एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर – संध्या त्रिपाठी  : hindi stories with moral

hindi stories with moral :  शुभ्रा दीदी …एक बात पूछूं ..? सच-सच बताइएगा…. पहले वादा करिए …आप झूठ तो नहीं बोलेंगी ना…. अरे नहीं प्रभा …तू तो मेरी छोटी बहन है तुझसे क्यों झूठ बोलने लगी भला…. कपड़े समेटते हुए बड़ी सहजता से शुभ्रा ने जवाब दिया….

           तो बताइए आपकी शादी ना करने के निर्णय का कारण सिर्फ पापा के करतूत  ( एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर ) ही है या कुछ और…….

अरे ये कौन सी इतनी बड़ी बात थी जिसे पूछने के लिए तुझे इतनी भूमिका बांधनी पड़ी..!

       तू तो जानती है …हमारा परिवार कितना खुशहाल था …हम सब पापा , मम्मी , मैं , तू सब साथ में रहते थे …इसी बीच पापा का ट्रांसफर हो गया , हमारी पढ़ाई लिखाई की वजह से मम्मी हम लोगों के साथ यहीं रहने लगीं…. पापा दूसरे शहर में जाकर अपनी नौकरी करने लगे …हालांकि पापा का आना जाना हमेशा लगा रहता था …..।

        शुरू शुरू में तो सब कुछ ठीक-ठाक चलता रहा …फिर उनका पहले से आना थोड़ा कम हो गया और कहीं ना कहीं मम्मी को उनके व्यवहार में परिवर्तन दिखाई देने लगा था… वो उनकी अर्धांगिनी थी ना ….उनके नस-नस से वाकिफ थी…. और शायद पापा को चालाकियां भी कम ही आती थी …..अतएव मम्मी ने भाँप लिया कि मामला कुछ गड़बड़ है…।

    हालांकि पापा ने अपनी गलती कभी स्वीकार नहीं की…. हमेशा उनका एक ही जवाब होता ….ऐसा कुछ भी नहीं है …..पर कहते हैं ना…. चोर कितना भी चालाक क्यों ना हो कुछ निशानियां छोड़ ही जाता है …..इसी तरह एक दिन पापा बाथरूम में थे ….और बार-बार उनके मोबाइल पर एक कॉल आ रहा था… उसमें ऊपर लिखा था   ” ऑफिस ” मम्मी ने सोचा ऑफिस का फोन है कुछ जरूरी होगा …बता दूं… इसलिए मम्मी ने फोन उठा लिया….उनके कुछ कहने से पहले ही… उधर से आवाज आई …कहां रह गए आप तो रात में ही आने वाले थे ना… मैं खाना बनाकर… वो आगे कुछ कहती… मम्मी सब कुछ समझ गई थी…. सब कुछ …..क्योंकि पापा कल शाम जाने की जिद कर रहे थे… वो तो मम्मी ने ही कहा ….आज भर और रुक जाइए और मैंने भी पापा को कसम डालकर रोक लिया था…. और भी न जाने कितनी ऐसी बातें ….

” यदि एक पति अपनी गलतियों को स्वीकार नहीं करता है तो उसका फर्ज बनता है वो स्पष्ट रूप से सच्चाई का  प्रमाण दे ताकि पत्नी की शंका का समाधान हो सके “

इस कहानी को भी पढ़ें: 

अंग्रेजी बोलने पर अहंकार क्यूं? – ऋतु गुप्ता 

    फिर हर स्त्री का स्वाभिमान होता है प्रभा ….मम्मी कैसे बर्दाश्त करतीं वो वहां नौकरी के साथ मौज मस्ती में लगे रहते  …यहां मम्मी हम लोगों की जिम्मेदारियां ढोती रहती थी ….हालांकि पापा पैसे भेजते थे घर खर्च और हमारी पढ़ाई दिखाई के लिए…।

     मजबूरी बहुत बड़ी चीज होती है प्रभा …ना चाहते हुए भी मम्मी को उनके पैसे लेने पड़ते थे… धीरे-धीरे मम्मी भी मोहल्ले की आंटियों के साड़ी में फाॅल लगाना , ब्लाउज छोटे बड़े करना …इस प्रकार के काम करने लगीं…. मैंने भी हायर सेकेंडरी की परीक्षा पास कर ली थी…. और घर की जरूरत को देखते हुए पढ़ाई की अपेक्षा नौकरी की ओर ज्यादा ध्यान दिया…. किस्मत और कुछ लोगों के सहयोग से मुझे क्लर्क की नौकरी मिल गई …।

    जिस दिन मुझे पहली तनख्वाह मिली थी ना प्रभा ….मां के चेहरे की चमक , स्वाभिमान एक बार फिर से उनके चेहरे पर दिखाई दिया… बस फिर क्या था उसी दिन से पापा से पैसा लेना बंद…बिल्कुल भी बंद… वैसे पापा ने भी जबरदस्ती पैसे देने या कह लें… अपना फर्ज निभाने में कभी उत्सुकता नहीं दिखाई …..फिर धीरे-धीरे खत्म ….सब कुछ खत्म… हो गया मेरी बहन…. सब कुछ खत्म….

