खुशनुमा माहौल था चारों तरफ शहनाइयों की गूंज से वातावरण संगीतमय हो गया था, शादी के मंडप में पंडित जी मंत्र उच्चारण करने के लिए तैयार बैठे थे और फेरे करवाने की तैयारी कर रहे थे साथ में दूल्हा भावेश भी बैठा हुआ था पंडित जी बोल रहे थे दुल्हन को जल्दी से बुलाओ फैरों का टाइम हो रहा है जैसे ही दुल्हन बनी तनीषा मंडप में आती है, फेरे शुरू होने से पहले ही एक बुलंद आवाज पंडित जी को फेरे करने से रोक देती है!
अरे यह तो दूल्हे के पिताजी की आवाज है क्या? तनीषा के पापा बोलते हैं आप नाराज क्यों हो रहे हैं ! बेटे बहू का फेरे का टाइम हो गया है, नहीं अभी फेर नहीं हो सकते? भावेश के पापा भुवनेश्वर जी बोले, अरे——-ये ठाकुर साहबयह क्या कह रहे हैं ! तनीषा के पापा मोहन हाथ जोड़कर बोले।
देखिए फेरे तभी होंगे जब आप 10 लख रुपए मंडप में मेरे बेटे के हाथ पर रखेंगे और मेरे बेटे को कार देने का वादा भी करेंगे यह सुनते ही दुल्हन के पिताजी मोहन को सदमा लग जाता है कहां से इतने पैसे लाऊंगा ?आपने पहले क्यों नहीं बताया! अगर आपकी इतनी बड़ी मांग थी, तो मैं शादी के लिए सोचता, मेरी छोटी बेटी तान्या भी है और एक छोटा बेटा तरूण इंजीनियरिंग में पड़ रहा है, मैं अगर अपना घर बेंच दूंगा तो मैं कहां जाऊंगा अपने बच्चों को लेकर और वह सिर पकड़ कर बैठ जाते हैं! अपने पापा की हालत देखकर बेटी मंडप में खड़ी हो जाती है, और अपनी जयमाला को उतार कर एक तरफ फेंकती है, बोलती है मैं ऐसे घर में शादी नहीं कर सकती! जो मेरा मोल भाव लगा रहा है?
दुल्हन के पिता मोहन और मां तनुजा दोनों दूल्हे के माता-पिता माया और भुवनेश्वर जी के हाथ पैर जोड़ते हैं समधि भाई हमारे घर की इज्जत की लाज रखो, वह आपके घर की इज्जत बनने वाली है, लेकिन उनके कुछ समझ में नहीं आता वह लड़की के पापा की कोई बात नहीं मानते ,लड़का भी उस समय कुछ नहीं बोलता ,ऐसी स्थिति देखकर इतना खुशनामा वातावरण दुख में बदल जाता है! दहेज के कारण तनीषा शादी करने से मना कर देती है, और वारात वापस चली जाती है! इतने में———!
एक खूबसूरत सा नौजवान तेजी से आता है और तनीषा का हाथ पकड़ कर कहता है क्या तुम मुझसे शादी करोगी? अरे यह तो सूर्या मेरी सहेली देवाश्री के बड़े भाई हैं, जहां मैं बचपन से जाति आती थी, वह मुझे औरअपनी छोटी बहन को पढ़ाते भी थे अच्छी शिक्षा भी देते थे, हम लोगों की पढ़ाई भी पूरी हो गई थी ,और मेरी सहेली के भाई की इंजीनियरिंग कॉलेज में लेक्चरर की नौकरी भी लग गई थी, लेकिन हम लोग दोस्त की तरह हंसते खेलते बड़े हो गए पता भी नहीं चला ,और आज अचानक !अपनी सहेली के भाई को अपने सामने मंडप में खड़ा देखकर तनीषा हैरान रह गई !
