#एक टुकड़ा
जुहू बीच पर बैठी सुनंदा आती -जाती लहरों को सूनी आँखों से देख रही थी।नन्ही पीहू लगातार रोये जा रही,पत्थर बनी सुनंदा को किसी ने हिलाया। “बेटी तुम्हारी बच्ची कितनी देर से रो रही तुम्हे सुनाई नहीं दे रहा “। सुनंदा ने सूनी आँखों से हिलाने वाले को देखा। बड़ी सी बिंदी और होठों पर गहरी लाली लगाये, बॉर्डर वाली सिल्क की साड़ी पहने वह महिला उसे स्नेह से निहार रही थी। पता नहीं सुनंदा ने उस महिला में क्या देखा, उससे लिपट जोर से रो पड़ी,उसने ऐसा क्यों किया आई (माँ )…. क्यों किया..? किसने किया,क्या हुआ तुम्हारे साथ मुझे बताओ बेटा शायद मै कोई मदद कर सकूँ। पर पहले नन्ही बच्ची को चुप कराओ।
तभी तेज गर्जना के साथ बारिश होने लगी, महिला ने,नन्ही पीहू को गोद में उठाया और सुनंदा का हाथ पकड़ उसे पास के ईरानी चाय की दुकान में ले आई। एक कोने में जगह खाली देख, सुनंदा को बैठाया,पीहू के लिये गर्म दूध और सुनंदा के लिये चाय और पाव का आर्डर दिया। जबतक सुनंदा चाय पी, महिला ने पीहू को दूध -बिस्किट खिला दिया। चाय पी, सुनंदा कुछ स्थिर हुई तब महिला ने सुनंदा से पूछा -बेटी अब बताओ तुम्हे क्या परेशानी हैं। उस महिला के स्नेह में सुनंदा को अपनी आई दिखने लगी। धीरे -धीरे उसने बताया।
सुनंदा और कार्तिकेय दोनों इंजीनियरिंग कॉलेज में एक साथ पढ़ते थे। सुनंदा महाराष्ट्र की और कार्तिकेय उत्तर प्रदेश का था। दोनों पढ़ाई की होड़ से निकल,प्रेम की गलियों में कब विचरण करने लगे।दोनों का पता नहीं चला।फाइनल एग्जाम के बाद दोनों का चयन एक मल्टीनेशनल कंपनी में एक साथ हो गया, तब विवाह के लिये सुनंदा और कार्तिकेय ने अपने घरों में बात की, ना सुनंदा के घर के लोग इस विवाह के लिये तैयार हुये, ना कार्तिकेय के घर के लोग तैयार हुये।कोई चारा ना देख सुनंदा घरवालों के विरुद्ध जा कार्तिकेय के संग कोर्ट मैरिज कर ली।
दोनों ने अलग से अपनी नई गृहस्थी बसा, विवाहित जीवन का शुभारंभ किया।दो साल बाद जब नन्ही पीहू ने जन्म लिया तब दोनों ने अपने घर वालों को मनाने की बहुत कोशिश की पर कोई माना नहीं। अब सवाल पीहू की परवरिश का हो गया। किसके भरोसे पीहू को छोड़े।पीहू के लालन -पालन के लिये सुनंदा ने जॉब छोड़ दी। हँसी खुशी दिन बीत रहे थे। तभी देश में कोरोना महामारी ने दस्तक दी। बहुत से लोगों के जॉब छूट गये। कार्तिकेय भी डरा रहने लगा। सुनंदा उसको हौंसला देती -ऐसा कुछ नहीं होगा।
रोज कार्तिकेय सुबह से कमरे में लैपटॉप खोल कर बैठ जाता।कमरे का बंद कर लेता जिससे उसे काम में विध्न ना पड़े,शाम को ही कमरे से बाहर निकलता। एक दिन पीहू को तेज बुखार था सुनंदा, पीहू को कार्तिकेय के पास छोड़ दवा खरीदने गई और लौट कर आ रही थी कि सीढ़ियों पर ही उसे पीहू के रोने की तेज आवाज आई। अनहोनी की आशंका से सुनंदा का मन कांप उठा। घर में आके देखा कार्तिकेय ने पंखे से लटक कर आत्महत्या कर ली, नन्ही पीहू वही बैठी जोर -जोर से रो रही थी। सुनंदा गश खा कर गिर गई। होश आया तो अस्पताल में थी। पीहू को उसकी सहेली ने ने अपने पास रखा। कब, क्या कैसे हुआ, सुनंदा को कोई होश नहीं।
कार्तिकेय अपने माता -पिता का एकलौता बेटा था तीन बहनों बाद बड़ी मन्नतों से पैदा हुआ था। कार्तिकेय की आत्महत्या का जिम्मेदार सब सुनंदा को मान रहे थे सबने उससे किनारा कर लिया,और सुनंदा इस पहेली को नहीं सुलझा पाने से अवसाद में जा रही थी। आखिर क्या वजह थी जो कार्तिकेय ने आत्महत्या की..। काश उसे कारण तो पता चले।हँसी -खुशी गुजरती उनकी जिंदगी में क्या ऐसा हो गया जो कार्तिकेय को आत्महत्या करनी पड़ी।कार्तिकेय को समुन्द्र के किनारे बैठ लहरों को आते -जाते देखना बहुत अच्छा लगता था। जब भी सुनंदा परेशान होती जुहू बीच में आकर वही बैठ जाती जहाँ कार्तिकेय के संग बैठती थी।
