फिर गृह प्रवेश – जयश्री बिरमी

जैसे ही मीता ने कहा कि बेटी हो तुम मां का दर्द तो बेटियां ही ज्यादा समझती हैं।सामने से बेटी रिया ने फोन एकदम काट दिया और वह बोलती रह गई।

फोन को हाथ में लिए उसको तक के देखती रही।

सारी उम्र की तकरीर सामने से गुजरने लगी।जैसे सिनेमा देख रही हो।

  वह ७ साल की ही थी कुछ समझ नहीं आया मां को लिटा के सब रोते रोते क्यों सज़ा रहे थे।सिंदूर तो इतना लगाया था कि आने वाला साल भर लगाना ही न पड़े।इतने फूल ….गले में माला और हाथ में लिए सब उनकी छाती और पांव पर डाल रहे थे। बाद में तो कुछ लोगो ने उनका मांचा ही उठा के राम नाम ले चलना शुरू कर दिया।

मौसी,भुआजी और सब रिश्तेदार  जो पहले धीरे रो रहे थे वह छाती फ़ाड़ रूदन करने लगे और साथ में बोल भी रहे थे इस मासूम को तो देख लेती क्यों छोड़ चली थी।उन सब को रोते देख मीता भी रोने लगी थी। उस्के पापा औंसरे में बैठ रोते रहे किंतु उन लोगो के साथ गए नहीं।

औरते थोड़ी दूर तक साथ गई और वापस आ कमरे में बैठ गई।आपस में मीता की मां की अच्छाइयां बखान रही थी।और साथ में रोती जा रही थी ।उन में उसकी मौसी और नानी सब से ज्यादा रो रही थी।कुछ औरते उनको को चुप करने की कोशिश कर रही थी।सब कुछ बहुत अजीब सा लग रहा था मीता को ,लेकिन उसके नन्हे मन ने जो नहीं समझा वह अब उसकी समाज में आता था।

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   कुछ घंटो में जो उसकी मां को लेके गए थे वह लोग भी वापस आए किंतु उसकी मां को साथ नहीं ले थे ,उसने इधर उधर देखा किंतु वह बालिका को कुछ समझ नहीं आया।कुछ दिन सब रिश्तेदार रुके घर में फिर बारी बारी अपने घर चले गए,नानी और बूआजी  को छोड़ कर।सब शमको बैठ कुछ उग्र चर्चा करते थे और बात बात पर मीता का नाम ले दुहाई देते थे।महीने बाद कुछ पूजा हुई और उसमे रिश्तिदारों के साथ कुछ अजनबी लोग भी शामिल हुए थे।

पूजा के बाद सभी लोग चले गए और वह अजनबी लोग भी।अब मीता को स्कूल भेजा जाने लगा। और मौसी ,दादी और नानी ने घर संभाल लिया था।उसे सब बड़े प्यार से रखते थे ,जो उसे खाना हो वही घर में बनता था,जो उसे पहनना हो वही पहनाया जाता था।इतने लाड उसे पसंद थे पर अपनी मां की कमी खलती थी।

एक दिन वह स्कूल से आई तो वो अजनबी मेहमान आए हुए थे सब खुश थे ,घर में  अच्छे अच्छे  पकवान बने हुए थे उसके पापा ने भी नए कपड़े पहने थे।घर में बहुत दिनों के बाद खुशियां जलक रही थी।जो मेहमान थे उन्हों ने उसके पापा को टीका लगाया और कुछ भेंट आदि दिया और मीता,नानी,दादी मौसी सब को भी भेंटे मिली।शाम तक सब चले गए तो वह नानी के साथ सोने चली गई।नानी ने उसके बाल सहलाने लगी और प्यासे गले लगा लिया और बोली थी कि अब उसकी नई मां आयेगी।वह सोच भी नहीं पाई नई मां क्या होगी,कैसी होगी और अपनी मां की शक्ल के साथ नई मां को जोड़ के समझने की कोशिश करती करती सो गई।



कुछ दिन बाद सब अच्छे कपड़े पहने वही नए महमानों के घर गए और एक सांवली सी थोड़ी मोटी से सजी धजी औरत को ले आए जिसे उसकी मां बोल रहे थे,नई मां।दो तीन दिन बाद उसकी  नानी और मौसी चले गए और वह दादी और उसके पापा  और नई मां के साथ रह गई।

