अनछुई डोर, विश्वास एक सहारा “” रीमा महेंद्र ठाकुर, कृष्णा चंद्र “
पारूल लगभग दौडती हुई, फुटपाथ पर कदम बढा रही थी!
भारी टार्फिक की वजह से मानव ने पारूल को सडक के उस ओर ही छोडा दिया था!
यहाँ से चली जाओगी, मानव ने पूछा “
हा जी, आंखों ही आंखों में जबाब दिया, पारूल ने “
घडी में पौने ग्यारह का समय था!
पंद्रह मिनट बचे है!
उसके माथे पर पसीना आ गया “
आज वो खुर्राट बॉस फिर से जलील करेगा “
कितनी कोशिश भी कर ले पर समय पर कभी नही पहुँच पाती , सोचकर उसके माथे पर बल पड गये!
दिल्ली में कभी रात नही होती,
सब ओर भीड ही भीड, हर प्रांत के लोग “
अब वो सडक के पास खडी थी!
कोई रिक्शे वाला मिल जाता तो समय पर पहुँच जाती,
पर दूर तक बडी बडी गाडियों के बीच रिक्शे वाला नजर न आया “
अब तो सारे बहाने भी खत्म हो गये,
पारूल गो”
बॉस के कटाक्ष अब पारूल के कानों में गूजंने लगे “
उसने दोनों कान पर हथेलियां चिपका ली “
पारूल,
जानी पहचानी आवाज उसे सुनाई दी “
वो मुडी,
अरे ऋषभ सर आप,
पारूल जी आप यहाँ कैसे,
इधर से निकल रहा था, तो आप नजर आ गयी!
सर ,ऑटो वाले का इंतजार कर रही थी!
लगता है आज भी लेट हो जाऊंगी “
चलो आ जाओ, मै भी ऑफिस ही जा रहा हूँ!
जाना ही कितनी दूर है “
मुश्किल से सात किलोमीटर “
पर सर “”””
कब तक खडी रहोगी, एक घंटे से पहले मुझे नही लगता सात किलोमीटर का सफर तय कर लोगी!
बेबसी से गडियों के काफिले पर नजर डाली पारूल ने!
सिग्नल ओपन हो गया था!
धीरे धीरे गडियां अपनी जगह से खिसकने लगी थी!
अब आ भी जाओ “
पारूल ने कुछ सोचा ओर पीछे सीट पर जाकर बैठ गयी!
कुछ मिनट में ऑफिस के बाहर गाड़ी खडी हो गयी!
इस कुछ मिनट के बीच मे दोनों के बीच कोई बात न हुई “
दोनों ने ऑफिस में एक साथ कदम रखा!
अरे वाह पारूल जी आज समय से दो मिनट पहले आ गयी!
गुडमॉर्निंग सर, पारूल ने बॉस की बातों को तवज्जो न दिया “
और सीधे, अपने केबिन मे पहुँच गयी!
मैम आपको सर बुला रहे है,
एक कर्मचारी पारूल के नजदीक आकर बोला “
जी ” पारूल ने पर्स और जरूरी समान, लकडे के छोटे से डब्बे मे रखते हुए बोली “
सर मै अंदर आ सकती हूँ!
कम “
धन्यवाद सर”
आज सर का व्यवहार कुछ बदला सा लग रहा था!
पारूल मुझे पता है , तुम्हे मेरी बातें पंसद नही, पर यदि पूरा ऑफिस अनुशासनहीन हो जाऐगा तो कैसे काम चलेगा!
सर मै समझ सकती हूँ, पर मै बहुत कोशिश करती हूँ, सडक पर लगी गाड़ी की कतारे मुझे वही रोक लेती है!
वो तो आज ऋषभ सर ने लिपट दे दिया तो समय पर पहुँच गयी!
वरन् ” आज इस्तीफा देने का सोचकर आयी थी!
सपाट लहाजे मे बोली पारूल “
साॅरी पारूल ” अब कुछ काम की बात कर लेते है,
आज से आपको ऋषभ के साथ केबिन शेयर करना होगा “
पर सर”
पहले काम समझ लो “
आने जाने में भी ऋषभ का साथ मिल जाऐगा समास्या हल हो जाऐगी ” और किसी के साथ धक्का खाने से अच्छा है साथ ही आओ”
ऋषभ के साथ आप सेफ्टी में भी रहोगी “
सोच लो” गंभीरता से बोले सर”
जी धन्यवाद सर”
पारूल अपने केबिन मे आ गयी, पर उसके मन में अंतर्द्वन्द चल रहा था!
पारूल माध्यम वर्गीय परिवार से थी!
