फौजी बाबू – आयशा खान  : Moral stories in hindi

मुझे आज भी ‌याद है बरसात कि वो रात जब मैं अपनी फौज कि ड्यूटी खत्म कर वापस अपने गाँव लौट रहा था।

एक तरफ घर जाने कि खुशी थी तो दूसरी तरफ खराब मौसम जो कि बार-बार मुझे रोकना चाह रहा था‌। लेकीन छुट्टी मिलते ही मैंने अपना सामान उठाकर गाड़ी में भरा और फौरन वहाँ से निकल गया।

गाड़ी में तेज़ म्यूज़िक लगाऐ मैं मस्ती में चला जारहा था कि तभी रास्ते में बादलों कि गड़गड़ाहट ने शोर शूरू कर दिया। मैं समझ गया कि तेज़ बारीश और तूफान आने वाला है‌ और फिर यकायक ऐसा मौसम खराब हुआ कि मैं सर छूपाने को आसरा तलाशने लगा और कुछ दूरी पर मुझे एक रेलवे स्टेशन दिखाई पड़ा तो पहले मैंने एक राहत कि सांस भरी फिर उस ओर चल दिया।

भिगते भागते जब मैं स्टेशन पहोंचा तो देखा कि वहाँ स्टेशन मास्टर आग जलाऐ बैठे है। मैं उनके पास ही बैठ गया खुदको सुखाने के लिऐ तभी उन्होने मुझे देखकर इधर आने कि बजह पूछली। 

मैंने विस्तार में सब कुछ उन्हे बता दिया तो उन्होने कहा -“कोई बात नही रात यही गुज़ार लो मैं कमरा दिखा देता हूँ। उन्होने मुझे रूनके के लिऐ‌ एक कमरा देदीया जो स्टेशन के उस पार था। मैं फौरन ही उस और चल पड़ा चलते हुऐ जब मैं कमरे में आया तो देखा तो एक चारपाई बिछी थी जिसपर पूराना सा बिछा पड़ा था। उसके एक सिरहाने पानी का मटका,ग्लास और पास ही एक अंगीठी भी पड़ी थी।

मैंने सोचा कुछ लकड़ियाँ इकठ्ठी कर अंगीठी जला लूँ मगर बाहर बारिश के कारण सब भिगा हुआ था। मुझे यहाँ सिर्फ एक रात गुज़ारनी थी तो मैंने सोचा कि ऐसे ही सो जाता हूँ मैंने अपना बैग सिर तले लगाया और बिस्तर पर लेट गया।

मेरी निंद गायब थी। छत से टपकती टिप टिप करती बूंदे कानो में अजीब सी मिश्री घोल रही थी एक ओर सर्द हवाऐ मेरे कानो को छू कर गुज़रती तो सारा बदन कपकपा सा जारहा था। 

हाय ये बारसात कि तूफानी रात ना जाने कब ढ़लेगी मैं ये सोच कर अपने बिस्तर पर घंटो लेटा रहा। बाहर इतनी घनघोर बारीश हो रही थी कि बिजली की आवाज़ सुन दिल सिहर सा जाता था। मैं अभी इन्ही सोचो में गुम था कि तभी अचानक दरवाज़े पर ज़ोर ज़ोर से खटका होने लगा। मैं खटका सुन चौंक उठा ये देखने की इस वक्त कौन हो सकता है….क्या स्टेशन मास्टर होंगे ..? 

कुछ देर ये सोच मैं फौरन उठा किवाड़ खोलने और किवाड़ खोलते ही मैंने बाहर इधर उधर झांका तो बाहर कोई भी नही था। शायद हवा से खटका हुआ होगा ये सोच कर मैं किवाड़ बंद करने लगा तभी अचानक मेरे कानों में एक आवाज़ आई—”आज रात के लिऐ मुझे यहाँ पनाह देदिजीऐ..?”

इस आवाज़ पर मेरी निगाह उसपर गई मेरे सामने एक जवान हसीन लड़कि खड़ी हुई थी। मैं उसे देख हक्का वक्का सा रह गया था। वो सफेद रंग के चमकते लिवास में दूपट्टा अपने दांतों तले दबाऐ खड़ी कांप रही थी। बारीश ने उसे पूरा भिगो कर रख दिया था। उसके बदन पर वो सफेद तंग लिवास जिससे उसके जिस्म के हिस्से साफ साफ उभर कर आरहे थे मैं उसे देख चौंधिया सा गया था। वो यकिनन किसी हुस्न परी से कम न दिख रही थी।

मैं कुछ देर उसे यूंही तकता रहा वो सफेद लिवास में अंधेरे में एक सितारे कि तरह चमक रही थी। उसके गुलाबी लवो से पानी कि बूंद रस कि तरह टपक रहे थे। उसकि हिरनी जैसी कटीली आँखो कि चमक मुझे उसकि ओर आकर्षित होने पर मजबूर करती जारही थी। मैं उससे कुछ कहने को आगे बढ़ा  कि तभी उसने कहा-“मैं अकेली यहाँ भटक गई हूँ ! प्लीज़ आप मुझे यहाँ रूकने कि जगह दे देंगे..?