कुछ दिन तो सब ठीक चला लेकिन बाद में उसकी मां की नुक्ताचीनी शुरू हो गई।उसे देर से उठने की आदत थी तो उसकी मां को अखर ने लगा।पहले तो खुद टोकती थी किंतु बाद में तो उसके पापा भी जिडकी देने लगे।जो उसके लिए नई बात थी,उसके पापा ने कभी दो शब्द भी कड़वे नहीं कहे थे,वह मां और पापा कि बहुत  लडली  थी।

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और अब की जो परिस्थियाँ थी वह उसे बहुत मुश्किल  लग रही थी।किंतु उसे उसीमे जीना था और कोई छोर था ही नहीं। कभी कभी एकड़ दिन के लिए मौसी नानी के साथ मीता को मिलने आ जाती थी किंतु उसकी मां चालाकी से घरके हालत छुपा जूठा  प्यार  दिखा  सब छुपा लेती थी।

धीरे धीरे घर काम में हाथ बटातें बटातें कब धर का सारा काम मीता के सिर पे आगया समज न पाई वह।उसकी नई मां को घूमने फिरने का बहुत शौक था ,कभी कोई रिश्तेदार कभी कोई सहेली या कोई पड़ोसी के घर जाती रहती थी या उन में से कोई न कोई उनके घर आएं रहते थे।उनकी आवभागत करने की जिम्मेवारी भी मीता की ही थी।ऐसे हालातों में मुश्किल से कॉलेज तक की पढ़ाई की,लेकिन उसकी मां को यह मंजूर न था।

एकदिन उसके पापा का वीटो पावर आया कि अब वह घर काम करें दो साल कॉलेज के हो गए हैं वही बहुत था।वह रोई गिड़गड़ाई लेकिन सब व्यर्थ था।हमेशा की तरह वह सोने के समय मां की फोटो के सामने खूब रोई कि क्यों उसकी मां उसे छोड़ के चली गई थी? उसके हालत ठीक नहीं थे , उसको मौसी की याद आई और उसने अपने पापा से बात कर मौसी के घर जाने की इच्छा जताई।और पता नहीं कैसे उसे भेज ने का इंतजाम हो गया।

मौसी के घर पहुंच उसके गले से लग बहुत देर तक रोती रही मीता और मौसी भी खूब रोई।बाद में मीता ने मौसी से शिकायत की कि कभी उसकी खबर क्यों नहीं ली उन्होंने।मौसी ने भी अपनी मजबूरियां बयान की,उसके घर में बूढ़े सास ससुर और कौटुंबिक जिम्मेवारियां ही वजह थी।मीता को याद तो बहुत करती थी लेकिन मिलने न जाना उसकी मजबूरी थी।

और जब मीता ने अपनी आपबीती सुनाई तो उसकी मौसी सकते में आ गई,उसने तो सोचा था कि मीता नई मां के साथ खुश थी।और जब पढ़ाई को छोड़ने की बात सुन उसकी मौसी बड़ी नाराज हुई और तय किया कि मीता को छोड़ने वह खुद जायेगी और अपने जीजाजी से बात जरूर करेगी।कुछ दिन रह मीता को छोड़ने गई तो अपने जीजाजी से बात की,तो उन्होंने बात टाल ने की कोशिश की और इधर उधर की बातें कर उठ खड़े हुए।

मीता की मौसी ने भी ठान लिया था जाने से पहले जीजाजी से उसकी अनुमति पा लेने की।और वाकई में ऐसा हुआ और मीता की पढ़ाई पूरी हो गई।अब मौसी ने उसे उस परिस्थिति से निकलने के लिए रिश्ते ढूंढने शुरू कर दिए थे लिकिन उसके पापा और मां किसी भी रिश्ते के लिए राजी नहीं होते थे और उनकी चल मौसी भी समझ गई थी,घर की सारी जिम्मेवारियां संभाल ने वाली मीता का घर से जाना मंजूर न था उनको।

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लेकिन कर्म की गति न्यारी,उसके पापा का दोस्त विनोद, जो उन्ही की बिरादरी का था उसे मीता और उसका स्वभाव आदि पसंद था  उनके बेटे विशाल को भी मीता बहुत पसंद थी।  जब वे लोग रिश्ता ले के आए तो मीता के पापा ने टालने की कोशिश की लेकिन बेटे की इच्छा को मान देते हुए उन्होंने बहुत ही विनय के साथ बोल ही दिया कि मीता बनेगी तो उन्ही की पुत्रवधु।

