एक रिश्ता – डाॅ. संजु झा

मयंक के बिना  एक वर्ष का समय ऊषा के  लिए पहाड़ समान  बीता ।मयंक को गुजरे हुए एक वर्ष  हो गया,परन्तु एक दिन भी ऐसा नहीं बीता कि  उसने मयंक की याद में आँसू न बहाए हों।जिन्दगी की यथार्थ परिस्थितियों से सामना करते-करते दुख की बदली उसके मन के आकाश पर जमती  चली गईं।

 आज उसकी पुण्यतिथि पर  वही दुख की बदली मूसलाधार बारिश बनकर उसकी आँखों से बरस पड़ी।

 ऊषा की सास रामदेवी का दिल तो बेटे के वियोग  में कब का पत्थर हो चुका था! उसकी सास रामदेवी ने उसके आँसू पोंछते हुए कहा -” बेटी!जब जिन्दगी में विपत्ति आती है,तो उसका सामना करना ही पड़ता है।उनसे घबड़ाकर हार मान लेना कायरता है।”

सास की बातें छोटी-सी लहर के समान ऊषा के हृदय में समंदर का एहसास करा गईं।मयंक से उसका प्रेम विवाह  हुआ था,जिसके कारण   शादी के दस वर्ष  बाद भी सास के साथ उसका रिश्ता कभी भी सामान्य  नहीं हो सका।मयंक से शादी के बाद ढेरों नए रिश्ते बनते गए,परन्तु सास के साथ वह कभी भी सहज नहीं हो पाई, या उसने उस रिश्ते को अहमियत देकर कभी सहेजने की कोशिश नहीं की।

अचानक  से मयंक की मौत की बाद नए रिश्ते जो केवल स्वार्थ आधारित  थे,वे दूर होते चले गए। उस मुसीबत की घड़ी में उसकी सास ही उसके तथा बच्चों के लिए  ढ़ाल बनकर खड़ी रहीं।अब उसे रिश्तों की अहमियत समझ आ रही है।उसे एहसास हो रहा है कि हर रिश्ते में मनमुटाव और गलतफहमियां होतीं हैं,अगर थोड़ी सूझ-बूझ से काम लिया जाएँ तो रिश्ते सँवर सकते हैं।

ऊषा को उदास देखकर उसकी सास ने कहा -“बेटी!ऐसे मायूस  नहीं होते हैं।तुम्हें दुखी देखकर मयंक की आत्मा दुखी होगी।”

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सास की प्यारी बातों से ऊषा को एहसास  हुआ कि दोनों के  मन में छाई नाराजगी की धुंध धीरे-धीरे छँटने लगीं है।सास ने चिरपरिचित  खनकती आवाज के साथ मीठी मुस्कान एक बार फिर  से दिखाई, तो उसका मन प्रफुल्लित  हो उठा।

सास-बहू के  नए रिश्ते के समीकरण से फिजा में फैली दुख की बदली धीरे-धीरे छँटने लगीं।आसमां में लालिमा लिए  सूरज  की सुनहरी किरणें उन दोनों की जिन्दगी पर फिर से पड़ने लगीं।सास के साथ सँवरे रिश्ते  से ऊषा के  परिवार की जिन्दगी फिर से पटरी पर दौड़ने लगी।

समाप्त। 

#एक_रिश्ता 

लेखिका-डाॅ. संजु झा(स्वरचित)।

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