Moral Stories in Hindi : “ ये क्या सुन रही हूँ बहू तू सरस के साथ नहीं जा रही है… अकेले कैसे दोनों बच्चों को सँभालेंगी…. सरस बता रहा था वो भी सप्ताह या पन्द्रह दिन पर ही आ पाएगा ऐसे में अनजान शहर में अकेली नहीं रह पाएँगी.. अभी भी कह रही हूँ सरस के साथ चली जा… क्या बच्चे रह पाएँगे पापा के बिना?” फ़ोन पर सासु माँ की बात सुन रचिता बस हाँ हूँ ही करती रही बोलती भी तो क्या…. उन्हें अपने बच्चे की फ़िक्र थी तो रचिता को अपने बच्चों की।
बारह साल से रचिता देख रही थी एक दो साल होते होते तबादला हो जाता था ऐसे में घर शिफ़्ट करना एक अलग मुसीबत तो होता ही था ….उसपर बच्चों की शिक्षा का नुक़सान देख बच्चे भी हताश होने लगे थे … बड़ी बेटी रूही कहने लगी थी,“ मम्मा हम ना तो दोस्त बना पाते हैं…ना ठीक से कुछ पढ़ पाते हैं… कभी जून तो कभी दिसंबर कोई भी महीना हो पापा का तबादला हो जाता और हमारे लिए नया स्कूल होता… नई किताबें….नए माहौल में जब तक ख़ुद में सामंजस्य बिठाने की कोशिश करते नया तबादला सिर पर खड़ा रहता ….ऐसे में ये उम्मीद करना की हम अच्छे नम्बर ला कर पास हो पाए सोचते ही रह जाते… नई किताबों के साथ आधा साल पढ़ते हैं फिर नई के साथ आधा … क्या याद करें कुछ समझ नहीं आता…. ऐसा कब तक चलेगा?” पढ़ने में होशियार रूही का दिल हर तबादले के साथ टूटता रहता था
ये सब देखते हुए रचिता ने सोच लिया था कि अब बच्चों को अच्छी शिक्षा और उज्जवल भविष्य देना है तो उनकी पढ़ाई पर ध्यान देना पड़ेगा…. नहीं तो इस तबादले की वजह से अगर उनके हौसले पस्त होने लगे तो आगे उन्हें सँभालना मुश्किल हो जाएगा….ये सोच कर ही रचिता ने बच्चों के साथ शहर में रहने का निर्णय ले लिया और पति अपनी पोस्टिंग वाली जगह जाने की तैयारी करने लगे थे जब से ये बात रचिता की सास को पता चली तो वो उसे भला बुरा समझा रही थी पर रचिता ने निर्णय ले लिया था ।
बच्चों की ख़ातिर लिए फ़ैसले का असर भी हो रहा था… बच्चों के मन में एक तो अपने माता-पिता के लिए सम्मान नज़र आ रहा था… उपर से ज्यों ज्यों वो बड़े हो रहे थे उन्हें एहसास हो रहा था कि मम्मी पापा बस हमारी वजह से दूर रहते हैं ताकि हमें अच्छी शिक्षा मिल सके…ऐसे में वो मन लगाकर पढ़ाई कर रहे थे… अपनी माँ की जितनी मदद हो सके वो करने लगे थे…..बच्चे और क़रीब आ गए थे … समय गुजरने लगा था अब बच्चे बारहवीं पास करने के बाद हॉस्टल की ओर रूख करने वाले थे…और अब तबादले के बाद रचित और सरस साथ रहने लगे थे……
एक दिन सास ने फ़ोन कर के पूछा,“ अब तो बच्चे बाहर चले गए है बस मियाँ बीबी ही रहते हो …… यही तो ज़िन्दगी है…. बच्चे बड़े हो कर चल देते हैं घर में बस पति पत्नी रह जाते… बेकार बच्चों की वजह से तुम सरस से दूर रही…।”
