फैसला – मंगला श्रीवास्तव: Moral stories in hindi

माही पिछले कुछ दिनों से बहुत परेशान सी रहने लगी थी,वह ऑफिस से घर आकर चुपचाप अपने कमरे में जाकर दरवाजा बंद कर लेती व बहुत देर बाद निकलती।

रचना देवी कुछ दिनों से लगातार उस पर ध्यान भी दे रही थी ,पर माही से कुछ पूछती तो वह हर बात टाल देती थी।

हर वक्त हँसने हँसाने वाली माही की खामोशी अब घर में किसी से छुप नही पाई थी।

अपने पापा की लाड़ली और घर में सबसे बड़ी थी वह उसके बाद एक भाई था जो की उससे आठ साल छोटा था ।

पिता एक बाबू थे सरकारी ऑफिस में ,सीमित आय के बाद भी उन्होंने कभी अपने बच्चों की परवरिश में

कोई कमी नही रखी थी।

माही पढ़ने में अच्छी थी,इस कारण उसको पढ़ाई पूरी होते ही जल्दी जॉब भी मिल गई थी । और वह घर की परिस्थिति को जानती थी ,भाई की पढ़ाई का खर्च भी बड़े होने के साथ बढ़ने लगा था ।

उसने अपने पापा से कहा की भाई की पढ़ाई की पूरी जिम्मेदारी अब से उसकी है ।इस तरह घर की भी बहुत सी जिम्मेदारी उसने उठा ली थी ,क्यों की शरद जी को शुगर और ब्लड प्रेशर की बीमारी थी और

उनकी हार्ट सर्जरी भी हो चुकी थी।

इस कारण माही अपने पिता का भी बहुत ध्यान रखती थी ।

पर लगातार कुछ दिनों से उसकी इस तरह की हालत देखकर रचना जी बहुत चिंतित हो गई थी ।

कुछ दिन पूर्व ही माही की सगाई भी बहुत अच्छे परिवार में हो गई थी। सगाई को तीन महीने ही हुएं थे।

हालांकि माही अभी शादी नहीं करना चहाती थी, पापा की इच्छा के कारण उसको मन मारकर इस रिश्ते के लिए मजबूरी में हां करना पड़ा था।

पर तीन महीनों में ही माही का सुंदर चेहरा मुरझाए फूल की तरह निस्तेज हो गया था ।

उसके चेहरे पर खुशी की कोई झलक और रौनक ही नही दिखाई देती थी । यह माँ की निगाह से छुप नहीं सका था। आखिर माँ का मन बहुत बैचेन हो गया था।

आज रचना देवी ने सोच ही लिया था कि वह अपनी लाडली के दुख का कारण पता लगाकर ही रहेंगी।

आज जैसे ही माही घर आई व कमरे में पहुँची देखा माँ वह पहले से ही मौजूद थी हाथों में चाय व उसकी पसन्द के ब्रेड पकौड़ों के साथ।

वह बोली मेरा मन नही अभी कुछ भी खाने का माँ ..!

रचना देवी उंसके पास बैठकर उसका सिर सहलाने लगी ,और बोली बेटा अगर कुछ परेशानी है तो क्या अपनी माँ को भी नही बताओगी ।

“क्या” हुआ बेटा ? “तुम अपनी माँ को अपना दुख नही बता सकती

हो ” ।

“क्या बात है बेटा “?

कुछ दिनों बाद तुम्हारी शादी भी है.. “क्या तुम खुश नही हो ,””?

भगवान की कृपा से तुमको कितना अच्छा घर लड़का घर बैठे ही मिल गया है । घर परिवार भी बहुत अच्छा है इतना बड़ा बिज़नेस है उनका और सबसे अच्छी बात कि यही का भी है तुम ने भी इसी लिए हाँ की थी की उसका परिवार इसी शहर का है।

देखो जबसे तुम्हारी सगाई हुई है तुम्हारें पिता की चिंता दूर हुई है और वह भी कितने खुश है ,पर अब वह भी तुमको चुप देखकर परेशान है ।

