फ़ैसला – रश्मि प्रकाश  : Moral stories in hindi

”सुनती हो… अरे कहाँ हो भाई जल्दी बाहर आओ।” हाथों में सामान का थैला थामे जैसे ही घर के दरवाज़े के भीतर पाँव रखे राजेश्वर जी पत्नी सुनंदा जी को आवाज़ देने लगे

रसोई से गीले हाथों को आँचल में पोंछते हुए सुनंदा जी निकल कर आई और बोली,“ क्यों गला फाड़ रहे हैं थैले भारी है तो नीचे रख देते।”

“ अब बताइए भी क्या बात है ?” सुनंदा जी थैले राजेश्वर जी के हाथ से लेते हुए पूछी 

” वो मनोहर आया है साथ में बेटा बहू भी है और कुछ लोग भी साथ में आए हैं… उसका घर ख़रीदने…. मनोहर बहुत बड़ी गलती कर रहा है घर बेच कर… सालों पुराना पड़ोसी… दोस्त अब यहाँ कभी नहीं आएगा … समझ नहीं आ रहा क्या बात हुई होगी… बेटा बहू अपना दायित्व ठीक से निभा भी रहे हैं  और नहीं… उसकी फ़िक्र हो रही है ।” कहते हुए राजेश्वर जी सोफे पर बैठ गए 

“ देखिए जी किसी के घर में हम ताका झांकी तो कर नहीं सकते अब क्या बात हुई राम जाने… वैसे भी सरला बहन के गुजर जाने के बाद मनोहर जी यहाँ रहते ही कहाँ थे…. बेटा ज़बरदस्ती कर के साथ ले गया था और अब आए है तो घर बेचने…. कुछ तो बात ज़रूर हुई होगी ।” सुनंदा जी बोली 

“ एक बार चल कर उनका हाल-चाल पूछ लेते हैं और चाय पर बुला लाए मनोहर को?” राजेश्वर जी बोले

मनोहर जी और राजेश्वर जी में बहुत गहरी दोस्ती थी…. बच्चे दोनों के बाहर रहते थे इसलिए ये चारों लोग( राजेश्वर -सुनंदा जी और मनोहर- सरला जी )शाम में साथ बैठ कर हँसी ठहाकों के बीच चाय पीते पर जब से सरला जी गई मनोहर जी अकेले पड़ गए और बेटा बहू अपने साथ ले गए…और अब साल भर बाद आए भी तो घर बेचने का हल्ला सुन कर राजेश्वर जी बेचैन होने लगे।

राजेश्वर जी मनोहर जी को घर बुला लाए… बेटा बहू एजेंट से डील करने में व्यस्त थे।

दोनों दोस्त गले मिल आँखें गीली कर बोले,“ तुम्हें बहुत याद करता था ।”

“ कैसे हैं मनोहर भैया… सुना घर बेच रहे हो पर अचानक से क्यों?” सुनंदा जी ने चाय बिस्कुट मेज पर रखते हुए पूछा 

“ बस भाभी क्या ही बोलूँ…. सरला चली गई मुझे अकेला छोड़…. अब तो ये ज़िन्दगी ही भारी लगने लगा है…. बेटा बहू के पास रहता तो हूँ फिर भी अकेला ही हूँ…. दोनों ऑफिस चले जाते पीछे से मैं घर पर बोर होता रहता था….इस चक्कर में शाम को बाहर निकलना शुरू किया कुछ हमउम्र लोगों से मुलाक़ात हुई वो लोग अकेले हो या जोड़ों में सब बहुत खुश लग रहे थे…एक दिन एक सज्जन मुझे अपने घर ले गए…. पता चला ये सीनियर सिटिज़न की सोसायटी है… जहाँ हमारे जैसे लोग रहते…..अधिकांश लोगों के बच्चे या तो विदेश में बस गए है या फिर अकेले रहना पसंद करते ऐसे में वो अपने पैरेंट्स को उन जैसे लोगों के बीच रहने का इंतज़ाम कर देते हैं….वहाँ अपने हमउम्र लोगों के बीच ज़िन्दगी आसान लगती …. घर का सारा काम करने वाले भी मिल जाते है और आप अगर सक्षम ना हो तो आपके लिए आकर खाना भी बना जाते…. बस मैंने भी बेटे से कहा मुझे वहीं रहना….उधर जिसकी जितनी क्षमता सब मिलकर कुछ ना कुछ काम भी करते हैं ….कुछ ने तो खुद ही उस जगह का चुनाव किया है….. सच कहूँ भाभी जी आजकल के बच्चों की लाइफ़ स्टाइल से ना हम मैच कर पाते ना वो हमारी….ऐसे में कभी कभी मनमुटाव की सी स्थिति बन जाती हैं अब बहू को भी ऑफिस जाने की जल्दी होती है…..तो वो क्या ही कर पाएगी….सरला की बहुत याद आती है जब भी कुछ खाने का मन करता और खा नहीं पाता…. जब कुक के हाथ का ही खाना है तो उधर क्या ही बुराई है?” मनोहर जी के शब्द उनके अकेलेपन की व्यथा कह रहे थे 

“ आप उधर जाकर ख़ुशी से रहेंगे तो क्या ही दिक़्क़त है भाई साहब…. एक कम्पनी मिल जाएगी तो समय भी आसानी से कट जाएगा…. आपका ये हौसला देख कर लग रहा है हमें भी ऐसी ही जगह पर बसेरा बनाना चाहिए ।” सुनंदा जी ने कहा 