मैंने हिचकते हुऐ बेझिझक हामीं भरकर उसे अंदर आने का कह दिया हालाकि ये ठिक नही था लेकिन उसकि मजबूरी को देख मैंने उसे अंदर आने देदीया। अब अकेली तूफानी रात में भला वो कहाँ भटकती ये सोच मैंने उसकि मदद करदी।

अंदर आते ही वो ठिठूरती हुई एक किनारे जा बैठि शूक्रिया करती हुई। मैंने पास रखी मटकि में से पानी निकाला और उसकी तरफ ग्लास बढ़ा दिया तो वो एक झटके में सारा पानी पी गई गटक गटक कर और ये देख मैंने उससे पूछ लिया-” लगता है आप बहोत प्यासी थी ..??

ये कहते हुऐ मैंने उससे ग्लास मांगा तो वो धिंमें से बोली-“हाँ मैं बहोत प्यासी हूँ..!”

उसने जैसे ही ये बात कही ये सुनकर मुझे बड़ा अजीब लगा और मैं उसे अजीब नज़रों से तकने लगा तभी वो‌ मुझसे नज़रे चुराकर बोली—”मेरा मतलब मैं बहोत देर से इधर उधर भटक रही थी ना और मुझे बहोत प्यास भी लगी हुई थी इसलिऐ मैं सारा पानी पी गई। 

मैंने उससे कहा कोई बात नही अगर आपको भूख लगी होतो बताइऐ मेरे बैग में कुछ खाने का भी रखा है मैं वो निकाल लेता हूँ..? तो उसने कहा “नही ..! मेरी भूख कुछ चिज़ो से नही मिटेगी..!” 

“क्या मतलव…? मैं फिर चौंक गया उसकि बात सुन कर तो फिर वो बात को घूमाती फिराती बोली-“मेरा मतलव मैं बहोत खाती हूँ और अभी मुझे भूख नही है ! मैं बस थोड़ा सा आराम करना चाहती हूँ ।

तो मैंने उससे कहा यहाँ तो एक ही बिस्तर है आप यहाँ सो जाईऐ जिसपर उसने पूछा “आप कहाँ सोऐंगे ?‌

मैंने उससे कहा मैं ज़मीन पर सो जाऊँगा लेकिन वो कैहने लगी नही नही आप यहाँ पहले से है तो आप बिस्तर पर सो जाईऐ मैं नीचे सो जाऊँगी।

कुछ देर हम दोनो में यही मुठ भेड़ चलती रही फिर आखिरकार उसकि ज़िद्द पर मैं उपर बिस्तर पर‌ लेट गया और वो नीचे।

कमरे में एक अजीब सी खामोशी छाई थी तभी मैंने उससे पूछा “आपको ठंड तो नही लगरही ? तो इसपर उसने कांपते लहज़े में कहा-“नही मुझे तो नही लग रही वैसे ये कमरा तो गर्म है क्या आपको यहाँ गर्माहट मैहसुस नही होरही…?? 

मैं उसकि बात पर हैरान था इसलिऐ मैंने उससे पूछा —”क्या सच में आपको ये कमरा गर्म लग रहा है ? तो उसने कहा -“हाँ बिल्कुल ! आप अपनी आँखे बंद कर लिजीऐ तो आपको भी ये गर्माहट मैहसुस होगी।

मुझे उसकि बात थोड़ी बचकानी लगी मगर मानने में कोई हर्ज़ भी नही था तो मैंने आँख बंद करली और मेरे आँख बंद करने के चंद मिन्टो बाद ही फिर कुछ यूँ हुआ कि मुझे पूरे कमरे में गर्माहट महसुस होने लगी यकायक यूँ लग रहा था कि जैसे मानो मैं किसी जलती अंगिठी के आगे बैठा हूँ।

और तभी उसकि आवाज़ कानो में आई -“क्या अब आपको गर्माहट लगरही है ? उसने पूछा तो मैंने बताया-“हाँ बिल्कुल!

तो ये सुनकर उसने कहा-“अब अपनी आँखे मत खोलना बस इस लम्हे को ऐसी ही मैहसुस करो। मेरी आँखे बंद थी और मैं बस उस लम्हें में खो सा गया था और तभी वो मेरे नज़दिक आ कर बैठ गई मेरी आँखो पर अपना हाथ रख। मैं उसकि गर्म सांसो को महसूस कर सकता था वो मेरे इतने करीब थी।