तुम तो जानती हो बेटा अभी उनकी ओपन हार्ट सर्जरी हुई है।

माही यह सुनकर रो पड़ी और माँ के गले लग गई।

मैं जानती हूँ माँ इसी कारण तो चुप हूँ मैं ।

आप नहीं जानती हो माँ सगाई के बाद से ही रोहित रोज मिलने आते है मुझसे पहले तो ठीक था कि अभी ही सगाई हुई है सोच कर चुप रहती थी।

पर माँ आजकल वह रोज ऑफिस में किसी भी वक्त आ जाते है ,और मुझको बात बात पर टोकते है।

मेरे कलीग के सामने भी और तो और वह कभी भी वक्त बे वक्त फोन करते है तरह तरह के सवाल जवाब करने लगते है।

बहुत ज़रूरी काम करते वक्त भी वह मुझको फोन करके पूछने लगे की क्या कर रही हो कहां हो किसके साथ हो।

उनके सामने अगर मैं अपने किसी कलीग से बात करती हूँ तो ऑफिस से जब बाहर आती हूँ तो डांटने लगते है।

लगता है माँ वह बहुत शक्की मिजाज है। वह पसन्द नही करते कि में किसी से भी बातें करूँ चाहे जरूरी भी क्यों ना हो।

माँ वह मेरा ऑफिस है मैं वहाँ पर काम करती हूँ ,मुझकों बात भी करनी पड़ती है मीटिंग्स भी , और काम से कभी कभी अपने क्लाइंट से मिलने भी जाना पड़ता है अब सहा नही जाता है मुझसे उनका यहां व्यवहार में अगर कुछ बोल देती हूं तो बुरा मान जाते है।

अभी दो दिन पहले वह मेरे ऑफिस में आये थे पर मुझकों अचानक किसी क्लाइंट से मिलने बॉस के साथ बाहर जाना पड़ा था।

लेकिन जैसे ही मैं आई सबके सामने ही रोहित मुझको खींच कर बाहर ले गये ,और बाहर ले जाकर मुझकों इतने गन्दे इल्जाम लगाये मैं बता नही सकती हूँ ।आप ही बताइये क्या करूँ, अभी इस जॉब को करना मेरे लिए अपने घर के लिए बहुत जरूरी है , यहां बात मैं उनको सगाई के पहले ही बता चुकी थी तब उन्होंने कुछ नही बोला था ,पर अब उनका यह रवैया मुझको समझ नहीं आता है कि

“वह आखिर चहाते क्या है ” ?

पापा की तबियत ठीक नही है घर की स्थिति इतनी ठीक नही माँ आप जानती है।

क्या करूँ माँ बताओ आप लोगों की जिद्द के कारण ही मैंने शादी की हाँ भरी थी। मैं अभी तैयार भी नही थी पर बीच में पापा की तबियत व उनकी कसम ने मुझकों बांध दिया था अभी निखिल भी बहुत छोटा

है।

माँ सच बताऊँ रोहित के साथ मैं नही जी पाऊंगी जिंदगी गुजारना तो बहुत दूर की बात है। वह मुझकों कही भी किसी वक्त अधिकार पूर्वक छूने की कोशिश करता है ,शक करता है माँ कहकर वह रजनी जी के गले लगकर फफक फफक कर रो पड़ी थी।

रजनी जी उसकी बात सुनकर सकते में आ गई थी।

वह बोली चुप हो जाओ बेटा आज तुमको पिता की कसम से मैं उनकी पत्नी होने के अधिकार से मुक्त करती हूँ ।

तुम अब जो भी फैसला लोगी वह हम सबको स्वीकार होगा।

तुम हमारे लिए बोझ और ज़िम्मेदारी नही हो बल्कि हमारा सहारा हो।

रोहित जैसा लड़का मेरी लाड़ली बेटी की जिंदगी कभी नही बन सकता है।

कहकर उन्होंने तुंरन्त ही रोहित के पिता को फोन लगाया व दो टूक शब्दों में कहा “”हमको यह सम्बन्ध पसन्द नही है भाईसाहब यह शादी नही हो सकती है “..और फोन काटकर माही को अपने गले लगा लिया।

मंगला श्रीवास्तव इंदौर

स्वरचित मौलिक कहानी

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