आज दिव्या और राघव की शादी थी।दिव्या बहुत ही सुंदर दुल्हन बनी थी। वो सज धज कर अपने दुल्हे का इंतज़ार कर रही थी। अभी बारात के आने में थोड़ा समय था। दिव्या को तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि राघव दुल्हे के रूप में उसको मिलेगा पर समय बदलते देर नहीं लगती।
आज उसे याद आ रहा था कि कैसे,तीन साल पहले वो राघव से मिली थी। इस तीन साल के समय में उसे अपने प्यार की बहुत कठिन परीक्षा से भी गुजरना पड़ा था। आज उसे राघव के साथ बिताये सभी पल याद रहे थे। वैसे भी प्यार है ही ज़िंदगी का एक खूबसूरत एहसास, जो किसी की भी दुनिया बदलने की ताकत रखता है पर बहुत ही कम लोग होते हैं जिन्हें सच्चा प्यार नसीब होता है।
ऐसी ही कुछ कहानी थी दिव्या की, दिव्या छोटे से कस्बे की रहने वाली पढ़ाई में होशियार अपने सपनों की दुनिया में जीने वाली प्यारी सी एक मासूम लड़की थी। अपनी स्नातक तक की पढ़ाई अपने कस्बे में करने के बाद आगे की प्रोफ़ेशनल पढ़ाई के लिये उसने दिल्ली आने का मन बनाया।
उसके माता-पिता ने भी उसका पूरा साथ दिया।हालांकि उसके घर में किसी भी लड़की को बाहर पढ़ने नहीं भेजा गया पर उसकी लगन देखकर उसके पिताजी ने उसको बाहर भेजने का मन बना लिया। पर साथ ही साथ उसकी मां ने उससे वादा लिया कि अकेले इतने बड़े शहर में रहते हुए वो कोई भी कदम ऐसा वैसा नहीं उठाएगी जिससे उनका नाम खराब हो। उसकी योग्यता को देखते हुए उसका प्रवेश एक बड़े संस्थान के फैशन डिजाइनिंग कोर्स में हो गया।
उसी के हॉस्टल में उसके रहने का भी प्रबंध हो गया। अब पहली बार वो अपने माता-पिता से दूर अकेले इतने बड़े शहर में रहने आयी। थोड़ी घबरा तो रही थी पर उसको भरोसा था की धीरे-धीरे उसको आदत हो जायेगी। ये पूरी तरह से व्यवसायिक कोर्स था इसलिए अगले दिन से क्लास में प्रारंभ में ही सभी के पार्टनर बना दिए गये जिनके साथ उनको ये प्रोजेक्ट करना था।दिव्या का पार्टनर बना राघव जो कि मस्तमौला स्वभाव का शुरू से दिल्ली में ही पला बढ़ा था।
जहां दिव्या चुपचाप रहने वाली अपने काम से काम रखने वाली लड़की थी, वहीं वो बहुत बातूनी था। उसे लड़कियों के साथ समय बिताना अच्छा लगता था। इस तरह राघव और दिव्या की पहचान हुई। कोर्स का प्रारूप ही ऐसा था की क्लास और प्रोजेक्ट मिलाकर सभी स्टूडेंट्स को काफी समय संस्थान में ही बिताना पड़ता था। ऐसे में दिव्या और राघव का काफ़ी समय एक साथ बीतता था। चूंकि राघव दिल्ली का ही रहने वाला था,उसे सब रास्ते और जगह पता थे। ऐसे में,अगर क्लास देर तक चलती तो वो दिव्या को पहले उसके हॉस्टल छोड़ता फिर अपने घर जाता।
अब वैसे भी दोनों का जब इतना समय साथ-साथ बीतता था तो कहीं ना कहीं एक दूसरे के लिए आकर्षण होना भी स्वाभाविक था। राघव को दिव्या अच्छी लगने लगी थी,वो दिव्या से कहीं ना कही प्यार करने लगा था। पर दिव्या के लिये वो अभी भी सिर्फ उसका सबसे प्यार दोस्त था। जब उनके कोर्स समाप्त होने का समय आया तब राघव ने अपने दिल की बात दिव्या को बता दी। एक बार तो दिव्या सोच में पड़ गयी,उसने राघव से सोचने के लिये टाईम मांगा।
