तुषार लखनऊ से दिल्ली पढ़ने आया था । वहीं कालेज के पास रहने वाले शर्मा जी के ऊपरी फ्लोर के एक कमरे में रहने की व्यवस्था भी कर ली। मम्मी साथ आने को कह रही थी लेकिन उसने कहा , “मैं अब बड़ा हो गया हूं,सब हैंडल कर सकता हूं।कुछ दिन बाद वहां मेरे साथ रहने के लिए आ जाना।”
वहां व्यवस्था होने के बाद उसने मम्मी को फोन करके सब विवरण दिया कि उसे कमरा भी बहुत अच्छा मिल गया और मकान मालिक शर्मा जी भी बहुत सह्रदय इंसान हैं।
कमरे में बेड ,अल्मारी ,छोटा सा फ्रिज और टीवी भी है,यह कमरा पहले उनकी बेटी का था ,उसकी शादी हो गई है और आंटी की डेथ हो चुकी है ,अंकल अकेले रहते हैं मेरा बिल्कुल बेटे जैसा ध्यान रखते हैं।अपने लिए चाय या खाना बनाते हैं तो मेरे लिए भी बना देते हैं, किराए बस थोड़ा सा ज्यादा दे दूंगा बदले में।मां सुनकर बहुत खुश और संतुष्ट हो गई ।बाहर बच्चे को ठीक सा ठिकाना और घर का खाना मिल जाए ,यह भी बहुत नियामत है।
कुछ दिन बाद ही होली थी,तब तुषार ने मां को अपने पास रहने बुलाया । शर्मा जी को मां के बारे में बताया तो वो भी उनके आने से काफी उत्साहित दिखे । तुषार मां को लाने स्टेशन चला गया।उनके स्वागत में उन्होंने पनीर और छोले का स्पेशल लंच भी बना लिया।मीठे में कस्टर्ड भी तैयार कर लिया।
जैसे ही बैल की आवाज़ से वो दरवाजा खोलने गए,आंखें जैसे स्वप्न देख रहीं हों,या कोई भ्रम है — सुहासिनी –उनका क्रश ,उनका पहला प्यार,उनके अतीत की स्वर्णिम पूंजी जिन्हें उन्होंने इतने सालों से मन के किसी तहखाने में कीमती जवाहरात की तरह सहेज कर रखा हुआ था ।
कभी ख्वाबों में भी नहीं सोचा था कि ऐसे मुलाकात होगी। सुहासिनी ने भी जब उन्हें देखा तो एकबारगी तो सामान हाथ से छूटकर गिर गया फिर किसी तरह सामान और मन को नियंत्रित कर अभिवादन किया।वो तुषार को शायद बता पातीं या नहीं उससे पहले ही शर्मा जी यानि कुणाल भावावेग में उसके कंधे पर हाथ रख अपनत्व से बोले” सुहासिनी कैसी हो ,आज चालीस साल बाद तुमको देखा ,बता नहीं सकता कितनी खुशी, आश्चर्य, उत्सुकता सब एक साथ तूफान मचा रहें हैं।
“अब विस्मित होने की बारी तुषार की थी ,”आप एक दूसरे को जानते हैं?” मां तो अब भी बुत बनी खड़ी थी, शर्मा जी ने ही कहा ,हम दोनों एक ही कालेज ,एक ही बैच के पढ़े ,और बहुत ही घनिष्ठ दोस्त थे।”अरे वाह वाट ए बिग सरप्राइज अब तो मजा ही आ जाएगा अब तो हम फैमिली ही हैं।”आवेश में कहीं तुषार की इस बात ने मानों उनके जख्मों को छेड़ दिया । फैमिली ही तो बनने वाली थी उनकी ,एक दूसरे के साथ जीने मरने की कसमें खा चुके थे ,एक दूसरे के लिए परिवार से विद्रोह करने को भी तैयार थे
,तभी सुहासिनी की बहन की प्रथम प्रसव के अवसर पर स्थिति नाजुक हो गई और अपने नवजात बच्चे को और पति का हाथ उसके हाथ में देकर स्वयं मुक्त हो गई और उसे बांध गई अनचाहे , अकल्पनीय बंधनो में।शायद नियति की यही मर्जी थी, स्वीकार करना पड़ा। कुणाल भी कालेज के बाद अपने गृहनगर वापिस चला गया और इस तरह एक प्रेम कहानी शुरू होने से पहले ही समाप्त हो गई।
आज इतने वर्षों बाद वो चैप्टर जब खुला,तो खुलता ही चला गया । तुषार के जाने के बाद दोनों अपने फ़्लैशबैक में चले जाते और छोटी छोटी बातें,छोटे पल समेटते , सहेजते न जाने कब तुषार के वापिस आ जाने का समय भी हो जाता।पापा के असमय देहावसान के बाद मम्मी ने बहुत संघर्षों से एक सिंगल पैरेंट्स की जिम्मेदारी को बखूबी निभाया था लेकिन खुशियां जैसे विरक्त थीं
उनकी जिंदगी से।अब इतने दिनों बाद उन्हें खुलकर हंसते बोलते देख तुषार का अंतर्मन तृप्त हो गया ।वो कुछ कुछ किस्से उसके साथ भी शेयर करते,उस समय सबको ऐसा लगता जैसे वो एक फैमिली हैं।अब किचेन की जिम्मेदारी खुद ब खुद सुहासिनी ने अपने ऊपर ले ली। कुणाल उसे इस तरह घर में काम करते देख अभिभूत हो जाते,।एक दिन तुषार की अनुपस्थिति में उसका हाथ पकड़ कर बोले ,”क्या हम अब एक नहीं हो सकते , तुम्हें नहीं लगता कि भगवान ने हमें इस तरह से इसलिए ही मिलाया है।
उन दोनों को आश्चर्य हुआ कि युवावस्था की तरह इस उम्र में भी एक दूसरे के स्पर्श से उनका रोम रोम रोमांचित स्पंदित हो गया था । दोनों पता नहीं कितनी देर उसी अवस्था में खामोश बस एक दूसरे को महसूस करते खड़े रहे। तुषार के आने की भी उन्हें खबर न हुई,वो भी चुपचाप वहीं से वापिस चला गया।वह सब कुछ समझ रहा था और मन ही मन उसने एक फैंसला भी कर लिया था।
होली के दिन उसने पहले दोनों को रंग लगाया और फिर सिंदूर कुणाल जी के हाथों में देते हुए बोला ,”आज होली है ,मेरी मम्मी की बेरंग जिंदगी को भी रंगों से सजा दीजिए ना प्लीज हमारी फैमिली बन जाइए।” दोनों को जैसे भगवान का वरदान मिला हो इतने वर्षों बाद। कुणाल जी ने सुहासिनी की मांग भर दी और फिर तीनों ने एक दूसरे को आलिंगन बद्ध कर लिया “हैप्पी होली” कहकर।
पूनम अरोड़ा