ये बाते मीता की मौसी तक पहुंच गई थी।वह बिना विलंब अपने जीजाजी के घर पहुंच गई और बात अपने हाथ ले जैसे तैसे कर रिश्ता कबूल करवा लिया।और खूब सादे तरीके से विशाल के साथ मीता ब्याह उसके घर आ गई थी।अपने घर के अत्याचारों से मुक्त हो सुनहरे सपनों में खोई हुई मीता ने ग्रह प्रवेश किया।सब नई दुल्हन का स्वागत कर घरवालें भी खुश थे,सब रिश्तेदारों से घिरी मन मनोवर के बीच बहुत खुश मीता को स्वर्ग सा महसूस होता था।

उपर से विशाल का अबाध्य प्यार पा वह अपने आप को धन्य समझ मन ही मन भगवान का शुक्रिया  करती रहती थी।सरकारी अफसर की पत्नी बन वह भी काफी मानपान पा रही थी।उनके दोस्तों और उनकी पत्नियों में भी उसके प्रति काफी प्यार और आदर था।उसके दुःख के दिनों ने उसे बहुत कुछ सिखाया था,वह नम्र थी,विनयशील थी,घर काम में भी निपुण थी।विशाल के प्यार ने उसे सम्पूर्ण बना डाला था सजी धजी गुड़ियां सी घर में डोलती फिरती बहु सास को भी प्यारी लगती थी।

और अच्छे दिन आए,वह पेट से थी और घर में खूब खुशी छा गई।और नौ महीने होते होते विशाल की प्रतिकृति से साहिल  का जन्म हुआ।साहिल के आगमन की वजह से पूरा घर सातवें आसमान में विचरण करने लगा।पहले साहिल की किलकारियां ,फिर घुटनों पर रीडना और डगमगाती चाल पर पूरा घर वारी वारि जाता था ।

जैसे ही साहिल ३ साल का हुआ तो फिर से मीता के पांव भारी हो गए।मीता खुश थी,बहुत खुश थी अपनी दुनियां में।ये भी खुशी थी कि वह अपने बेटे साहिल को खून का रिश्ता दे रही थी,उन दोनों के बाद भी साहिल का कोई रिश्ता होगा।और आ गई छोटी सी,गुड़िया  ,गोलमोल ,गोरी चिट्टी घुंघराले बालों वाली,बड़ी बड़ी आंखो वाली रीना।

सब बहुत खुश थे घर खुशियों की पींगे ले रहा था।देखते देखते साहिल स्कूल जाने लगा,पढ़ाई में वह विशाल जैसा ही प्रतिभावान था।अव्वल आता था अपने वर्ग में ,अपनी टीचर का भी  फरवरीट था।और अब रीना का भी स्कूल में दाखिला हो गया वह भी पढ़ाई में होशियार ही थी।मीता की गृहस्थी खूब अच्छी चल रही थी विशाल की भी नौकरी में बढ़ती होती रहती थी और एक दिन विशाल के दफ्तर से आने की राह देख रही मीता को उसके अकस्मात के समाचार मिले,अपनी सास के साथ पगलाई सी अस्पताल पहुंची तो बेहोश विशाल को देख पगला सी गई  थी मीता।

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पूरा एक महीना अस्पताल में रखने के बावजूद उसकी सेहत में कोई  सुधार नहीं नज़र आ रहा था ,डॉक्टर ने भी जवाब दे दिया था क्योंकि अकस्मात के समय सारा अघात उसके सिर पर होने की वजह से चोटें दिमागी थी वह कब ठीक होगी कुछ नहीं कहा जाता,ये जवाब सुन सास बहू दोनों चिंतित थी।और एक दिन जब वह विशाल के सिरहाने बैठ उसके बालों में हाथ फिरा रही थी उसने थोड़ी हरकत की वह खुश हो डॉक्टर को बुलाने दौड़ी,डॉक्टर ने नब्ज देखी नर्स ने इंजेक्शन लगाया और विशाल ने आंखे खोली और दर्द और प्यार भरी नज़र से मीता को देख हमेशा के लिए आंखे मूंद ली थी।

