विवाह-कार्य सम्पन्न होने के बाद जब तृप्ति की विदाई का समय आया तो घर के बड़े-छोटे सभी सदस्यों की आँखें नम होने लगी।तृप्ति कभी ताईजी के सीने से लगकर रो रही थी तो कभी मानसी बुआ के गले से लिपट कर कह रही थी, बुआ, मुझे रोक लो और बुआ कहती, ” बिटिया,ये तो समाज का दस्तूर है कि बेटी को विवाह के बाद ससुराल जाना ही पड़ता है।” उसके भतीजे-भतिजियाँ भी ‘बुआ-बुआ’ कहकर उससे लिपट-लिपट कर रोए जा रहें थें।
तृप्ति का जन्म इस परिवार में नहीं हुआ है,ऐसा उसे कभी महसूस ही नहीं हुआ था।उसकी माँ जानकी इस परिवार की दूसरे नंबर की बहू थीं।विवाह के दस बरस बाद भी जब उनकी गोद सूनी ही रही तब उन्होंने अपने पति कैलाश बाबू से रिश्तेदारी के बच्चे को गोद लेने की बात कही, तब कैलाश बाबू ने कहा कि गोद ही लेना है तो बच्ची गोद लेंगे और वो भी अनाथालय से।अगले ही दिन तृप्ति अपने माता-पिता के साथ इस घर में आ गई, तब वह मात्र दस दिन की थी।परिवार के सभी सदस्यों ने उसे हाथों-हाथ लिया।कभी ताईजी उसे नहलाती तो कभी गायत्री चाची उसे दूध पिला देती।ताऊजी , चाचाजी और अपने बड़े भाई-बहनों के साथ खेलकर फ्री होती तभी उसे माँ अपनी गोद में ले पाती।जब उसका दूसरा जन्मदिन मनाया जा रहा था,तभी मानसी बुआ ने कहा, “इसे पाकर हम सभी तृप्त हो गए हैं।” बस उसी दिन उसका नाम तृप्ति रखा गया था।
समय के साथ वह बड़ी होती गई, नर्सरी से प्राइमरी स्कूल और प्राइमरी स्कूल से हायर सेकेंडरी स्कूल फर्स्ट क्लास पास करते हुए वह इंटर में आ गई थी।परन्तु समय हमेशा एक जैसा रहे, ऐसा तो कभी होता नहीं है।उसकी खुशियों को भी ग्रहण लग गए।द्वितीय वर्ष की फाइनल परीक्षा की तैयारी करने में वह जुटी हुई थी, इसीलिए वह अपने मम्मी-पापा के साथ ट्रिप पर नहीं गई और उसी ट्रिप से लौटते वक्त न जाने कैसे उनकी कार फिसलकर गाड़ी में गिर गई जिससे उसके मम्मी-पापा की डेथ हो गई।
उसके लिए यह सदमा असहनीय था, कई दिनों तक तो वह रोती रही थी, कभी ताईजी तो कभी गायत्री चाची उसे जबरदस्ती खाना खिलाने का प्रयास करते, भाई-बहन, भतीजा-भतीजी सभी उसके आस-पास ही रहते ताकि उसे अकेलापन न लगे।कहते है ना,समय बड़े से बड़ा घाव को भर देता है।अपनों के स्नेह और ममता ने भी उसके दुख को कम कर दिया था।वह धीरे-धीरे सामान्य होने लगी और इंटर के बाद उसने अपना ग्रेजुएशन भी पूरा कर लिया।
अब परिवार के सभी बड़े चाहते थें कि तृप्ति की शादी हो जाए और वह अपने ससुराल चली जाए।इस संबंध में मानसी बुआ और गायत्री चाची के बीच ठन गई।तृप्ति सुंदरता के साथ-साथ गुण व स्वभाव की भी धनी थी,इसीलिए बुआ की सहेली और चाची की भाभी, दोनों ही उसे अपनी बहू बनाना चाहते थें।दोनों के बीच सुलह कराने में चाचाजी कामयाब हो गए, चाची ने अपना प्रस्ताव वापस ले लिया और सबने तृप्ति की सहमति से बुआ की सहेली वाले रिश्ते को मंजूरी दे दी।
आज वह विदा होकर हमेशा के लिए उस घर से जा रही है जहाँ न तो उसने जन्म नहीं लिया और न ही माता-पिता उसके साथ रहे थे, फिर भी उसे दुनिया भर की खुशियाँ मिली।ताऊजी, चाचाजी, बुआजी, बड़े भैया, दीदी, इन सभी के प्यार,स्नेह और अपनेपन के बीच उसने एक भरे-पूरे परिवार का आनंद उठाया था।उन सबको छोड़ना उसके लिए बहुत कठिन हो रहा था।गाड़ी की तरफ़ आगे बढ़ते जब वह अपने दोनों हाथों से रंगे हुए चावल पीछे फेंक रही थी तो सोच रही थी, ” भगवान, ऐसा परिवार सबको मिले।”
—- विभा गुप्ता
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