“ माँ मुझे अपने निर्णय पर गर्व तब भी था और अब भी है….आज मेरे उस निर्णय ने मेरे बच्चों को इस बात का एहसास तो करवा दिया कि हमें पढ़ लिख कर कुछ अच्छा करना है क्योंकि इसके लिए हमारे मम्मी पापा ने भी खुद को बहुत कष्ट दिया…. पापा को कितनी बार खुद ही खाना बनाना पड़ता था …मम्मी की तबियत ख़राब होने पर भी उन्हें अकेले ही हमें देखना पड़ता था…. हम पति पत्नी दूर दूर ज़रूर रहे पर इस फ़ैसले से बच्चों के बहुत क़रीब आ गए थे… आगे बच्चे क्या करेंगे नहीं जानती पर आज हॉस्टल चले गए हैं हर दिन फ़ोन करके हमसे बात करते हैं….. बच्चे जब अपने पैरों पर खड़े होकर सामने आएँगे तो हमसे ज़्यादा आप खुश होगी माँ तब आप कहिएगा मेरा निर्णय सही था और गलत।” रचिता ने कहा
“ बहू मैं तो बस इसलिए कह रही थी कि बाद में बच्चे कौन सा साथ ही रहते हैं…..अरे जो समय मिल रहा उसमें साथ साथ रह लो… बच्चे तो कल को अपने घोंसले में रहने चल देंगे बाकी तो बस पति पत्नी ही रह जाते है ….. जितना साथ रह सको रह लो।” सासु माँ समझाते हुए बोली
“ जी माँ ये बात तो मैं पहले से जानती हूँ कि बच्चे जब अपने पैरों पर खड़े हो जाते तो है अपने हिसाब से और अलग अलग ही रहने लगते …. पर जब मैंने ये निर्णय लिया था तो उनके हित का सोचकर ….कुछ दिनों बाद बेटा बेटी दोनों अपने पैरों पर खड़े हो जाएँगे और अपनी मर्ज़ी से अपनी ज़िन्दगी जीने के लिए स्वतंत्र रहेंगे पर अभी तक तो बच्चों के अंदर अपने माता-पिता के त्याग की बात जेहन में बैठी हुई है… अगर उस वक्त मैं हमारे साथ रहने का सोच कर छोटे क़स्बों में सरस के साथ रहने लगती तो हो सकता बच्चों की अच्छी पढ़ाई के लिए मुझे उन्हें हॉस्टल भेजना पड़ता… वो तो फिर तभी दूर हो जाते ….. मेरे निर्णय से कम से कम बारहवीं तक तो मेरे साथ रहे ना ….हाँ सरस को ज़रूर कष्ट हुआ था पर इसका पॉज़िटिव असर ये हुआ कि बच्चों के दिल में पापा का त्याग इतना घर कर गया है कि वो अब हर बात पर ये सोचते हमें कुछ ऐसा करना जिससे पापा को हम पर गर्व हो… माँ इससे बड़ा इनाम मुझे और क्या मिल सकता है… आप भी तो एक माँ है आप भी तो यही चाहती थी ना आपके बच्चे अच्छा करें बस वैसे ही मैं भी यहीं सोचती हूँ…. रही बात अब अकेले रहने की तो मैं उन दिनों की दूरियों को अब पाट रही हूँ…।” रचिता ने कहा
सासु माँ ने हँसते हुए कहा,“ ठीक है बहू जैसा तुझे ठीक लगता है कर ….सही बात है बच्चे आज नहीं तो कल अपनी ज़िन्दगी में कुछ अच्छा करने के लिए दूर तो कभी ना कभी जाएँगे ही तो उनके साथ जितना साथ रह सकती थी रह ली अब पति के साथ की बारी है अच्छे से खुशी से रह !”
ये एक आम समस्या रहती हैं जब तबादले वाली नौकरी होती और बच्चों को या तो अच्छा स्कूल नहीं मिल पाता या फिर अच्छी शिक्षा की व्यवस्था वहाँ नहीं होती ऐसे में कई माएँ अपने बच्चों के लिए एक निर्णय लेती और बच्चों के साथ रहती क्या आपकी नज़र में रचिता ने गलती की,..उसे सास की बात मान लेनी चाहिए थी..? अपने विचार ज़रूर साझा करें।
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धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
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