छोटे लोग छोटी खुशियाँ छोटा सा परिवार ” मानव नहीं चाहता था की पारूल नौकरी करे “
पर दिल्ली जैसे बडे शहर मे खर्चे, बाप रे, मानव की कमाई, ऊंट के मुहं में जीरा “
पर फिर भी दोनों खुश “
दो साल पहले कुछ ऐसा घटा जिससे मानव की सोच बदल गयी,
पारूल माँ बनने वाली थी “
अचानक से पचास हजार का खर्च,
बच्चे को न बचा सका मानव, उसके अंदर हीनभावना ने जन्म ले लिया, पारूल अपना दु:ख भूलकर, उसे सभालने में लग गयी ,
पर मानव न उबर पाया !
फिर मानव की सहमति से, पारूल ने परिवार की बागडोर संभाल ली “
अब धीरे धीरे मानव भी सदमे से बाहर आने लगा था!
और वापस काम पर जाने लगा था!
दोनों घर से दस बजे साथ ही निकलते, और फिर अपनी अपनी मंजिल की ओर बढ जाते,
शाम चार बजे फिर एक साथ घर आते!
पारूल जी चले ” ऋषभ ने पूछा “
इत्तेफाक देखिए आज ही हम साथ आये! और आज ही आपका प्रमोशन हो गया!
एक कॉफी तो साथ में बनती है!
नही सर ये संभव नहीं,
अरे आप तो घबरा गयी, नये केबिन मे पीऐगें, एक साथ “
पारूल कुछ न बोली “
ऋषभ प्रखर बुद्धि का था! उससे पारूल बहुत कुछ कम समय में सीख गयी, कम्पनी को शेयर काफी ऊपर पहुँच गया!
सर ने पारूल को बुलाया और गाड़ी की चाभी उसे सौप दी”
सर , ये आपकी मेहनत का फल है अब तुम्हे ऋषभ के साथ नहीं आना होगा “
आंखे नम हो गयी पारूल की,
धन्यवाद सर ” मैने आपको मन ही मन कितना बुरा भला कहा ,
पारूल उस दिन तुम्हारी स्थिति के बारे में ऋषभ ने मुझे सब बता दिया था!
मै तुम्हे उसी दिन गाड़ी दिला रहा था!
फिर ऋषभ ने मुझे समझाया की विना मेहनत के यदि तुम्हे कुछ दिया गया तो, कर्मचारियों पर गलत संदेश जाऐगा “
और हो सकता था तुम्हे भी अच्छा न लगे “
फिर हमने ये प्लान बनाया की तुम्हे स्वलम्बी बनाऐ “
जिसका नतीजा सामने है, तुम्हारे अंदर वो कुशलता कूट कूटकर भरी थी!
बस एक सपोर्ट की जरूरत थी!
धन्यवाद सर जी” आज मै बहुत खुश हूँ, आप मेरे पिता के समान है!
सर की आंखे गीली हो गयी!
पारूल ऑफिस से बाहर खुशी खुशी निकली”
लग रहा है, बॉस “””पारूल मैडम पर बडे मेहरबान है”
ऋषभ सर अलग नहीं मान रहे “
पारूल के कदम वही चिपक गये!
स्टाफ के कुछ कर्मचारी आपस में बात कर रहे है!
अब तो मैडम को गाडी मिल गई “
अपने ऋषभ सर का क्या होगा ” पत्नी पहले ही छोड गयी “
और अब ये प्रेमिका भी फुर्ररर “
एक साथ ठहाके गूंज उठे “
क्या हुआ भाई, आज किसकी, तिगड़ी बनाई जा रही है!
शायद मेरी “
ऋषभ की बात से सन्नाटा छा गया!
अरे आपलोग कब अपनी सोच बदलोगे, मेरी पत्नी क्यूँ छोड़ गयी!
ये मेरी पर्सनल लाईफ की बातें है!
और रही पारूल जी की, बात ” तो उनमें कबिलियत है “
समाज में हर रिश्ता माँ बहन पत्नी प्रेमिका का ही नही होता “
कुछ रिश्ते अनछुए होते है!
जो बांधे नही जाते, बंध जाते!
ऋषभ सर की बात का जबाब किसी के पास नही था!
पारूल के कदमों में जान आ गयी!
शान से गर्दन उठाकर वो मेनगेट की ओर बढ गयी!
जहाँ मानव खडा पारूल का इंतजार कर रहा था!
समाप्त, रीमा महेंद्र ठाकुर ” कृष्णा चंद्र “
#सहारा
राणापुर झाबुआ मध्यप्रदेश भारत