डॉक्टर  भी सिर हिला बाहर चले गए,नर्स ने चद्दर से मुंह ढक दिया और बाहर चली गई।बस इतना ही याद था उसे जब होश आया।घर भरा था रिश्तेदारों से और वही दृश्य जब उसकी मां चल बसी थी।नीम बेहोशी में पड़ी रहती थी। सास भी उससे दूरी बनाने लगी,आक्षेप लगाया मनहुसी का,अपनी मां के बाद विशाल को भी डस लेने का ,और फिर तो सास की शह पर रिश्तेदारों के भी मुंह चलने लगे।

और एकबार फिर मीता की जिंदगी कहर बन गई,वह सोच रही थी कि भगवान ने जहां के सारे दुःख उसीकेे नसीब में लिखे थे क्या?सब उत्तर क्रिया खत्म होने पर अपने अपने घर चले गए और सास और बच्चों के साथ वह रह गई।विशाल के दफ्तर से मिली धन राशि और बीमे की राशि काफी थी किंतु बच्चो को पढाना ,लिखना  और घर खर्च चलाना उस राशि में संभव नहीं था।वह चिंतित सी रह ने लगी। सास का उसके प्रति बर्ताव भी ठीक नहीं था किंतु वह अपने फर्ज से चूकती नहीं थी।और एक दिन अखबार में आए विज्ञापन को देख उसने अर्जी लिख भेजी नौकरी के लिए।



घर ठीक ठाक था किंतु उसमे जन नहीं बची थी,विशाल की दसवीं की परिक्षा थी,अब वह बड़ा दिखता था हल्की सी मूछें दिखनी शुरू हो गई थी।रीना भी अब किशोरावस्था में आ चुकी थी, सास अब अपने पूजा पाठ के अलावा कोई भी चीज में रुचि नहीं लेती थी।

अनमने से दुःखी दिन चल ही रहे थे कि एक दिन उसकी नौकरी के लिए की अर्जी के जवाब में साक्षात्कार की तारीख आ गई।कुछ आशा की किरण लिए वह उस दफ्तर पहुंची जहां का पता लिखा था उनके पत्र में।उत्तीर्ण हुई वह साक्षात्कार में और दूसरे ही दिन से कार्यालय में काम चालू भी हो गया।

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मशीन की तरह जिंदगी चलने लगी,सुबह उठना ,घर का काम करना,बच्चो की देखभाल करना, सास की देख भाल करना, बस यही रफ्तार से दिन कट रहे थे।एक दिन जब दफ्तर से लौटी तो सास बुखार से तप रही थी,डाक्टर को बुलाया तो टाइफोड निकला और इजाफा हुआ उसके काम में।दफ्तर से छुट्टी ली,साहिल का भी १२ वी के इम्तहान और रीना ९ में थी। सास की सेवा करते करते काफी दिन हो गए किंतु कुछ सुधार नहीं था तबियत में,और एक दिन बुखार ज्यादा था दिमाग में चढ गया और अपने बेटे के पास सिधार लिया।

अब जो  सास की हाजरी से थोड़ा सहारा था वो भी चला गया। दोनों बच्चों के साथ दिन कटने लगे।साहिल ने ग्रेजुएशन के बाद MBA किया और रीना ने बीकॉम कर लिया।अब दोनों के लिए रिश्ते ढूंढना शुरू किया मीता ने।रिया के रूप में साहिल को सहचारी मिल गई और रीना को ऋषिल के रूप में साथी मिल गया । दोनों ही अपनी अपनी गृहस्थी में व्यस्त हो गए ।जो साहिल मां के दुःख दर्द समझ उसके आगे पीछे घूमता था,मानसिक सहारा और नैतिक हिम्मत देता था वह नौकरी और गृहस्थी में उलझ अनजाने में ही मां से दूर होता जाता था।

रीना भी रूशिल और सास ससुर  और अपनी गृहस्थी में व्यस्त हो गई।

रिया के भी बेटा हुआ और रीना को भी बेटा हुआ।बेटे की डिलिवरी पर रीना उसके पास दो महीने रही और स्वस्थ हो अपने घर गई थी। दोनों ही भाई बहन के  बेटें बहुत ही प्यारे थे।

