तब पूरा परिवार कितना खुश था। सबने यही कहा था कि अर्पिता तुमने हमारा मस्तक गर्व से ऊंचा कर दिया है।
और फिर कुछ दिन बाद शुरू हुआ भारत पाकिस्तान कारगिल युद्ध। 18000 फीट की ऊंचाई पर होने वाला यह युद्ध डेढ़ महीने से भी ज्यादा दिन चला। सैकड़ों सैनिक शहीद हो गए और हजारों सैनिक घायल हो गए। भारतीय सेना ने अदम्य साहस का परिचय दिया और दुश्मन को दूर तक खदेड़ दिया।
भारतीय सेना के साथ-साथ हमारी महिला ऑफिसर पायलटों ने भी बहुत साहस से कार्य किया। उन्हीं में शामिल थी”अर्पिता”
उसने घायल भारतीय सैनिकों को सुरक्षित वापस पहुंचाने का कार्य बड़ी कुशलता से किया और बहुत सारे सैनिकों के प्राणों की रक्षा की और जब वह इस बार कई सैनिकों को विमान से ला रही थी तब उसक विमान के एक इंजन में शायद कुछ कमी आ गई फिर भी उसने विमान को सुरक्षित उतार लिया और सारे घायल सैनिकों को विमान से उतारने में मदद करती रही और अंत में जब वह विमान से स्वयं उतरने लगी तब अचानक विमान में एक जोरदार धमाका हुआ और उसके साथ ही अर्पिता देश के लिए बलिदान हो गई।
उसके अदम्य साहस के लिए जब उसे मरणोपरांत”महावीर चक्र”प्रदान किया गया तब दादाजी, डैडी और मम्मी सबने भरी आंखों से और गर्व से यही कहा कि”हमारी बेटी हमारा स्वाभिमान है।” जय हिन्द।
सुचिता इन सब बातों को सोचते हुए इतना खो गई थी कि उसे पता भी नहीं चला कि बहुत समय बीत चुका है और तभी दरवाजे पर घंटी बजी। दरवाजे पर केतकी खड़ी थी। सुचिता ने उसे अपने हृदय से लगा लिया और रोने लगी। तब केतकी ने उसके आंसू पहुंचते हुए देखा कि उसके एक हाथ में तस्वीर है।
केतकी ने कहा-“मम्मी, मासी को याद कर रही थी ना और करें भी क्यों ना। मेरी मासी सचमुच हमारा स्वाभिमान ही तो है।”
स्वरचित काल्पनिक
गीता वाधवानी