भैया ”
छोटे, तू “
तू तो दस वाली गाडी से आने वाला था!
भैया, छोटा भाई मेरी गर्दन पकडकर झूल गया!
मैने उसे बाहों में जकड लिया, कुछ चिपचिपा सा लगा “
खून “”” क्या हुआ बता, बाकी सब कहा है!
सब पीछे उखडती सी आवाज में छोटे बोला,
क्या हुआ बेटा, इतनी देर से किससे बात कर रहा है, कौन है वहाँ, मुझे कुछ समझ नही आ रहा था!
माँ टार्च ” बस इतना ही बोल पाया, माँ आगे आ गयी, छोटे पर नजर पडते ही रोने लगी “
मैने माँ से झपट कर टार्च छीन लिया, और छोटे की ओर रोशनी डाली!
उसका पूरा शरीर, खून से लथपथ था!
अभी खुद को संभाल भी न पाया की बच्चे के रोने की आवाज पीछे से आयी!
टार्च की रोशनी उधर फेकते ही रक्षा, नजर आयी! मै छोटे को मां के पास छोड़, रक्षा की ओर भागा’ जो की कुछ ही कदम पर अर्द्ध मूर्छित अवस्था मे पडी थी!
उसके तन पर नाम मात्र कपड़े थे!
उसके बगल मे एक बहुत ही प्यारा बच्चा अगूंठा चूस रहा था!
रक्षा, रक्षा “””
अधखुली आंखों से उसने मुझे देखा, मैने उसे गले लगा लिया वो थर थर कांप रही थी!
मैने उसे उठाने की चेष्टा की, वो उठ न पायी!
मैने बच्चे को उठाया और माँ की ओर बढ गया!
बच्चे को माँ की गोदी मे डालकर, कर वापस रक्षा की ओर झपटा, रक्षा को बाहो मे भरकर, घर के बरामदे की ओर बढ गया, अब तक पापा जी भी उठ गये थे!
वो लकडी का सहारा ले बरामदे तक आ चुके थे!
क्या हुआ बेटा मैने बिना कुछ जबाब दिऐ, रक्षा को तख्त पर सुला दिया!
और माँ की ओर वापस भागा “
छोटे कराह रहा था!
अब मेरा दिमाग काम करने लगा था!
छोटे को बाहों में उठाकर, बरामदे की ओर बढ गया!
माँ मेरे पीछे पीछे अंदर आ गयी! वो बेतहाश रोये जा रही थी!
मै वापस मुडा, दरवाजे की ओर तेजी से भागता चला गया!
घर से कुछ दूरी पर ही, डाक्टर वर्मा का दवाखाना था!
मैने कुछ ही क्षण में वो दूरी तय कर ली, जीवन मे पहली बार मै इतनी तेज दौड़ा था!
मै पागलों की तरह उनको आवाज देने लगा!
मेरी वजह से मोहल्ले के काफी लोगों की नींद टूट गयी!
ऐसा पहली बार हुआ! किसी अनहोनी की आशंका से, सब अपने घरो से निकलने लगे!
मेरे आसपास एकत्र होने लगे ” सबके मन में एक सवाल, आखिर हुआ क्या ” जिसका जबाब मेरे पास भी नही था!
डाक्टर साहब समझ गये थे की कुछ हुआ जरूर है, वो बाहर आये तो उनके हाथ मे फास्ट एंड का बक्सा था!
आगे आगे मै ,पीछे डाक्टर साहब, ओर उसके पीछे, मोहल्ले वाले, जिनकी संख्या धीरे धीरे बढ रही थी!
दरवाजे तक पहुंचे थे की बच्चे की रोने की आवाज सुनाई देने लगी “
धीरे धीरे भोर होने लगी थी, हल्का हल्का उजाला भी फैलने लगा था!
पापाजी की गोदी में छोटे का सिर था!
वो उसे बस घूर कर देखे जा रहे थे! माँ भी जैसे मदहोश हो गयी थी! कभी रक्षा की ओर भाग कर जाती!
कभी बच्चे को संभालती कभी छोटे के पास “
डाक्टर साहब छोटे की ओर बढ गये!
अब तक मोहल्ले की कुछ औरते भी आ चुकी थी! जो रक्षा के इर्द गिर्द इकट्ठा हो गयी थी!