एकदम चौक गई मीता घंटी बजी थी दरवाजे की,पता ही न चला कितना वक्त बीत गया,आंखो में बह रहे आंसू कब आए और क्या क्या सोच लिया।आंसू पोंछ उठ दरवाजा खोला तो सामने रीना खड़ी थी।



रीना गुस्से से मां के आंसू की परवाह न करते हुए कड़ी नजर से मां को देख कर चिल्लाई कि उसको अपने बच्चों  की इज्जत की कोई परवाह नहीं थी। इस उम्र में अपने सहकर्मी मानस से कैसे शादी कर सकती थी। आवाज सुन के साहिल भी अपने कमरे बाहर आया और पीछे पीछे रिया भी आ गई । दोनों रिया को गुस्से देख परेशान थे।साहिल ने पूछ ही लिया बात क्या थी। माएं बेटियों पर ज्यादा विश्वास करती हैं, बेटों से ज्यादा बेटियों का सहारा मां को होता हैं,इसी लिए उसने ये बात बेटी को विश्वास में लेने के लिए बताई थी, उसी बात को ले उसने बतंगड़ बना दिया था।

भाई की और देख मां की और गुस्से से हाथ उठा कर बोलीं कि  ये शादी करने जा रही हैं।साहिल को काटों तो खून न निकले ऐसा हो गया,सन्न्न सा खड़ा बहन और मां की और देख ने लगा।सोचा जब मां जवान थी ,शादी की उम्र थी तब कभी नहीं लगा कि वह कभी शादी के बारे में सोचेगी भी, अब क्या हो गया हैं।रीना का कल्पांत चालू ही था कि मां ने नहीं सोचा कि मेरे ससुराल में मेरी इज्जत का फालूदा बन जायेगा , सास के सामने क्या मुंह दिखाएगी,उसके पति को क्या जवाब देगी ,और क्या क्या वजहें बता मां की अपना निर्णय बदलने के लिए कह रही थी।

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अब तो साहिल भी बोला कि उसके ससुराल में क्या उसकी इज्जत रहेगी ,दोस्त उसका मजाक उड़ाएंगे और बहुत सी बातें कर वह भी मां को निर्णय बदलने के लिए बोल रहा था।रिया तो जैसे तमाशा देख रही थी, पूरे प्रसंग का लुत्फ उठा रही थी।फिर बड़ी नजाकत से सास से बोली मां मेरी सहेलियां भी मेरा मजाक उड़ाएगी और मेरे मायके में भी अच्छा नहीं लगेगा। जमाना क्या कहेगा।

अब तक सब्र से सुन रही मीता बोली कि जब वह बेवा हुई थी, मुश्किलों से बच्चें पाले, सास की सेवा की ,आर्थिक प्रश्न थे तब आप का ये जमाना नहीं खड़ा था उसके साथ ,सब उसने अपने बलबूते पर किया, दोनों बच्चों की पढ़ाई,शादी सब अकेले ही किया था कौन था उसके साथ?

साहिल को बोली कि वह अपनी नौकरी और परिवार में व्यस्त रहता था ,छुट्टी वाले दिन जो १० मिनट मीता की खबर पूछ छूट जाता था।वैसे ही रीमा का हैं एक ही शहर में रहते हुए भी महीने में एक बार भी अपनी मां को मिलने का समय नहीं हैं इसके पास।बहु की और देख बोली इसे भी मायके से और दोस्तों के बाद जो समय मिलता हैं वह  फक्त दिन के १० मिनट होता था।क्या वह इतनी गई गुजरी हैं कि उसकी अवज्ञा हो।

अब रीमा बोली की उसके ससुराल और बच्चे और पति के प्रति भी उसका फर्ज था मायके कैसे बैठी रह सकती थी वह।

तब तुनक के मीता बोली कि वह जब डिलिवरी में दो महीने मायके में थी तब भी उसका घर चल ही तो रहा था।इतनी बहस बाजी से मीता का सिर चकरा रहा था। हारके उठ अपने कमरे में गई और अपना पासपोर्ट और कपड़ों से भरा बैग ले बाहर आ बोली कि बहुत हो गया था अब वह सिर्फ अपने लिए जीएगी मानस के साथ और घर से बाहर हो ली।

जयश्री बिरमी

सेवा निवृत्त शिक्षिका

अहमदाबाद

 

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