जब मैं छिंदवाड़ा में शिक्षिका थी,उस समय मेरी बड़ी बेटी पांच साल की और छोटी बेटी दो माह की थी,हम दोनों की नौकरी और दो छोटे बच्चे, बड़ा मुश्किल हो रहा था।, कुछ दिनों तक पड़ोसियों ने देखभाल की,पर कब तक हम उन्हें परेशान करते,हम बहुत परेशान हो रहे थे, हमारे पड़ोस में एक मद्रासी परिवार रहता था,उन अम्मा जी से हमने अपनी परेशानी बताई, तो उन्होंने अपने मेड की लड़की जो करीब दस वर्ष की रही होगी,को मेरे पास भेजा।
उसका नाम रंभा था, मैंने आश्चर्य से कहा, ये इतनी छोटी बच्ची कैसे मेरी बेटी की देखभाल करेगी। सुनकर रंभा ने कहा, आंटी, मैं सब अच्छे से कर लूंगी,आप मेरा विश्वास करिए, मैंने अपने भाई बहन की देखभाल की है,जब मेरी मां दूसरों के यहां काम करने जाती है।
मैं अपना काम पूरी जिम्मेदारी से करूंगी,आप मुझे कुछ दिन रख कर देख लीजिए।
मजबूरी में मुझे रखना पड़ा, मैंने दो-तीन दिन उसको जांचा-परखा,।
सच में बहुत ही होशियार और समझदार बच्ची थी, परिस्थिति और गरीबी तथा मजबूरी ने उसे समय से पहले ही परिपक्व बना दिया था।
वह सुबह नियत समय पर सात बजे मेरे घर पर होती , मेरे स्कूल जाने के बाद बेटी को नहलाती,मालिश करती और बढ़िया कपड़े पहना कर उसके बालों में कंघी करके सजा कर बोतल से दूध पिला कर बाहर घूमाने ले जाती । खाना बनाने में भी बहुत मदद करती मेरी।
मैं स्कूल की परीक्षा कापियां चेक करती मेरे लिए चाय, नाश्ता बना कर देती,।। कभी भी उसने मुझे शिकायत का एक भी मौका नहीं दिया। कालोनी निवासी सभी लोग उसकी बहुत तारीफ करते। इतनी छोटी उम्र में कितना सब कुछ सीख गई है।
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इतनी छोटी सी बच्ची मेरे लिए एक फरिश्ता बनकर आई थी, मेरे साथ वो एक साल रही, फिर उसकी मां का देहांत हो गया, उसके पापा ने उसे उसकी नानी के पास भेज दिया, मैं तो चाहती थी कि मैं हमेशा के लिए उस गरीब बच्ची को अपने साथ रखूं,पर लोगों ने कहा, उसके पापा शराबी हैं उसका कोई विश्वास नहीं है, बाद में आपको ब्लैकमेल कर सकता है।
वो चली गई,पर मैं आज इतने सालों में भी उसे भूल नहीं पाई। उसने बड़ी जिम्मेदारी के साथ मेरा घर और मेरी बच्ची को संभाला।
उसके बाद मुझे कोई भी इतना जिम्मेदार नहीं मिला।
भगवान ने मुझे उसके रूप में एक नन्ही-सी चमत्कारी बालिका ,परी जैसे भेज दिया था।जो मेरा काम होते ही उड़न छू हो गई।
वो जहां भी हो, भगवान करे, ख़ुश रहे, स्वस्थ रहे,।
,,उसको भी तो याद हम सबकी आती ही होगी।।
सुषमा यादव प्रतापगढ़ उ प्र
स्वरचित मौलिक ।
#जिम्मेदारी