एक स्त्री की चाह “आत्मसम्मान”- संध्या सिन्हा  : Moral stories in hindi

रसोई का सारा काम निपटा कर विभा अपने बेडरूम में आयी तो देखा वैभव बड़े आराम से सो रहे थे लेकिन तकिया नीचे गिरी हुई थी। उसने एक प्यार भरी निगाह ड़ालते हुए तकिया बेड़ पर रख कर शावर लेने चली गयी।

लौट कर आयी तो वैभव को कोई किताब पढ़ते हुए देख चौंक गयी।

“ आप जाग रहे हो?”

“ हाँ! कब से तुम्हारा वेट कर रहा हूँ विभा! तुम बहुत देर लगाती हो विभा आने में।”

“ तुम्हारी ही तो दोस्तों की पार्टी थी ना, जो तुमने घर पर रखी बिना मुझसे पूछे। मेड़ भी छुट्टी पर और कल शनिवार बच्चों की “ पेरेंट्स टीचर मीटिंग” तो सारा काम रात में ही निपटा कर आई हूँ।”

“ चलो आराम कर लो।” वैभव ने बाँहें फैलाते हुए कहा।

“आज बड़ा प्यार आ रहा है।” विभा ने कहा।

“ दिल ख़ुश कर दिया विभा तुमने।मेरे सभी दोस्त तुम्हारे पाक-कला की तारीफ़ कर रहे थे कि… “तुम्हारी वीवी खाना बहुत बढ़िया बनाती है।”

“ अच्छा-अच्छा चलो सोने भी दो, सुबह जल्दी उठना है, तुम्हारा तो वीकेंड प्लान होगा?”

“अरे! अभी तो मूड़…।”

“ तो इसलिए ता…रीफ़..।”विभा ने हँसते हुवे कहा।

“ तुम कोई मौक़ा नहीं छोड़ती ताना मारने का विभा। सारे मूड़ का नाश कर दिया….।”वैभव ग़ुस्से से बोला।

“तुम नाराज़ हो जाते हों, कितना थक गयी हूँ मैं,आपने तो बस दोपहर में एक फ़ोन कर दिया कि….. शाम को चार-पाँच दोस्तों को घर पर खाने के लिए कह दिया है… तुम मैनेज कर लेना। मेहनत और थकान होती है वैभव आज तीसरा दिन है माहवारी का….फिर बच्चों का होम-वर्क…पार्टी वाले खाने की तैयारी…ऊपर से नौकरानी का छुट्टी पर जाना….।”

“तुम्हें तो बस बहाना चाहिए… सारा मज़ा किरकिरा कर दिया तुमने।” और करवट बदल कर लेट गया।

विभा रूआंसी हो गयी और बोली…

“थैंक यू” तो नहीं कहा कि… तुमने इतने कम समय में कितना अच्छा इंतज़ाम किया, सारा घर-बाहर का काम अकेले सम्भालती हों, बच्चे में अपनी-अपनी क्लास में “टॉप फ़ाइव” में रहते है, बस ज़रा सा “ना” कह दिया तो…”

“ # बंद करो अपना ये नाटक!

तो कौन सा तीर मार लिया… सभी औरतें करती है.. तुम्हीं एक अकेली नहीं हों विभा..सिर्फ़ एक दिन… बाक़ी दिन तो आराम ही आराम करती हो दिनभर…झाड़ू-पोछा और बर्तन के लिए मेड़ है ही…करना क्या होता है तुम्हें दिनभर आराम या फिर टी. वी. या फिर मुहल्लेदारी…।”वैभव अब आपे से बाहर हो गया और करवट बदल लिया।

बिभा रुयाँसी हो गयी और बोली…

“ आ..रा…म! तुम्हें क्या लगता है कि हम… स्त्रियाँ दिनभर आराम या मुहल्ले दारी गप-शप करती है वैभव! तुमने सारी स्त्रियों के आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाई है यह कह कर। तुम ऑफ़िस में काम के साथ-साथ आपस ने बातचीत नहीं करते क्या???तुम मर्दों को लगता है तुम मेहनत करके पैसे कमाते हों और हम स्त्रियाँ गुलछर्रे उड़ाती है किटी पार्टी में… नहीं वैभव …… सिर्फ़ अपने लिए थोड़ा समय निकालती है, उसके लिए भी हफ़्तों पहले से सारा घर का काम कैसे मैनेज करती है… ताकि घर के बुजुर्गों, बच्चों और तुमको कोई परेशानी ना हों… बस “ ना” कहने पर तुमने इतनी बात सुना दी।हम स्त्रियों को इन सबके बदले सिर्फ़ प्यार और थोड़ी रिस्पेक्ट चाहिए वैभव…

तबतक वैभव सो गया था शायद…

विभा भी सुबकते हुवे सो गयी।

दूसरे दिन…

“ गुड मॉर्निंग…” सुनकर विभा की नींद खुली।

“ अरे वैभव ! आ..प .. ने  चा..य क्यों.. बनायी????”

“ रात में कुछ अधिक ही बोल दिया था विभा। बाद में … अहसास हुआ.. तुम्हारी बातों को सुनकर कि.. तुम सही कहती हो.. विभा कि…” तुम भी बहुत मेहनत करती हो.. सारा दिन मेरा और बच्चों के बारे में सोचती और हम सब का ख़याल रखती हो… मैं थोड़ा स्वार्थी और .. अभिमानी हो गया था.. या ये कह लो… पुरूषत्व  हावी हो गया और  मैं  भुल गया कि…

हर स्त्रियों का भी आत्मसम्मान होता हैं  और वह पूरे घर -परिवार और हमारा ख़्याल रखने के बदले सिर्फ़ ..चाह रखती हैं सिर्फ़ अपने आत्मसम्मान की।

संध्या सिन्हा

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