मैंने उसे कहा कि ये क्या कर रही होतो वो हौले से मेरे कानो के पास आकर धिंमें से बोली -“मैं जो करूँगी उसे आपको कोई ऐतराज़ नही होगा ये कहती कहती वो मेरे कपड़ो के उपर अपना हाथ सहलाने लगी जिससे कि मैं बेकाबू होकर मैंने उसे अपनी बाँहो में जकड़ लिया,वो मेरी बाँहो में मचलने लगी हम दोनो बेहद करीब थे। वो मेरे लवो को अपने लवों से सहलाकर मुझे पागल करती जारही थी और‌ उसी पागलपन में मैंने उसे सख्ती से अपने होंठो के करीब खिंचकर उसे चूमना चाहा मगर वो खिलखिलाती हंसी के साथ खुदको मुझसे छूड़ाती हुई दूर जा हटी।

मैं फौरन उठकर उसे पकड़ने को लपका वो दरवाज़ा खोल बाहर निकलना चाह रही थी के तभी मैंने लपक कर उसका हाथ पकड़ लिया उसका रूख उस समय दरवाज़े कि ओर था और मैं उसके पिछे उसका हाथ थामें खड़ा था।

वो गहरी गहरी साँसे भर हाँफ रही थी तो मैंने कहा ऐसे क्यों तड़पा कर जा रही हो आओ मेरे पास आओ,मेरा इतना कहना था कि पलक झपकते उसकि गर्दन घूमती हुई मेरी तरफ मुड़ गई और ये देखते ही मेरे होश फाख्ता होगऐ।

वो मुड़ी गर्दन सहीत मेरे सामने अपने उल्टे पैरो के साथ खड़ी थी और फिर हौले हौले उसका चेहरा दहकते अंगारो सा जलने लगा मैं उसका वो खौफनाक चेहरा देख चीख पड़ा और फिर मेरे गले कि आवाज़ कहीं गुम गई।

वो इतनी खौफनाक लग रही थी के मानो जैसे कोई जलता कोयला सामने दहक रहा हो। उस वक्त उसे देख मेरी सांस मेरे गले में ही अटक कर रह गई थी। उसका वो जलता हुआ चेहरा देखकर मैं तो जैसे ज़मीन में धंसता चला जारहा था और तभी वो मेरे करीब आकर खौफनाक आवाज़ में बोली—”क्या हुआ बाबू..? काँप क्यों रहे हो..? अब तो तूम्हे सर्दी नही लग रही होगी ना..?

ये कहते कहते उसके मूंह से ठहाको कि ज़ोरदार आवाज़ गूँजने  लगी जिसे सुनकर मैं तो ठिठक कर रह गया। उसकि हँसी खौफनाक चूड़ैल से कम ना थी या दरहकिकन वो एक चूड़ैल ही थी जिसका शिकार मैं बन गया था।

अभी मेरे मन ये बात चली ही थी के उसने ये कह दिया —”वाह..वाह..एक ओर शिकार…? मैं कब से तेरा ही इंतेज़ार कर रही थी..आ…मेरे पास आ…!

ये कहती कहती वो मेरे करीब बढ़ने लगी। मैं अपने होश खो चुका था जब वो मेरे नज़दिक बढ़ रही थी। उसके उल्टे पैरो कि चाल देख कर तो मेरे होश खत्म ही गऐ थे। मरता न क्या करता मैं धिंमें धिंमे खिसकते हुए अपने कदम पिछे करने लगा।

वो जैसे ही मेरे करीब बढ़ी तभी मेरे कानो में एक आवाज़ गूँजी —”फौजी बाबू ..? अरे ओ फौजी बाबू ..? उठो सवेरा होगया है। 

मैं ये आवाज़ पहचानता था। ये आवाज़ स्टेशन मास्टर कि लग रही थी। उनके झंझोड़ने पर मैं चौंक कर उठ बैठा। 

“लगता है बाबू कोई बूरा सपना देख लि‌या तभी इतना हांफ रहे हो चलो आजाओ तूम्हे चाय पिलाता हूँ ” इतना कह कर वो कमरे से बाहर‌ निकल गऐ और उनके जाते ही मैं अपनी तेज़ धड़कनों को सम्भालते हुऐ उठा अपने इर्द गिर्द देखते हुऐ।

ये सच था कि मैं डर से लम्बी लम्बी गहरी सांसे भर रहा था

मैंने कमरे के चारो ओर नज़र घूमाया तब जाकर मुझे चैन कि सांस आई।

ये यकीनन मेरा एक बूरा सपना था ये सोच कर मैंने मन में उपर वाले का शूक्रिया अदा किया और फौरन से उठकर अपना बैग उठा‌ते हुऐ वहाँ से निकल‌ गया।  

मैं आज भी जब उस रात के बारें में सोचता हूँ तो मेरी रूह कांप जाती है,कहने को वो‌ मेरा बूरा एक सपना था मगर मुझे तो ऐसा महसुस हुआ कि सब हकिकत‌ में हुआ था। 

मैं आज भी उस रात के खौफनाक मंज़र को भूला नही पाता हूँ मुझे आज भी ये बात कचोटती है कि वो सच में मेरा बुरा सपना ही था या फिर सचमें “कोई था..???”

आयशा खान

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