“ तुम्हारे बेटे बहू तैयार है ना… मनोहर… ये घर बेचने का फ़ैसला तुम्हारा ही है ना?” जाने क्यों सारी बात सुन राजेश्वर जी को मनोहर जी की बात पर कुछ शक सा हुआ 

“ हाँ हाँ राजेश्वर…. सब की सहमति से ही।”मनोहर जी अचकचाते हुए बोले

“ देख मनोहर तेरा दोस्त हूँ चेहरा पढ़ना आता मुझे ।” राजेश्वर जी ने कहा

 मनोहर जी एक पल को मौन हो गए फिर आँखों में आँसू डबडबा गए वो दरवाज़े की तरफ़ देखें जैसे वो कुछ कहने वाले हो और कोई सुन ना ले…

“ राजेश्वर यार ज़िन्दगी बहुत कष्टों में घिर गई थी… इसलिए ये फ़ैसला लिया…. एक दिन बहू अपनी दोस्तों के साथ पार्टी कर रही थी… मैं किसी काम से कमरे से बाहर आ गया तो कहने लगी…. पता है ना हम पार्टी कर रहे हैं उतनी देर आप कमरे में बैठ नहीं सकते थे… दोस्तों के सामने आना ज़रूरी था क्या..उसकी ये बात मुझे तो चुभी सो चुभी दूसरे दिन बेटे से कहने लगी उन्हें यहाँ रखने की क्या ही ज़रूरत बोझ से तो हो गए है… बेटे के मौन ने मुझे और चोट दी … मैं ये सब सुन घर से बाहर निकल गया और उन लोगों से मिला तभी मुझे अलग रहने का हौंसला मिला….राजेश्वर बच्चों को हम अपना सब समझ बैठने की बहुत बड़ी भूल करते हैं पर वहीं बच्चे जब हमें बोझ समझने लगे तो दिल टूट जाता …. फिर मैंने ये फ़ैसला लिया …बेटा  समाज के डर से मुझे अकेले नहीं छोड़ना चाहता था इसलिए उसे उस जगह लेकर गया…. सब लोगों से मिलवाया….. तब वो तैयार हुआ है अब समस्या उधर रहने और खर्च की आ रही थी इसलिए ये घर बेच कर एक कमरे का फ़्लैट लेने का विचार किया…. बाक़ी पैसे बैंक में जमा कर दूँगा…. साफ कह दिया है मैं जब तक ज़िन्दा हूँ अपना इंतज़ाम कर लूँगा…. तुम लोगों से नहीं होता है तो पैसे दे कर सेवा करवा लूँगा पर अब यहाँ नहीं रहूँगा …. अब बेटा तो बेटा है पिता के लिए मन डोल भी रहा हो पर जिस पत्नी के साथ रहना है उसकी बात भी तो सुननी होगी उसे।” मनोहर जी लाचारगी से बोले

राजेश्वर दोस्त को गले लगा लिए और बोले“ मनोहर तू हौसला रख …. तेरा यार है अभी तेरे साथ….।” 

तभी अचानक से मनोहर जी का बेटा कमरे में आ गया ….उसके  चेहरे के भाव बता रहे थे वो थोड़ी बातें सुन चुका था…. अंदर आकर सिर झुकाए खड़ा हो गया… उसके चेहरे पर डर साफ दिख रहा था कही पापा अपना फ़ैसला ना बदल लें फिर भी वो हिम्मत कर बोला“ पापा चले… सोच रहा हूँ ये घर किराए पर ही रहने देते हैं….आप हमारे साथ ही रहिए जैसे भी हो ।”

“ नहीं बेटा अब मैंने फ़ैसला कर लिया है….मैं उधर ही अपने हिसाब से रहूँगा…. तुम्हारा जब मन करें मिलने आना…. कभी-कभी किसी फ़ैसले को लेने के लिए बहुत हिम्मत और हौसले की ज़रूरत होती है जो मुझमें अब आ गया है…. जब तक शरीर चल रहा है मैं उन लोगों के साथ रह कर कोई ना कोई काम भी करूँगा… बस तुम याद रखना तुम्हारा एक पिता भी है… चले सब फ़ाइनल कर लिया तो मैं काग़ज़ात पर साइन कर पुराना घर उन्हें देकर अपना नया घर लेना चाहता हूँ ।” इस बार मनोहर जी की आवाज़ बुलंद थी

 राजेश्वर और सुनंदा जी ने मनोहर जी के हौसले का मान करते हुए उन्हें अपनी सहमति भी जता दी।

दोस्तों कई बार कुछ बच्चे या माता-पिता बहुत लाचार से हो जाते हैं तब कोई ऐसा कदम उठाने पर मजबूर हो जाते हैं…. मनोहर जी सब इच्छाएँ त्याग कर आख़िर कब तक बेटा बहू के साथ रह सकते थे…. शायद तब जब उनके पास कोई और चारा नहीं होता….आजकल कई जगहों पर इस तरह की सोसायटी बन रही हैं जहां वो पैरेंट्स रहते हैं जिनके बच्चे या तो साथ रखना नहीं चाहते या उनके लिए अपना कोई दायित्व नहीं समझते या फिर विदेश में रहते हुए भी माता-पिता की ज़िम्मेदारी निभाने का दायित्व निभाना चाहते हैं…. आप क्या कहते हैं… इस तरह की सोसायटी का होना  आपके विचार से सही है और गलत?

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धन्यवाद 

रश्मि प्रकाश 

# दायित्व

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