जब उसने अपने मन को थोड़ा सा टटोला तो उसे भी राघव के लिये अपने दिल में प्यार नज़र आने लगा। उसे भी राघव का मित्रतापूर्ण व्यवहार,उसकी छोटी-छोटी बातों की फिक्र करना सब ध्यान आने लगा। इस तरह दिव्या भी राघव से अपने आपको दूर नहीं कर पाई। उसने राघव का प्रेम प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। अब तो जैसे दिव्या की दुनिया ही बदल गई। वैसे भी प्यार में सब बहुत खूबसूरत लगने लगता है, यही सब उसके साथ होने लगा। अब इन दोनों के प्यार को थोड़ा समय बीत गया था।
दिव्या काफी समझदार भी थी वो जानती थी कि उसके घर में सब बहुत खुले विचार वाले हैं पर फिर भी वो नहीं चाहती थी की उसके इस रिश्ते से उसके माता-पिता को कोई ठेस लगे। इसलिये उसने राघव से इस बारें में विस्तार से बात करने की सोची। जब एक दिन दिव्या ने राघव से उसके आगे के प्लान नौकरी,शादी के बारें में पूछा, तब उसने कहा उसे नौकरी नहीं करनी क्योंकि उसके पापा की खुद की फैशन कम्पनी है
उसने कोर्स भी इसलिए किया है जिससे वो इस कंपनी को आगे ले जा सके और शादी जैसे पुराने बंधन में विश्वास नहीं करता। उसने ये भी कहा कि हम लोग लिव इन रिलेशनशिप में रहेंगे जहाँ दोनो ही आज़ाद होंगे। ये सुनते ही दिव्या के तो पैरो के नीचे से जैसे ज़मीं ही खिसक गयी।
दिव्या ने तो राघव के साथ सात जन्म के सपने देख लिए थे पर राघव ने तो उन सपनों को कुचलने में सात मिनट भी नहीं लगाए।उसने अपने आपको सम्भालते हुए, बड़े ही सधे हुए शब्दों से राघव से कहा की शायद हम एक-दुसरे लिये नहीं बने। मेरे लिये प्यार ज़िंदगी भर का एक प्यारा सा बन्धन है। मेरे संस्कार मेरे को लिव इन रिलेशनशिप में रहने की इज़ाजत नहीं देते।आगे से हम कभी नहीं मिलेंगे। उसकी बात सुनकर राघव ने कहा कि मेरे को तो लगा था तुम आज के वक्त की लड़की हो,
इस तरह की दकियानूसी सोच में भरोसा नहीं रखती होंगी पर तुम तो पूरी बहनजी टाइप निकली। ये सब दिव्या झेल नहीं पाई। टूटे दिल से वहां से निकल आई। राघव ने भी उसे रोकने की कोई कोशिश नहीं करी।अगले दिन ही दिव्या ने अपना सामान बांधा और अपने माता-पिता के पास वापिस आ गई। वहीं रहते रहते कई सारे इंटरव्यू दिए और एक दिन उसकी मुंबई की बड़ी फैशन कंपनी में जॉब लग गई। यहां आए हुए उसे तीन साल का वक्त हो गया था पर एक दिन भी ऐसा नहीं था कि वो राघव को भूली हो। ये अलग बात है कि इन तीन सालों में उसने राघव की कोई खोज खबर नहीं ली थी।
