Moral stories in hindi : अनन्या अपने परिवार में खूब घुलमिल कर रहती थी। उसके परिवार में उसके पति आकर्ष, उसके दो बच्चे शौर्य और आरोही, उसकी सास -ससुर और देवर विपुल थे। नंद सौम्या का विवाह हो चुका था।
वह अपने घर में खूब खुश थी। देवर से भी उसकी अच्छी पटती थी। बीकॉम पड़ी हुई अनन्या अपने घर गृहस्थी की कमान अच्छी तरह संभाले हुए थी। उसकी सास शारदा जी भी उसे खूब प्यार करती थी। रिश्तेदारियों में भी उसका मान सम्मान था।
सब कुछ अच्छा चल रहा था। उसके देवर के विवाह की तैयारियां होनी थी। लड़की देखने की औपचारिकता मात्र थी क्योंकि लड़की तो देवर विपुल ने पहले ही पसंद कर रखी थी। मानसी विपुल के ऑफिस में ही काम करती थी। दोनों एक दूसरे को पसंद करते थे।
विपुल ने घर पर मानसी से विवाह की इच्छा जताई। सास ससुर और उसके पति ने थोड़ी सी ना नुकर के बाद विवाह को मंजूरी दे दी थी।
अनन्या के सारे अरमानों पर पानी फिर गया। वह सोचती थी कि अपनी मौसी की बेटी से विपुल का रिश्ता करवाएगी। लेकिन यह क्या अब देवर के विवाह में किसी ने उससे पूछा भी नहीं।
कुछ दिन बाद धूमधाम से शादी भी हो गई। अनन्या ने पूरे मन से शादी में योगदान दिया।
शादी के तीसरे दिन है मानसी और विपुल घूमने के लिए हनीमून पर चले गए। अनन्या के दिमाग में अपने समय की याद रहती कि कैसे उसके टाइम में सवा महीने तक घर से निकलने भी नहीं दिया गया।
हनीमून से आते ही मानसी और विपुल गाड़ी में बैठकर ऑफिस चले जाते। अनन्या पहले की तरह ही रसोई में खपती और सब के टिफिन पैक करती।
मानसी घर के काम में कोई हाथ नहीं लगाती लेकिन उसकी सास शारदा जी सारे दिन मानसी के गुण गाती रहती। रोज रिश्तेदारों का भी आना जाना लगा रहता। अनन्या सारा काम करती।
मानसी के ऑफिस में काम करने की वजह से उसकी सास रिश्तेदारों के सामने मानसी की तारीफ के पुल बांधने से नहीं चूकती। मानसी की तारीफ सुनकर अनन्या स्वयं को उपेक्षित महसूस करती।
अनन्या घुटने लगी। एक दिन उसने अपने पति आकर्ष से न्यारे हो जाने की बात कही।
अनन्या के न्यारे होने की बात सुनकर पूरे घर में भूचाल आ जाता है। उसकी सास के तो पैरों के नीचे से जमीन ही खिसक जाती हैं। सीधी गाय जैसी बहू उनकी अनन्या की जवान कैसे खुल गई।
उन्होंने तो कभी मंथन भी नहीं किया था कि अनन्या पर मानसिक अत्याचार भी हुआ है।
सब अपनी धुन में मस्त थे। पर घर के काम का सारा बोझ अनन्या के जिम्में ही था। फिर भी वह सब सह रही थी। वह अपने पति से कुछ कहना भी चाहती तो वह उसकी एक भी ना सुनते।
मिलजुल कर रहने के झंडे गाढ़े जाते।
एक दिन तो हद ही हो गई जब रात को 11:00 बजे देवर विपुल ने अपने कमरे में से आवाज लगाते हुए कहा,” भाभी जरा पानी का जग भर दो, मेरे कमरे में पानी खत्म हो गया है।”
अनन्या उठी और पानी भरने चली गई, लेकिन जो सैलाब उसकी आंखों में बह रहा था वह किसी को ना दिखाई दिया।
पूरी रात वह तकिया भिगोती रही। अपने घर परिवार को अपनी जिंदगी समर्पित कर देने के बाद भी उसकी इतनी# उपेक्षा। बस अब और नहीं, आज उसमें तय कर लिया मन ही मन कि वह अब नहीं सहेगी। आंखों से बहने वाला अश्रु जल अब और नहीं बहेगा।
रात को उसने अपनी अलमारी खोली। अपने पढ़ाई के कागज पड़तालने लगी। उसे याद आया कि उसने कंप्यूटर का कोर्स भी किया था। उसकी कितनी इच्छा थी b.ed करने की लेकिन उसके पापा ने ग्रेजुएशन करती ही उसकी शादी कर दी । और यहाँ घर गृहस्थी के झमेले में ऐसी उलझी कि कभी मौका ही नहीं मिला कुछ करने का।
लेकिन अब उसने ठान लिया की बह भी आत्मनिर्भर बनेगी। बनाएगी स्वयं की एक पहचान।
अगले दिन अनन्या सुबह-सुबह जल्दी नाश्ता बना कर और घर के कुछ काम निपटा कर अपना बैग लेकर बाहर चलने को हुई तो सास ने पूछा, “इतनी सवेरे कहाँ जा रही हो?”
“जॉब ढूंढने” अनन्या ने प्रत्युत्तर दिया।
उसकी सास को लगा कि मजाक कर रही हैं। “अरे तू कौन सी जॉब करेगी। चल जा घर के काम संभाल।”उसकी सास कड़क कर बोलती हैं।
अनन्या ने भी पूरी हिम्मत जुटाकर कहा,”मम्मी जी मैं अपने हिस्से का काम कर चुकी हूँ। आप और मानसी अपने-अपने हिस्से का काम कर लेना।”
अनन्या की बात सुनकर सारे घर में भूचाल आ गया। सब उसको मनाने के लिए आ गये।
लेकिन आज अनन्या मजबूत थी। हिम्मत जुटाकर अनन्या निकल पड़ी अपना वजूद तराशने के लिए।
सभी की आंखें फटी की फटी रह गई।
#उपेक्षा
स्वरचित मौलिक
प्राची लेखिका
खुर्जा उत्तर प्रदेश
(V)