फ़र्ज़ – विभा गुप्ता : Moral Stories in Hindi

       ” प्रकाश..कुछ दिनों में मैं तुम्हारे रुपये लौटा दूँगा..बहन की शादी आ पड़ी है।बचाये हुए रुपये बेटे की बीमारी में खर्च हो गये वरना मैं तुमसे कभी नहीं…।”

  ” लौटाने की बात नहीं है भाई..सच में इस वक्त इतनी बड़ी रकम मेरे पास नहीं है..बिजनेस में भी घाटा हो रहा है तो…।” मित्र दिनेश की बात पूरी होने से पहले ही प्रकाश ने उसे अपनी स्थिति से अवगत करा दिया।दिनेश ने एक नज़र उसके बड़े-से घर पर डाली और निराश होकर वहाँ से चला आया।

      दिनेश और प्रकाश अच्छे मित्र थे।एक दिन प्रकाश ने दिनेश से कहा कि वो नौकरी छोड़कर अपना व्यवसाय करना चाहता है जिसमें कुछ रुपये कम पड़ रहे हैं।तब दिनेश ने खुशी-खुशी उसकी मदद कर दी।

    कुछ ही महीनों में प्रकाश को मुनाफ़ा होने लगा तो उसने दिनेश को रुपये वापस कर दिये।कुछ समय बाद वो एक बड़े घर में शिफ़्ट हो गया।उसने अपने बेटे के जन्मदिन पर दिनेश को बुलाया।दिनेश के हाथ में छोटा-सा उपहार देखकर उसकी पत्नी रंजना ने अपने नाक-भौं सिकोड़ लिये।पार्टी खत्म होने के बाद वो प्रकाश से बोली,” अब बड़े लोगों के बीच हमारा उठना-बैठना होता है..दिनेश के कारण हमारी नाक नीची हो जायेगी।अतः आप उससे दूर ही रहे तो अच्छा है।” पैसे का रंग उस पर भी चढ़ रहा था,इसलिये उसने अपनी व्यस्तता का बहाना बनाकर दिनेश से मिलना छोड़ दिया।

    दिनेश की बहन की शादी तय हो गई।जेवर खरीदने के लिये उसे पैसे कम पड़ रहे तो उसने प्रकाश से उधार लेना चाहा। रंजना ने प्रकाश को न देने का इशारा कर दिया तो प्रकाश ने बहाना बना दिया।दिनेश का उतरा हुआ चेहरा देख उसकी पत्नी राधिका समझ गयी।गुस्से-से बोली,” आप तो उसके #वक्त पर काम आये लेकिन वो..।” प्रकाश के व्यवहार से उसे भी दुख हुआ लेकिन ‘ जाने दो..ईश्वर मदद करेंगे..’ कहकर उसने पत्नी को शांत कर दिया।

     एक दिन दिनेश अपने सहकर्मी को देखने अस्पताल गया।रिसेप्शन पर उसने देखा कि प्रकाश स्टाफ़ के सामने हाथ जोड़कर गिड़गिड़ा रहा था,” मैडम..आप चाहे जितना पैसा ले लीजिए लेकिन मेरे बेटे को बचा लीजिये..।” वह दौड़कर वहाँ गया..प्रकाश को शांत करते हुए स्टाफ़ से पूछा कि क्या बात है? स्टाफ़ ने संक्षेप में बताया कि इनके बेटे का एक्सीडेंट हो गया है..बच्चे का ब्लड ग्रुप हाॅस्पीटल और आसपास के ब्लड-बैंक में नहीं है..हम लोग कोशिश..।

 ” तो मेरा ब्लड ले लीजिए..मेरा ब्लड-ग्रुप ओ पाॅज़िटिव है।” दिनेश तपाक-से बोला और प्रकाश को आश्वासन देकर स्टाफ़ के साथ जाँच के लिये चला गया।ब्लड मैच होते ही नर्स ने उसका ब्लड ले लिया और प्रकाश के बेटे को चढ़ा दिया।

     अगले दिन दिनेश जब प्रकाश के बेटे को देखने आया तब रंजना उसके पैर छूने लगी तो उसने रोक दिया,” भाभी..ऐसा मत कीजिये।मैंने तो बस अपना फ़र्ज़ निभाया है..।”

  ” मुझे माफ़ कर दे मेरे भाई.. पैसे के अहंकार में मैं भूल गया था कि पैसे से हम जिंदगी नहीं खरीद सकते..आज अगर तुम न होते तो..।” प्रकाश रो पड़ा।तभी राधिका भी आ गई।रंजना ने उससे भी हाथ जोड़कर माफ़ी माँगी।

    रोहन के स्वस्थ होते ही प्रकाश ने न सिर्फ़ दिनेश की आर्थिक मदद की बल्कि अपने परिवार के साथ उसके घर जाकर शादी भी अटेंड किया।

    कुछ समय बाद प्रकाश को रुपये लौटाते हुए दिनेश बोला,” भाई..तुम वक्त पर काम आये..तुम्हारा ये एहसान कभी नहीं भूल सकता.।”

  ” एहसान कैसा..गीता मेरी भी तो बहन है..मैंने तो बस भाई का फ़र्ज निभाया है..।” रुपये वापस करते हुए प्रकाश बोला और अपने मित्र को गले से लगा लिया।

                                        विभा गुप्ता

# वक्त पर काम आना       स्वरचित, बैंगलुरु

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