उधर दिव्या के जाने के बाद राघव अपनी जिंदगी में दोबारा मस्त हो गया था उसे दिव्या से प्यार तो हुआ था पर वो किसी बंधन में बंधने को तैयार नहीं था क्योंकि उसने अपने घर पर अपने माता-पिता का अलगाव देखा था। बस इन्हीं सब बातों की वजह से उसने सोचा था कि वो लिव इन में तो रह सकता है पर शादी नहीं करेगा कभी,क्योंकि शादी एक तरह की मुसीबत है जो सिर्फ दो लोगों को जबरदस्ती एक साथ रहने पर मजबूर करती है। उसे लगता था आज के आधुनिक वक्त में यही सब सही भी है। जब तक ठीक लगे साथ रहो, जब ना लगे तो अलग हो जाओ।
पर राघव की ये सोच जल्द ही बदल गई जब उसकी दोस्ती कई आधुनिक कही जाने वाली लड़कियों से हुई,जो कि सिर्फ राघव के पैसों के लिए ही उसके साथ थी।तब राघव को दिव्या के प्यार का एहसास हुआ। उसे दिव्या का वो प्राकृतिक सौंदर्य और किसी अपने की तरह परवाह करना याद आने लगा।वो दिव्या के बिना अपने आपको बहुत अकेला महसूस कर रहा था। उसकी आंखों के सामने हरदम दिव्या का मासूम सा चेहरा घूमता रहता।
रही-सही कसर राघव की दादी जिन्होंने उसके माता-पिता के अलग होने के बाद उसे पाला था, उनके समझाने ने पूरी कर दी। दादी ने कहा बेटा शादी कभी मुसीबत नहीं होती बल्कि ये तो दो लोगों की आत्मा का मिलन है जिसमें वो एक और एक मिलकर ग्यारह होते हैं। दादी ने राघव को शादी का महत्व बताया और कहा जरूरी नहीं कि अगर उसके माता-पिता का रिश्ता नहीं टिका तो और भी रिश्ते न टिके।चाहे वक्त कितना भी बदल जाए पर हमारे देश में शादी जैसा पवित्र बंधन कोई नहीं है।
बात कुछ हद तक राघव को समझ आ गई। राघव के पास दिव्या की अच्छी दोस्त स्नेहा का फोन नंबर था। स्नेहा से उसको मुंबई का पता मिल गया। वो दिव्या को अपनी जिंदगी में वापिस लाने मुंबई गया। जब दिव्या ने अचानक से राघव को देखा तो वो अनदेखा करके चली गई पर अब राघव ने भी उसको मानने में कोई कसर ना छोड़ी।
वो जब भी अपनी कंपनी से निकलती वो उसके पीछे हो लेता।फिर एक दिन उसने भरी सड़क पर सबके सामने फिल्मी स्टाइल में दिव्या से घुटनों के बल बैठकर माफ़ी मांगी और बोला क्या वो उसको श्रीमान दिव्या बनाना पसंद करेगी। उसने ये भी कहा वो गलत था,असल में मुसीबत शादी नहीं उसकी खुद की अपरिपक्व सोच थी पर उसे अब समझ आ गई। अब वो दिव्या को इस जन्म क्या सात जन्म भी अपना बनाकर रखेगा।
राघव की बातें सुनकर दिव्या की आंखें भर आई। तब राघव ने बड़े प्यार से दिव्या के आंसू पोंछते हुए कहा बस एक मौका दे दो, फिर देखना हमारी शादी का गठबंधन भी फेवीकॉल का मजबूत जोड़ साबित होगी। बस फिर क्या था,दिव्या का दिल अपने राघव के लिए पिघल गया। वैसे भी प्यार कभी मरता नहीं है और उसने तो सच्चे मन से राघव को अपनाया था।
अभी दिव्या इन्हीं ख्यालों में खोई हुई थी। इतने में बारात आ गई का शोर मचा तो वो अपने आज में वापिस आ गई। आज उसकी और राघव की नई जिंदगी शुरू होने जा रही है।
दोस्तों कैसी लगी मेरी प्यार से भरी एक सुखद प्रेमकथा? अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें। हम कितने भी आधुनिक क्यों ना हो जाएं,आज भी हमारे देश में शादी को बहुत ही पवित्र बंधन माना गया है।
डॉ. पारुल अग्रवाल,
नोएडा
Bahut hi achchi
Absolutely