कल पतिदेव के साथ घूमने निकली तो रास्ते में सब्जी मंडी आ गई तो ये कहने लगे सब्जी ले ही लेते है।
मैने कहा ठीक है आप लीजिए क्योंकि सब्जी वही लेते है मैं तो बस बनाने का काम करती हूं।
वो सब्जी ले रहे थे तब एक गाड़ी मेरे पास रुकी उसमें से एक जोड़ा हमारी उम्र का ही था और एक बुजुर्ग दंपति थे।
लगा जैसे सास ससुर और बहु बेटे है।
पर उसमे जो भाईसाब थे वो उन बुजुर्ग दंपति को अंकल आंटी कहकर अच्छे से समझा रहे थे कि आपके रास्ते का सारा खाना रख दिया है आप इस बस से नीचे नहीं उतरना।
ये टिकट्स है आप कंडक्टर आए तो उसे दिखाना।
आपकी सीधी बस है कही भी नही उतरना और कल सुबह 11 बजे आपके शहर का स्टेशन आए तभी आप बस से उतरना और अपने घर जाना।
वो बुजुर्ग दंपति बहुत अच्छे से ये सब समझ रहे थे और हां हां में सिर हिला रहे थे।
और फिर बार बार आशीर्वाद भी दे रहे थे।
जब वो वहां से बस में बैठे और जाने लगे तो चारो की आंखों में आंसू थे।’
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बहुत मार्मिक क्षण था वो उन सबका।
मैं बड़े ध्यान से उन चारो को देख रही थी।
जब बस रवाना हुई तो मैने उनकी पत्नी से पूछा आपके रिश्तेदार है।
बहुत बुजुर्ग है, मुझे लगा आपके सास ससुर है।
तो वो बोली नहीं नही दीदी ये उज्जैन आए थे महाकाल लोक देखने पर गलत ट्रेन में चढ़ कर भोपाल आ गए। और यहां ये रास्ता ही भटक गए।
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और भोपाल में परेशान घूम रहें थे तो मैं और मेरे पति ने जब इनको इस तरह परेशान देखा तो अपने घर ले गए और एक हफ्ता अपने यहां रखा।
बाद में जब ये थोड़े सही हुए तो उन्होंने बताया कि वो उज्जैन आए थे महाकाल लोक देखने और गलत ट्रेन में बैठ कर यहां आए है ये रहते प्रयागराज में है।
तो आज इनको इसके प्रयागराज की टिकट लेकर इनको भेज रहें है हम।
इनसे कोई रिश्ता नही हमारा पर सही कहूं तो इन सात दिनों में सबसे प्यारा रिश्ता बन गया इनसे।
मैं शुरू से अकेली ही रही हूं घर में सास ससुर तो थे नहीं।
पर इनसे मिलकर इनके साथ रहकर इनकी सेवा करके जो सुख मिला उसका वर्णन करना बहुत मुश्किल है मेरे लिए।
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तब तक मेरे पति भी सब्जियां ले आए और उसके पति भी कार ले आए वो चले गए पर मैने मन में उनके लिए जो भाव जागे सही ने मैं भी वर्णन नहीं कर पा रही।
नताशा हर्ष गुरनानी
भोपाल