तनीषा अपनी सहेली देवाश्री से बोलती है, अरे तुम्हारे भैया कब आए! क्या तुमने उन्हें बुलाया? उसने कहा हां मैंने यहां का माहौल देखा और तुम्हारे पापा मम्मी की हालत देखकर मैंने अपने भैया को सब बात बताई वह तो बचपन से ही तुम्हें चाहते थे? पर कहा कभी नहीं, इसलिए सब काम छोड़कर तुम्हारी शादी में आगये, शायद तुम्हारी जोड़ी भगवान ने ही बनाई है ! तनीषा की सहेली के भाई को मंडप में खड़ा देखकर और तनीषा का हाथ मांगता हुआ देखकर ——–आश्चर्य से तनीषा के माता-पिता एकदम से समझ नहीं पाते कि भगवान का यह कैसा न्याय है ? तुरंत तनीषा के माता-पिता सूर्या बेटे और उसके माता देवकी और पिता समीर से पूछते हैं?
आप भी बताएं !आपकी मांग क्या है? मेरी बेटी से आपके बेटे की शादी करेंगे? आपको क्या चाहिए दहेज में —–! तनीषा के माता-पिता मोहन और तनुजा बोलते हैं , सूर्या बेटा बताओ——-सूर्या और उसके पापा मम्मी बड़े आदर पूर्वक बोलते हैं “सिर्फ आपके घर की इज्जत को अपने घर की लक्ष्मी बनाना चाहते हैं और उसे गृह लक्ष्मी की तरह मान सम्मान देना चाहते हैं यही हमारी मांग है” यह देखकर तनीषा के माता-पिता सोचते हैं इतना खूबसूरत नौजवान—– तो फरिश्ता बनकर मेरी बेटी की जिंदगी में आ गया जिसे कोई लालच ही नहीं है! तनीषा के माता-पिता खुशी-खुशी सूर्या से अपनी बेटी की शादी करने के लिए तैयार हो जाते हैं।
असल में यह दोनों परिवार आपस में बहुत अच्छे से जानते थे और आसपास ही रहते थे उनके बच्चे भी एक ही स्कूल में पढ़ते थे एक दूसरे की मम्मी से मौसी कहते थे लेकिन उन लोगों ने कभी बच्चों की शादी के बारे में नहीं सोचा और सब सहज भाव से चल रहा था , इस परिवार से इतनी गहरी दोस्ती थी की शादी में भी उनको आदर पूर्वक बुलाया गया था ।
तनीषा की सहेली और उसके पापा मम्मी सभी लोग शादी में सम्मिलित होने आए थे ,पर सूर्या अपने किसी काम से गया हुआ था। सूर्या की बहन देवाश्री जब बताती है अपने भाई को कि यहां तो मेरी सहेली की बारात ही लौट गई, लड़के वाले दहेज की मांग कर रहे थे ,यह सुनकर सूर्या तुरंत शादी में उपस्थित हो जाता है ,अपनी बहन के कहने पर!—– पता क्या था? शादी में आकर उन्हें भगवान का दिया इतने बड़े तोहफे के रूप में अपने घर की लक्ष्मी मिलेगी।
फिर क्या था सूर्या के मम्मी पापा ने तुरंत बहू के गहनों, कपड़ों ,का इंतजाम भी कर लिया क्योंकि उन्हें सभी जानते थे वह एक बहुत अच्छे पैसे वाला परिवार था, और व्यवहार में भी बहुत अच्छे थे ,उनका बेटा सूर्या सज धज के बारात लेकर आ गया और फिर डांस गाने शुरू हो गए शहनाइयों की गूंज से वातावरण फिर से खुशहाल बन गया आज सूर्या के परिवार ने एक बेटी की इज्जत बचाई थी, तनीषा के माता-पिता ,भाई ,बहन सभी खुश थे, क्योंकि तनीषा आज अपने जाने पहचाने परिवार में बहू बनकर जा रही थी। देवाश्री भी बहुत खुश थी अपनी सहेली तनीषा को अपनी भाभी के रूप में देखकर।
सूर्या और उसका परिवार आज बहु तनीषा को अपने घर की गृहलक्ष्मी बनाकर “इज्जत” सहित विदा करके ले जा रहे थे।
सुनीता माथुर
मौलिक अप्रकाशित रचना
पुणे महाराष्ट्र