यह कहानी एक ऐसी महिला, शमा, की है जिसने सामाजिक बंधनों और कठिनाइयों का सामना करके, न केवल अपने लिए बल्कि अपनी बेटी के भविष्य के लिए भी एक नई शुरुआत की है। शमा की कहानी संघर्ष और साहस की एक प्रेरक मिसाल है, और यह हर उस महिला के लिए एक प्रेरणा बन सकती है जो समाज के अनगिनत बंधनों और कठिनाइयों का सामना करते हुए भी अपना रास्ता खोजती है। चलिए इस कहानी को विस्तार से और गहराई से समझते हैं:
शमा कॉलेज में शिक्षिका थी और मध्यमवर्गीय परिवार से संबंध रखती थी। उसका जीवन सरल और सीधा था। अपने माता-पिता की इकलौती संतान होने के कारण उसके माता-पिता ने उसे हर संभव सुख-सुविधा दी थी। शिक्षा में बचपन से ही होनहार शमा ने अध्यापन के क्षेत्र में जाने का निश्चय किया और शिक्षिका बन गई। उसके मन में बच्चों के प्रति गहरा स्नेह और शिक्षा के प्रति आदर था। उसे लगता था कि शिक्षा के माध्यम से ही समाज को एक नई दिशा दी जा सकती है। उसके माता-पिता ने अपनी हैसियत के अनुसार उसकी शादी कर दी। शमा बहुत खुश थी, उसे लगा कि यह उसका नया घर होगा, जहां वह अपने पति के साथ अपने सभी सपने पूरे करेगी।
लेकिन शादी की पहली ही रात उसके पति ने यह कहकर उससे हर रिश्ता तोड़ दिया कि यह शादी उसकी मर्ज़ी से नहीं हुई थी। शमा का दिल टूट गया। उसके सभी सपने जो उसने अपने नए जीवन के लिए संजोए थे, उस एक पल में बिखर गए। अपने पति के इस रवैये से वह स्तब्ध थी, उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह सब कैसे और क्यों हुआ। हर लड़की की तरह उसने भी अपने परिवार की बातें मानते हुए इस रिश्ते को स्वीकार किया था और सोचा था कि यह उसका नया जीवन होगा, परंतु पहले ही दिन उसके सारे सपने टूट गए।
शमा ने बहुत कोशिश की कि किसी तरह इस रिश्ते को बनाए रखा जाए। उसने कई बार अपने पति से बात करने की कोशिश की, उसे समझाने की कोशिश की कि वह इस रिश्ते को निभाना चाहती है। लेकिन उसके पति ने हर बार उसे केवल तानों और कठोर बातों से ही जवाब दिया। शमा पर कई बार दहेज को लेकर अत्याचार भी किया गया। उसे बार-बार दहेज के लिए ताना मारा जाता, यहाँ तक कि उसे बाँझ कहा गया, मानो उसकी
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कीमत केवल दहेज और संतानोत्पत्ति पर ही निर्भर करती हो। जब उसने अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाई, तो उसके पति ने केवल उसके तन का इस्तेमाल किया लेकिन उसे मन से कभी अपनाया नहीं। शमा ने महसूस किया कि उसके पति के लिए वह केवल एक वस्तु थी, एक ऐसा साधन जिससे वह अपनी इच्छाएं पूरी कर सकता था।
शमा का मन टूटा हुआ था, लेकिन उसने कभी हार नहीं मानी। उसने इस रिश्ते में रहकर एक बेटी को जन्म दिया। उसने सोचा कि शायद उसकी बेटी के जन्म से उसके पति का मन बदल जाएगा, और वह अपनी बेटी के कारण उसे अपनाएगा। लेकिन यह उसकी एक और भूल साबित हुई। उसकी बेटी को भी पिता का प्यार नहीं मिला। शमा ने समझ लिया कि अब उसके जीवन में कोई आशा नहीं बची है।
हर दिन, हर पल, उसे उसके पति और ससुराल वालों की ओर से ताने और अत्याचार सहने पड़ते थे। वह असहाय महसूस करने लगी थी, लेकिन अपनी बेटी को देखकर उसे जीवन में एक नई ऊर्जा मिलती थी। उसने सोचा कि वह केवल अपने लिए नहीं, बल्कि अपनी बेटी के लिए भी यह सब सह रही है। परंतु एक दिन, जब उसने अपनी बेटी पर हाथ उठाने की धमकी सुनी, तो उसका सब्र टूट गया। उस दिन शमा ने निर्णय लिया कि वह अपनी बेटी के साथ इस नर्क से बाहर निकलेगी। उसने समाज और परिवार की परवाह किए बिना अपने लिए और अपनी बेटी के लिए जीवन को चुना। उसने अपने पति से तलाक लिया, और अपनी बेटी के साथ एक नई शुरुआत की।