“आई, क्या आप पता कर सकती हैं, कार्तिकेय ने ऐसा क्यों किया।”जरूर पता करुँगी बच्ची। पर एक बात ध्यान में रखों अब तुम अकेली नहीं हो, तुम्हारे साथ कार्तिकेय की निशानी पीहू भी तुम्हारे साथ हैं। जिसकी अच्छी परवरिश तुम्हारा कर्तव्य हैं।सुख -दुख जीवन का हिस्सा हैं, घबराना नहीं चाहिये बल्कि धैर्य से मुकाबला करना चाहिये।
“आई मै कोशिश करुँगी आप जैसा बनु “ये सुनते ही वो महिला बोल पड़ी -मै नहीं चाहती तू या कोई और मेरे जैसा बने, तुम मेरा सच नहीं जानती, मै सच छुपाना भी नहीं चाहती हूँ, मै एक किन्नर हूँ जो पैदा तो लड़का हुई थी पर मेरी रुचियां लड़कियों जैसी थी। मेरी माँ को सच पता था पर पिता से छुपा कर रखती थी। माँ ने मुझे किसी को भी बताने से मना किया था मेरी आवाज का भारीपन, वो गला खराब हो गया कह संभाल लेती थी।वो चाहती थी मै पढ़ -लिख कर अपने पैरों पर ख़डी हो जाऊँ।झूठ ज्यादा दिन तक नहीं छुपा रहता,
जब मै एक प्रतियोगिता में सफल हुई तब मेरे मेडिकल टेस्ट ने वो राज सबको बता दिया जो मेरी माँ और मुझ तक था।पढ़ाई तो अधूरी रह गई पर माँ की मदद से मैंने अपना बिजनेस शुरु किया और आज एक सफल बिजनेस वुमन गौरीकिरण हूँ, मेरी माँ का नाम किरण हैं मैंने अपनी माँ के नाम को अपनी पहचान बनाई।, मैंने अपनी पहचान नहीं छुपाई।अपनी लड़ाई खुद लड़ी, क्योंकि मै भीख मांग कर अपनी पहचान नहीं बनाना चाहती थी। भले ही समाज ने हमें थर्ड जेंडर की पहचान दी, पर मैंने अपने परिश्रम से अपनी पहचान बनाई।हम भी उसी की कृति हैं, जिसने पुरुष और स्त्री को बनाया।
गौरी किरण की सच्चाई सुन सुनंदा चकित हो गई। गौरी कहीं से भी किन्नर नहीं लग रही थी। क्या देख रही हो तुम, सच जान कर तुम्हे भी नफरत हो गई।गौरी किरण के गले लग सुनंदा बोली -आप मुझे अपनी आई की तरह लग रही हो, इसीलिए मेरे मुँह से आई निकला। आज से मै सचमुच तेरी आई हूँ और तू मेरी बेटी। तेरी पूरी जिम्मेदारी अब मेरी हैं। हाँ आई, मुझे माँ मिल गई… मुझे बेटी तो हमारा परिवार पूर्ण हो गया। नन्ही पीहू भी सोते -सोते मुस्कुरा दी।मानों इस रिश्ते पर उसकी भी सहमति हैं।
बारिश थम गई थी काले बादलों को चीर कर एक टुकड़ा धूप निकल आई थी। सुनंदा को भी गौरीकिरण ने रोशनी की किरण दिखा दी। गौरीकिरण के बिजनेस में सुनंदा रम गई।
अपने वादे के मुताबिक गौरीकिरण ने कार्तिकेय की आत्महत्या के कारण का पता लगा सुनंदा को असिलियत से वाकिफ कराया।कोरोना -काल में कार्तिकेय की कंपनी ने सबसे पहले अधिक वेतन वाले एम्प्लोयी को निकला, जिसमें कार्तिकेय भी था। कार्तिकेय ने सुनंदा को पता नहीं लगने दिया की उसकी जॉब छूट गई हैं। वो पहले की तरह कमरा बंद कर काम पे रहने का दिखावा करता था पर अंदर ही अंदर टूट रहा था। पैसे खत्म होने पर वो अपने पिता के पास आर्थिक मदद मांगने गया था वहाँ भी पिता ने उसे बहुत भला -बुरा कह मदद से इंकार कर दिया। दूसरे दिन हताशा में कार्तिकेय ने लड़ने से अच्छा पंखे से लटक जाना सही समझा..।
कार्तिकेय के राज को सुन सुनंदा के आँसू बहने लगे -काश कार्तिकेय एक बार तो तुमने दुख साँझा किया होता। जल्दीबाजी में लिये गये कार्तिकेय के निर्णय ने जहाँ सुनंदा से पति, दोस्त छीन लिया वही पीहू से उसका पिता छीन लिया।
सुनंदा ने अपने को संभाल लिया। गौरी किरण का बिजनेस टॉप टेन में आ गया। रैन -बसेरा नाम से एक आश्रम भी बनाया, जहाँ कोई जेंडर से नहीं, भारतीय की पहचान से रह सकता था।
2014 में सरकार ने किन्नर को ट्रांसजेंडर की पहचान दी। समाज में बदलाव आया।बहुत से किन्नर पढ़ -लिख कर आत्मसम्मान से अपनी जिंदगी सार्थक कर रहे। एक सैल्यूट तो बनता हैं, उन सभी लोगों को, जिन्होंने संघर्ष कर, परिश्रम से अपनी पहचान बनाई।
.. संगीता त्रिपाठी
.. गाजियाबाद