सुबह से लगातार बारिश हो रही है,, थमने का नाम ही नही ले रही,, शुक्र है,,, इतवार है,, किसी को कहीं जाना नहीं।
धीरे से किचन में,,, जाकर कड़क अदरक की चाय बनाई,,,, और बालकनी के सामने चेयर डालकर,, गर्म चाय का आनंद लेने लगी।
अकेलापन मिला,,,तो दिमाग भी अठखेलियां खेलने लगा,,, और पहुंचा दिया,,, सालों पीछे की मधुर,, अविस्मरणीय। यादों के समंदर में…………
वो भी ऐसी ही एक सुबह थी,,, एमसीए,,, में एडमिशन,,, लिया था,,, जल्दी जल्दी,,, कॉरीडोर से निकलते ही,, किसी से,, जोरदार टक्कर हो गई,, आह,, जोरदार कराह निकल गई,, किसी ने मजबूत हाथों से सहारा देकर,,, उठने में मदद की,, गुस्से से मेरा मुंह,, तमतमा उठा,,, लड़ाई के मूड से जैसे ही मैंने सामने वाले को देखा ,,,,, मैं लड़ना ही जैसे भूल गई,,, सांवला,, छै फुटा,, शानदार शक्ल सूरत,, वाला लड़का,, मेरे सामने,, अपना, चश्मा ठीक करते हुए बोला,,, आप ठीक हैं,, मैं बुद्धू की तरह,,, मुंडी हिलाए जा रही,,, गहरी निगाहों से मेरी तरफ़ देख बोला,,, गुड, और चला गया,,, अरे चला कैसे गया,,, मैं मन ही मन झल्ला उठी।
प्रीती सक्सेना मौलिक
क्लास में पहुंचीं तो सहेलियों से बात करने में मशगूल हो गई,,, प्रोफेसर आए,,, देखा तो खुशी के मारे दिल जोर जोर से धड़कने लगा,,,, जब परिचय दिया उन्होंने,,,, तो मैं ताज्जुब में पड़ गई,,, वो मेरी ही जाति के थे,,, भगवान से मन ही मन मांगने लगी,, काश ये मेरे जीवन में आ जाएं।
समय निकलने लगा,,, साथ ही मेरा आकर्षण भी,,,, पर उस समय,,, इतनी आजादी कहां थी,,, जो अपनी बात माता पिता से कह पाते।
इतवार का दिन,, मैं छत पर अपने बाल सुखा रही थी,,,देखा,, उन्हीं का एक साथी,, मेरे घर की घंटी बजा रहा है,,, मैं ताज्जुब में पड़ गई,,, ये क्यों आया है??? सवालों को विराम देकर नीचे आ गई,,, थोडी देर बाद पापा,,, बैठक से बाहर आए और बोले,,, रचना के लिए,,, रिश्ता आया है,,,, मेरे कान खड़े हो गए,,, परदे की आड़ से मम्मी पापा की बातें सुनने लगी,,,
किसका,,,, मम्मी ने पूछा,,, पापा ने उन्हीं का जिक्र किया,,, जिनके बारे में,, मैं अक्सर सोचा करती थीं,,, पापा ने बताया,,, रवि, को रचना, पसन्द है,, वो चाहता है,,, उसके माता पिता से,,, हम बात करें।
मम्मी पापा,, के साथ मैं भी बहुत खुश,,, आख़िर,, भगवान ने मेरी सुन ली,,,, वो भी मुझे पसन्द करते हैं,,, जानकर तो मैं,,, आसमान में उड़ने लगी थी।
पापा मम्मी,,, उनके शहर गए,,, रिश्ता लेकर,,, पर लौटे,, निराश होकर,,, उन्होने,, बिना बताए,, बिना उनसे पूछे,,, उनका रिश्ता ,, कहीं और तय कर दिया,, टूट सी गई पर लगा,,, हमारे बीच था ही क्या,,, न कोई वादा न कोई कसम।
प्रीती सक्सेना मौलिक
कुछ दिनों बाद कालेज गई तो उनके उसी साथी ने,,, एक बड़ा सा लिफाफा दिया,, और बिन बोले,, चला गया,,, घर आई,, अपना कमरा बंद किया,,,, और लिफाफा,, खोला,,, अपने छुपे प्यार के साथ,,,अपनी मजबूरियों को ,, बताया था,,, तीन बहनों के इकलौते भाई हैं,,, माता पिता,, का सहारा हैं,,, उन्हें दुखी नहीं कर सकते,,, आख़िर में माफी मांगी,,,, मैं गलत भी तो नहीं ठहरा सकती थी उन्हें।
वक्त निकला,,, शादी हुई बच्चे हुए ,,, जीवन,, अवाध गति से चलने लगा,,, मन के कोने में,, मेरा अनोखा प्यार अभी भी छुपा था।
शॉपिंग मॉल गईं,, पति भी साथ थे,,, मैं थोड़ी दूर आ गई,, सामान लेते लेते,,,, अचानक एक आवाज़ गूंजी,,,, हैलो रचना,,,, पलट के देखा,, तो सामने रवि,,,, मैं स्तब्ध सी रह गई,,, कैसी हो,,, जी अच्छी हूं,,, इतना ही बोल पाई,,, और पतिदेव के पास चली गई,,, दिल की धड़कनों को भी डांट रही थीं,,, एक अजनबी है वो,,, उसके लिए इतना जोर से धड़कने का क्या मतलब।
घर आई,,, दिमाग को झटक,,, अपने को काम में व्यस्त कर लिया,,,, पता नहीं भगवान क्यों मेरे साथ अजीब सा खेल,,,, खेल रहे हैं।
फिर आया महा विनाश का समय,,, कोविड,, प्रहार,,,, दुनिया अस्त व्यस्त,,, सब घरों में बंद,,, चारों ओर हाहाकार,,,,24 घंटे प्रार्थना,,, परिवार की सलामती,, सुरक्षा,, जीवन ,,, छिन्न भिन्न हो गया।
सुबह का पेपर मेरे हाथ में था,,, जैसे ही खोला ,,,, जो पेज खुला,,, उसमें जिस ख़बर पर,,, नजर पड़ी,,, वो ख़बर थी,,, प्रोफेसर,,,, रवि की कॉविड से मृत्यू,,,, एक बार फिर स्तब्ध हो गई मैं,,,, आंसू बह गए,,, ऐसे अनोखे प्रेम को श्रृद्धांजलि,,, देने को,, जहां मूक प्यार था,, न कोई वादा था,,, न कोई कसमें थी,,,,
होश में आई,,, देखा सब जाग उठे हैं,,, एक लंबा अरसा बीत गया,,, सब कुछ ठीक होता जा रहा है,, टीस अभी भी उठती है पर,, प्रेम की तरह उसे भी दबा रखा है।
वो जहां भी हो खुश हो,,,,,, शायद अगले जनम में हम साथ हों……….
प्रीती सक्सेना
मौलिक
इंदौर