पर रक्षा अभी भी निस्तेज थी! मेरे जाने के बाद माँ ने शायद उसे चद्दर से ढक दिया था!
छोटे पूरी तरह से खामोश था!
डाक्टर ने, खमोशी से मेरी ओर देखा, न मे गर्दन हिलायी!
मेरी आँखों के सामने अधेंरा छा गया!
फिर शायद मै बेहोश हो गया था!
जब आंख खुली, धूप ऊपर चढ चुकी थी! मेरे आसपास काफी लोग मौजूद थे!
माँ मूढ की भांति अपने शरीर को ढो रही थी!
पापाजी जी, मैने तेजी से उठने की कोशिश की ” पर उठ न सका ”
कुछ देर वैसे ही चारपाई पर पडा रहा!
मेरी तरह सबके मन मे सवाल था की आखिर हुआ क्या!
जिसका जबाब अब एक के पास था!
जो खुद जिदंगी मौत से लड रही थी! नर्स ने रक्षा के घाव साफ कर पट्टी कर दी थी!
और शायद पडोस की महिलाओं ने उसके चेहरे को साफ भी कर दिया था!
मै धीरे धीरे उठा, और आंगन की ओर बढ गया!
जहाँ छोटे को जमीन पर ही दरी पर सुला दिया गया था!
पापा जी पास ही बेजान से बैठे थे!
पापा जी मै उनकी ओर दौड़ा, पापा जी, उनके गले लगकर मै उनकी बाहों मे छुप जाना चाहता था!
पर शायद उनमें इतना हौसला नहीं था न ही ताकत थी की मुझे संभाल सके “
बस वो छोटे को देखे जा रहे थे!
अखिर मैने उन्हें गले लगा लिया, वो ऐसा क्षण था! जब पहली बार मैने पापा जी को फफक फफक कर रोते देखा “
सबकुछ खत्म हो गया, बस इतना सा ही बोल पाये!
मुझे काफी लोग समझाने लगे बेटा हिम्मत मत हारो, शायद भगवान को यही मंजूर था!
आखिर क्या बिगाड़ा था हमने भगवान का”
खुद को संभालो “बेटा “
अभी इतनी बड़ी विपत्ति “है बेटा”
और अब सब तुम्हारे ही कंधे पर हैं, तुमको ही सब सभांलना है, हौसला रखो बेटा, एक बुजुर्ग दद्दा जी बोले, हम सब तुम्हारे है, और साथ है!
अब तो समय हो रहा है, छोटे को भी ले जाना है!
मै चौंका, कहाँ ले जाना है, छोटे को”
इतने दिन बाद तो आया है, अब कही नही भेजूंगा मै “
मै छोटे की ओर बढ गया!
छोटे उठ जा, उसे मैने उठाने की कोशिश की, पर उठा न पाया ” वो बेजान था!
मेरे दिमाग ने सरगोशी की, तो क्या छोटे मर गया!
पापाजी छोटे मर गया,
मेरा भाई,,
, मुझे याद नहीं मै, पागल हो चुका था! कुछ भी बोल रहा,
भाई मुझे बता तेरे साथ क्या हुआ “
राधा अचानक मुझे राधा याद आयी! राधा कहाँ है, मेरी बहन कहाँ है, मैने छोटे के मृत शरीर को झिझोड दिया! कुछ जबाब न मिला “
रक्षा रक्षा”” मै घर की ओर भागा रक्षा,
रक्षा दीवार के सहारे टेक लगाकर बैठी नजर आयी!
रक्षा” राधा कहाँ है!
वो बेजान थी कुछ न बोली ” कोई कुछ बोलता क्यूँ नहीं “
मैं वापस भाग कर आया ” कोई तो बताओ अखिर हुआ क्या “
मै जार जार रोये जा रहा था!
माँ मेरे सामने आकर खडी हो गयी, तू पागल मत बन, ये रही राधा, छोटे बच्चे को मेरे हाथों में थमा दिया!
राधा”
सच पूछो उस समय वो बच्चा राधा मे परवर्तित हो गया!
मै बिल्कुल शांत हो गया!
चौधरी साहब चलो अब मिट्टी खराब न करो, पहले ही बहुत देर हो चुकी है! पापाजी ने मुझे देखा मै पूरी तरह से शांत था!
अब उन्हें मेरी चिंता थी!
उन्होंने सहमति जताई,
आगे जारी,
रीमा ठाकुर