    सशक्त , स्वावलंबी अपने दर्द चेहरे पर न लाने वाली शुभ्रा की आंखों में आज आंसू छलक ही गए…. पर खुद को संभालती हुई शुभ्रा ने आगे कहा…

     और इसके बाद ना प्रभा… मुझे सभी मर्दों से , मर्द जाति से ही नफरत सी हो गई ….विश्वास ही नहीं होता उनकी वफादारी पर ….लंबी सांस लेते हुए शुभ्रा ने विषय को विराम लगाना चाहा…।

  शुभ्रा दी…. शायद आपने मेरे प्रश्न को ठीक से सुना नहीं था…. ऐसा लग रहा था जैसे प्रभा आज अपनी दीदी से सब कुछ सच-सच उगलवा कर ही दम लेगी…।

    हां बहना… ध्यान से सुना है मैंने तेरा प्रश्न ….तो एक बहुत बड़ी सच्चाई ये भी है कि …..यदि मैं शादी कर लेती तो इस घर का , हमारी मां के स्वाभिमान का …क्या होता … मेरी जरूरत है इस घर को …माँ को , तुझे…. कहते कहते शुभ्रा ने प्रभा को बाहों में भर लिया..!

     ” शुभ्रा दी ..सभी लड़के ऐसे ही होते हैं क्या “…?

 अचानक प्रभा द्वारा किये इस सवाल से शुभ्रा थोड़ी हड़बड़ा गई फिर भी धैर्य बनाते हुए बड़े इत्मीनान से बोली…. नहीं ….बिल्कुल नहीं….!

 पर तू क्यों पूछ रही है …?? …कहीं… ओए होए… क्या बात है ….मैं तो भूल ही गई मेरी छोटी वाली प्यारी सी बहना अब बड़ी हो गई है और मैं बुढ़ी होने लगी हूं …शुभ्रा ने भी माहौल को हल्का करने की भरपूर कोशिश की…।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

दादीजी का श्राद्ध डे! – प्रियंका सक्सेना

       बूढ़ी हो आपके दुश्मन …आपके व्यक्तित्व के लाखों दीवाने हैं …पर दीदी मैं तो शादी करूंगी ….हां दीदी मैंने तो शादी करने का निर्णय ले लिया है ….भले आप सब मुझे स्वार्थी क्यों न बोले …..एक ही सांस में प्रभा ने अपना फैसला सुना दिया…।

      आज तेरे फैसले ने अप्रत्यक्ष रूप से उपज रहे मेरे मन के सारे उलझनों चिंताओ से मुझे मुक्त कर दिया… लंबी सांस भरते हुए शुभ्रा ने कहा..।

  ये लो …अब जरा सुनूं तो मैं भी… ऐसी कौन सी चिंता थी जो मेरी शादी के निर्णय सुनकर ही रफू चक्कर हो गए… प्रभा ने भी जिज्ञासा जाहिर की.।

      जानती है प्रभा ….अविवाहित स्त्री ना समाज में …एक ऐसे कोरा कागज की तरह होती है…. जिसमें कोई भी कुछ भी अपने-अपने दृष्टिकोण से लिख सकता है….. शक…. संदेह….. अरे अब तुझे कैसे बताऊं यदि अचानक गाड़ी पंचर हो जाए और तू किसी के साथ बैठकर , लिफ्ट लेकर दफ्तर चली जा उसमें भी हजारों बातें ….किसी के साथ खुलकर हंस ले , घूमने चली जा …ना जाने कितनी बातें होने लगती है …

     और हो भी क्यों ना…..”  हमारे पापा के समान उदाहरण .. एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर का भी तो इसी समाज में है “…।

मैं नहीं चाहती जिन परिस्थितियों से मैं गुजरी हूं उनका सामना तुझे भी करना पड़े…।

  अच्छा छोड़ ये सब बातें…. अब बता… वो है कौन …..??  अब तेरी शादी की तैयारी भी तो करनी है ना… दीदी बस एक आखरी बात का और जवाब दे दीजिए ना… प्लीज…

मेरे शादी के कार्ड में पापा का नाम होगा या….. आगे प्रभा और कुछ कह पाती ….शुभ्रा और प्रभा की मां जो काफी देर से दोनों बहनों की बातें सुन रही थी…. पास आकर बोली…… नहीं बिल्कुल नहीं …..होगा शादी के कार्ड में उनका नाम…. जब मैंने जिंदगी से ही उनका नाम मिटा दिया तो फिर से कार्ड में उनका नाम लिखवाऊँ…?

ठीक है मम्मी …मैंने तो यूं ही पूछ लिया था…।

      वो पल भी आ ही गया …बड़े फक्र से शादी के कार्ड में पिता के जगह पर मां और शुभ्रा दीदी का नाम छपा था…. शादी समारोह स्थल खचाखच भरा हुआ था…. लोग आ रहे थे जा रहे थे…. मां हाथ जोड़ कर सबका अभिवादन कर खाना खाने का आग्रह कर रही थीं….

       दूर खड़ा एक व्यक्ति टकटकी लगाए दुल्हन बनी प्रभा को देखे जा रहा था …आशीर्वाद देने हेतु उसके हाथ बार-बार ऊपर उठते…. फिर मुट्ठी भींच कर वो हाथ नीचे कर लेता था….।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

हिदायत – कंचन श्रीवास्तव

         मां की नजरों से वो व्यक्ति छुप नहीं पाया…. मां ने उसके पास जाकर धीरे से कहा ……शादी में आए सारे मेहमानों की श्रृंखला में आप भी भोजन करके ही जाएगा …..  ” हमारे घर बिन बुलाए और अनचाहे मेहमानों को भी भूखे जाने देने का रिवाज नहीं है …अशुभ होता है ” ….।

  आज शायद नहीं यकीनन पापा की एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर वाली करतूत ने उन्हें अपने ही घर में …बिन बुलाए अनचाहा मेहमान बनाकर रख दिया था…।

 ( स्वरचित मौलिक  अप्रकाशित सर्वाधिकार सुरक्षित रचना )

   श्रीमती संध्या त्रिपाठी

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!