तलाक के बाद शमा ने अपनी बेटी की परवरिश और अपने करियर को आगे बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया। उसने सोचा कि अगर वह एक शिक्षिका के रूप में समाज को बदल नहीं सकती, तो कम से कम वह अपनी बेटी को एक अच्छा भविष्य जरूर देगी। उसने अपने दिल की हर बात अपनी सबसे प्यारी सखी को बताई थी। शमा की सखी उसकी हर तकलीफ में उसके साथ रही थी। जब शमा अपने पति से अलग हुई, तो उसकी सखी ने उसे भावनात्मक सहारा दिया और उसे हर कदम पर प्रेरित किया। शमा को लगता था कि उसकी सखी उसकी सच्ची हमदर्द है।
समय बीतता गया और शमा ने अपनी मेहनत और लगन से कॉलेज में एक अच्छी जगह बना ली। उसने समाज के तानों की परवाह न करते हुए खुद को और अपनी बेटी को संवारने में कोई कसर नहीं छोड़ी। वह अपने छात्रों की चहेती शिक्षिका बन चुकी थी और अपनी बेटी को भी अच्छे संस्कार देने की कोशिश कर रही थी। उसके जीवन में अब एक नई दिशा थी, एक नई रोशनी थी।
लेकिन फिर एक दिन, कॉलेज में उसे यह सुनकर गहरा धक्का लगा कि उसकी सबसे प्यारी सखी ने ही उसके अतीत की सारी बातें दूसरों के सामने बढ़ा-चढ़ाकर कहनी शुरू कर दी हैं। शमा की सखी ने उसके बारे में यह तक कह दिया कि जो महिला अपना घर नहीं बसा सकती, वह बच्चों को क्या सिखाएगी। यह बात शमा के दिल को बहुत गहराई तक चुभ गई। जिसे वह अपनी सच्ची दोस्त समझती थी, उसने ही उसके जख्मों पर नमक छिड़क दिया था। शमा को समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर उसकी सखी ने ऐसा क्यों किया।
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उसके दिल में एक भयंकर तूफान उठ रहा था। उसे अपनी पूरी ज़िन्दगी की कठिनाइयाँ फिर से याद आने लगीं। वह सोचने लगी कि क्या उसने तलाक लेकर सही किया था? क्या उसने अपने अधिकारों के लिए लड़कर गलती की थी? ऐसे तमाम सवालों ने उसे घेर लिया और उसकी आँखों में आँसू झर-झर बहने लगे।
तभी उसकी नन्ही बेटी दौड़ते हुए उसके पास आई और उसकी आँखों में आँसू देखकर हैरान रह गई। अपनी माँ को इस तरह उदास देखकर वह घबरा गई और माँ से लिपट गई। उसकी बेटी की मासूम आँखों ने शमा को उसके अतीत से वर्तमान में खींच लाया। उसे एहसास हुआ कि वह कितनी भी कठिनाइयों से गुजरी हो, उसकी बेटी ही उसकी असली ताकत है। उसने सोचा कि अगर वह आज टूट गई, तो उसकी बेटी को कौन सहारा देगा?
अपनी बेटी को देखकर शमा को अपने फैसले पर गर्व महसूस हुआ। उसने अपने मन में दृढ़ संकल्प किया कि अब वह दुनिया के तानों और आलोचनाओं की परवाह नहीं करेगी। वह जान चुकी थी कि उसकी सखी की बातें उसे कमजोर नहीं बल्कि और भी मजबूत बनाएंगी। उसने ठान लिया कि वह समाज के बेबुनियाद तानों और अपनी सहेली की नासमझी से कमजोर नहीं पड़ेगी। उसने तलाक लेकर कोई गलती नहीं की थी। उसने मौत को नहीं, बल्कि जिन्दगी को चुना था।
अब शमा ने यह तय किया कि वह अपनी बेटी को एक ऐसी मजबूत और स्वतंत्र महिला बनाएगी जो समाज के बंधनों से परे होकर अपना रास्ता खुद चुन सके। उसने सोच लिया था कि अब वह अपनी बेटी के लिए जीएगी और अपनी मेहनत से उसे एक अच्छी जिंदगी देगी।
शमा के चेहरे पर एक नई चमक थी। उसने अपने अतीत को भुलाकर वर्तमान को संवारने का संकल्प लिया। अब वह जानती थी कि उसकी असली खुशी और सच्चा समर्थन उसकी बेटी में है। उसने अपने जीवन को एक नई दिशा देने का निश्चय किया और अपने दृढ़ संकल्प के साथ अपनी बेटी के भविष्य को उज्ज्वल बनाने के लिए आगे बढ़ने का फैसला किया।
इस तरह, शमा की यह कहानी साहस, संघर्ष और आत्म-सम्मान की है। उसने कठिनाइयों का सामना करते हुए अपने लिए एक नई जिंदगी चुनी और अपने आत्म-सम्मान को बनाए रखा। उसकी कहानी हर उस महिला के लिए प्रेरणा है जो समाज के तानों और आलोचनाओं के बावजूद अपने रास्ते पर डटी रहती है और अपने सपनों को साकार करती है।
मौलिक रचना
रचना गुलाटी