फैसला – डा.मधु आंधीवाल

सविता जी का मन आज बहुत विचलित था । अन्धेरी रात की तन्हाई में शोचनीय स्थिति में वह खिड़की में खड़ी हुई थी । दोनों बच्चे अपनी अपनी गृहस्थी में फंसे हुये थे । बेटी और बेटा दोनों चाहते थे कि मां रिटायर मैन्ट के बाद उनके साथ रहे पर सविता जी अपने इस मकान को छोड़ना नहीं चाहती थी । उनके साथ उनकी सहायका रजनी रहती थी । जो उनके दुख दर्द की बचपन की साथी थी । रामू काका देखभाल के लिये अपने परिवार के साथ रहता था । रामू काका के परिवार में उनकी पत्नी ,दो बेटे और एक बेटी थी । जिसको सविता जी पढ़ा रहीं थी । 

       सविता जी का जीवन बहुत संघर्ष मय रहा था पर उन्होंने टूटना और झुकना  नहीं सीखा था । वह एक अध्यापिका पद पर नियुक्त हुई और आज  एक डिग्री कालिज के प्रधानाचार्या पद से रिटायर हुई । सब कुछ चलचित्र की भांति आंखों के सामने घूम गया । वह भी शादी होकर बहुत से सपने ले कर साजन के घर डोली से उतरी थी पर ये क्या बहुत ठंडा स्वागत हुआ । वह गरीब मां बाप की अप्सरा सी होनहार बेटी थी । कालिज के एक कार्यक्रम में पता ना शहर के उद्योग पति सिन्हा साहब को अपने नकचढ़े बेटे शोभित के लिये इस सीधी सादी कन्या में क्या दिखाई दिया कि उससे पूरी जानकारी लेकर उसके घर उसका हाथ मांगने पहुँच गये । गरीब मां बाप की तो खुशी का ठिकाना ही ना रहा और चट मंगनी और पट शादी हो गयी । ससुराल आकर घर की पुरानी सेविका से पता लगा कि मिसेज सिन्हा और शोभित की रजामन्दी नहीं थी पर सिन्हा साहब के सामने दोनों की बात नहीं मानी गयी ।




सविता जी ने बहुत प्रयत्न किया कि सब कुछ सही हो जाये पर  शोभित के लिये वह बस रात के उपभोग की वस्तु थी । जिसका परिणाम तीन साल में एक बेटा और एक बेटी की मां बन गयी । अचानक जिन्दगी में दुखद मोड़ आगया और हृदय आघात से सिन्हा साहब दुनिया छोड़ गये। अब तो शोभित बिलकुल स्वतंत्र होगया और वह और मिसेज सिन्हा सविता जी को प्रताड़ित करने लगे और एक दिन तो सब सीमा पार करके शोभित ने किसी को बिना बताये अपनी महिला मित्र रोमा से शादी कर ली और घर ले आया । सविता जी और शोभित के सम्बन्ध तो पहले से ही बिखर गये थे अब तो बिलकुल खत्म हो गये । बेचारी क्या करती दोनों बच्चों को लेकर मां बाप के पास आगयी । अपने बूते पर ट्यूशन करके अपनी छूटी पढ़ाई पूरी की और बच्चों को भी पढ़ाई के लिये स्कूल भेजना शुरू किया । उसी समय एक स्कूल में आवेदन किया वह बहुत होशियार तो थी ही उनको वहाँ अध्यापिका के लिये चयनित कर लिया गया । घर की व्यवस्था चलने लगी । मां बाप भी खुश थे उसे देख कर पर वह रुकी नहीं और आगे प्रयास करती रही और एक दिन उनके हाथ में डिग्री कालिज की नियुक्ति का पत्र आगया बस उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा । मां बाप भी इस दुनिया से विदा हो लिये । बच्चे भी उच्च शिक्षा के लिये बाहर चले गये । रिटायर मैन्ट से पहले ही दोनों बच्चों की शादी करदी । आज उनके पास सब कुछ था पर पिछली यादें कभी कभी विचलित करती थी । कभी कभी शोभित के बारे में सुनाई पड़ता था कि सारा व्यापार अय्याशी की भेंट चढ गया अब हाल बेहाल है। अचानक उसे कोई मानव परछाई गिरती हुई दिखाई दी । उन्होंने रामू काका को आवाज देकर कहा कि बाहर जाकर देखे । रामू काका ने आकर बताया कोई बुजुर्ग हैं पर दीन हीन अवस्था में । सविता जी ने बाहर जाकर देखा वह शोभित था । रजनी भी बाहर आगयी वह शोभित को पहचान गयी पर देखा सविता जी का चेहरा भावहीन था । वह बोली रामू काका आज बाहर कमरे में सुला दो पर कल इन्हें वृद्धाश्रम में छोड़ आना मेरा नाम लेकर और बहुत शान्ति से रजनी से बोली चलो सोचो मत इन्होंने तीन जिन्दगियों के साथ अन्याय किया था  । मेरा फैसल उचित है।

स्व रचित

डा.मधु आंधीवाल

अलीगढ़

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