पूनम बहुत ही सुन्दर और समझदार लड़की थी, संकोची स्वभाव की, बहुत कम बोलती थी। उसके पिता का एक रोड़ एक्सीडेंट में निधन हो गया था, और माँ बसंती कुछ घरों में झाड़ू, पौछा और बरतन का काम करती और अपनी बेटी को पढ़ा रही थी।
वह सेठ धनीराम के यहाँ भी काम करती थी सेठानी लीला देवी उससे बहुत प्रेम से बोलती थी, और हर संभव मदद करती थी। बसंती कभी-कभी अपने साथ पूनम को भी लेकर आती थी। लीला देवी उसे भी बहुत प्यार से रखती थी।
एक बार लीला देवी का भतीजा नीरज शहर से आया हुआ था, उसने जब पूनम को देखा तो देखता ही रह गया, शादी का निश्चय कर लिया। अपनी भुआ से कहा कि वे कैसे भी करके उसकी शादी पूनम से करवा दे। उन्होंने उसे बहुत समझाया मगर वो नहीं माना।
लीला देवी जानती थी कि नीरज की शराब पीने की आदत है, और वह कोई काम नहीं करता है। दूसरी तरफ पूनम सीधी सादी प्यारी लड़की है। उसने मना कर दिया तो नीरज ने शहर जाकर अपने माँ पापा को भेजा, उन्होंने ने भी बेटे की इच्छा पूरी करने के लिए लीला देवी पर दबाव डाला तो लीला देवी ने विवश होकर बसंती के सामने प्रस्ताव रखा,
उसे शहर ले जाकर उनका बंगला, गाड़ी सब दिखाया और कहा कि उसकी बेटी वहाँ राज करेगी। बसंती ने कहा मालकिन आप हमारे लिए बुरा थोड़ी सोचेंगी। वह विवाह के लिए तैयार हो गई । उस समय पूनम बारहवीं कक्षा में पढ़ रही थी, उसने कहा
‘माँ मैं पढ़ लिख कर नौकरी करना चाहती हूँ।’ लीला देवी ने उसे भैया का बंगला, गाड़ी शान शौकत दिखाकर झांसे में ले लिया था। वह सोच रही थी कि इतना सुख ऐश्वर्य है, लड़का भी अच्छा दिखता है, सामने से होकर रिश्ता आया है, बेटी के तो भाग खुल गए।
इसे नौकरी करने की क्या जरूरत है। लीला देवी ने बसंती को पूरी तरह झांसे में ले लिया था, उन्होंने बेटी की एक न सुनी। संकोची स्वभाव के कारण पूनम कुछ नहीं कह सकी शादी हो गई। कुछ दिन तो सबने बहुत अच्छा रखा, मगर धीरे-धीरे स्थिति बदलने लगी।
नीरज शराब पीकर घर पर आता, पूनम जब पीने के लिए मना करती तो उसे मारता, पीटता। परिवार के लोग भी नीरज का साथ देते।पूनम की हालत बहुत खराब हो गई थी।वह उस घर की नौकरानी बन गई थी। बिमार रहने लगी तो सास ससुर ने उसके मायके भेज दिया।
बसंती ने जाकर सेठानी लीला देवी से कहा तो उन्होंने यह कहकर पल्ला झाड़ दिया कि ‘मैं तो तुम्हें घर द्वार सभी बता कर तुम्हारी सहमति से शादी की थी, अब मैं क्या कर सकती हूँ?’ बसंती को दु:ख हो रहा था कि उसने सेठानी के चिकनी चुपड़ी बातों और बंगले गाड़ी के झांसे में आकर अपनी फूल सी बेटी के जीवन को बर्बाद कर दिया,
उसकी सारी खुशियाँ छीन ली।बेटी की हालत उससे देखी नहीं जा रही थी। एक ठोकर खाकर उसने निर्णय कर लिया था कि वह अपनी बेटी को फिर से पढ़ाएंगे और काबिल बनाएगी। उसने धीरे-धीरे बेटी को समझाया।बेटी ने फिर बारहवीं की परीक्षा का प्राइवेट फार्म भरा और अपने जीवन की नई शुरूआत की। बसन्ती ने सोच लिया था
कि वह अब किसी के झांसे में नहीं आएगी और बेटी के जीवन में फिर से खुशियाँ लाकर रहैगी।
प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित