मम्मा अब तो कंट्रोल नहीं हो रहा ऐसा लगता है कि जल्दी से उड़कर आपके पास पहुंच जाऊं। सलोनी को देखने की , उससे मिलने की इच्छा तीव्र हो रही है पर क्या करुं बच्चों की परीक्षा, अंकित का प्रोजेक्ट। खैर मम्मा पंद्रह दिनों की बात और है फिर सब खत्म हो जाएगा और हम आपके पास पहुंच जाएंगे।
हां बेटा काम भी जरूरी है निबटा कर सब आ जाओ । तभी सलोनी चाय का कप लिए कमरे में आती है।सास ममता जी को फोन करते देख कप टेबल पर रख जाने लगती है तभी ममता जी फोन रखते हुए कहतीं हैं सलोनी रुको यहां आओ मेरे पास बैठो और सुनो श्रेया का फोन था अमेरिका से वह तुमसे मिलने को बहुत आतुर हो रही है।
भाई की शादी में नहीं आ पाई थी सो अब आकर मन की पूरी मुराद निकालना चाहती है । वैसे तो मेरी दोनों ही बेटियां समझदार हैं पर फिर भी मैं तुम्हें समझा रही हूं कि श्रेया तुम्हारी बड़ी ननद है बेटा रिश्ते का ख्याल रखना जितनी खुशी उल्लास से वह तुमसे मिलने आ रही है उतनी ही खुशी और उत्साह से तुम भी मिलना। कोई ऐसी बात न हो जो तुम्हारे रिश्ते में खटास पैदा कर दे। रिश्ते की गरिमा बनाए रखना।
जी मम्मी जी सलोनी ने कहा और बोली मम्मी जी मेरी तरफ से आप बेफिक्र रहें मैं खुशी-खुशी दिल से दीदी का स्वागत करुंगी।
हां बेटा मुझे तुमसे यही उम्मीद है।
मम्मी जी चाय ठंडी हो गई दूसरी बना लूं।
नहीं इसी को गर्म कर दे।चल बेटा डाइनिंग रूम की तरफ ही ले चल मैं उधर ही आ रही हूं।
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श्रेया खुशी-खुशी आने की तैयारी कर रही थी,जब भी उसे समय मिलता ढेर सारी शापिंग कर लाती।पूरे दो साल बाद आ रही थी सबके लिए कुछ न कुछ तो लाना ही था विशेष तौर से सलोनी के लिये पर समझ में यह नहीं आ रहा था कि क्या ले। वेस्टर्न ड्रेस वह पहनती है या नहीं। पूछना भी अच्छा नहीं लगता सो उसने दो तीन ड्रेसेज के साथ बहुत ही सुन्दर सा हीरे का पेंडेंट सेट एवं अंगूठी खरीद ली।सब तैयारी पहले से ही कर वह शीघ्र आना चाहती थी किसी काम की वजह से रूकना नहीं चाहती थी।
इधर सलोनी के मन में शक का कीड़ा लग गया कि न जाने ननद कैसी होगी, कैसा व्यवहार करेंगी । कहीं मुझसे कोई भूल चूक न हो जाए और यही सब
सोच -सोचकर चिंता मग्न रहने लगी।
जैसे -जैसे श्रेया के आने का दिन पास आता जा रहा था सलोनी के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभरने लगीं थींं ।उसे उदास देख ममता जी ने पूछा बेटा उदास सी लगती हो कोई परेशानी है क्या ।
नहीं मम्मी जी बस ऐसे ही सोच रही थी कि
दीदी के आने की खुशी में क्या क्या तैयारी करूं।
लो तैयारी क्या करना है घर की बेटी आ रही है कोई मेहमान थोड़े ही है।
पर मम्मी जी जीजा जी बच्चे ,भी साथ आ रहे हैं।
अरे अंकित बेटा तो ऐसा है कि लगता ही नहीं कि वह इस घर का बेटा है या दामाद। बच्चे भी बहुत समझदार हैं सो तुम कुछ चिंता मत करो खुश रहो।
पर उसकी चिंता थी कि कम हो ही नहीं रही थी। अपने घर, परिवार में ननद भाभी के रिश्तों को देखा था, सहेलीयों की बातें सुन रखी थीं कि ननद नाम की चिड़िया से दूर ही रहो उसी में भलाई है। कभी कभी बातों -बातों में दादी कहतीं थीं कि ननद तो चून(आटा ) की भी बुरी होती है। यही सब सोच -सोचकर वह परेशान थी।
और एक दिन उसने अपनी परेशानी सलिल के सामने रखी सलिल मुझे बहुत चिंता हो रही है पता नहीं दीदी का स्वभाव कैसा होगा। मैं उनके साथ घुल-मिल पाऊंगी कि नहीं सच बताऊं तो मुझे बहुत डर लग रहा है कि में उनके साथ सामान्य रूप से रह पाऊंगी।
यह सुनते ही सलिल जोर से हंस पड़ा और बोला सलोनी दीदी जीजाजी आ रहे हैं उनके साथ तुम्हें कोई प्रति स्पर्धा नहीं करनी है और यह सब तुम दीदी पर छोड़ दो वे खुद ही तुम्हें सामान्य फील करवा देंगी तुम्हें कुछ नहीं करना।मन से डर निकाल प्रसन्न रहो।
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आखिर वह दिन भी आ पहुंचा जब श्रेया ने फ्लाइट से उतर भारत की धरती पर पैर रखा। कैसी तो प्यारी सी अनुभूति होती है अपनी धरती, अपने वतन आकर।यह अनुभव करने वाला ही समझ सकता है शब्दों में वर्णन नहीं किया जा सकता। सलिल और पापा एअरपोर्ट लेने पहुंच गए। इधर घर में सलोनी और ममता जी चाय नाश्ते का इन्तजा कर इंतजार कर रहीं थीं। तभी कार की आवाज सुन वे बाहर निकलीं तब तक बच्चे दौड़ कर नानी-नानी कहते ममता जी से लिपट गये। सलोनी को देख नानी की तरफ देखने लगे।
बेटा तुम्हारी मामी हैं जाओ उनसे भी मिलो।
तब तक श्रेया अंकित भी आ चुके थे मां से मिल श्रेया सलोनी की तरफ बढ़ी वाओ फोटो से भी ज्यादा कहीं खूबसूरत हो सलोनी आओ और उसे अपने से लिपटा कर प्यार किया। सलोनी ने श्रेया और अंकित के पैर छूकर कहा आप लोग बैठें
मैं चाय लेकर आती हूं। चाय नाश्ता करने के बाद सलिल की आंखें श्रेया के बैग पर गढ़ी थीं ।
दीदी अब और नहीं रहा जा रहा खोलो न अपना पिटारा।
खोलती हूं बाबा पर अब तो तू बड़ा हो गया अभी भी बच्चों जैसी हरकतें चॉकलेट चाहिए तुझे।
दीदी आपसे तो मैं हमेशा छोटा ही रहूंगा तो मेरी हरकतें आपके सामने वैसी ही रहेंगी। चॉकलेट ले वह खुश हो खाने लगा।असल में सलिल बहन से सात साल छोटा था तो श्रेया ने बचपन से ही उसे बहुत प्यार से सम्हाला था। सबको उपहार देते हुए उसने सलोनी को ड्रेसेज एवं सेट दिया। जिन्हें लेने में संकोच करती सलोनी से मम्मी बोलीं ले लो बेटा बड़ी ननद प्यार से लाईं हैं।
पर श्रेया तू ऐसी ड्रेसेज क्यों ले आई सलोनी तो यह सब पहनती नहीं है।
मम्मा पहनती नहीं है या आप पहनने नहीं देतीं। मुझे नहीं लगता कि सलोनी को यह ड्रेसेज पंसद नहीं आएंगे। क्या मम्मा आपने इतनी छोटी बच्ची को इतनी बड़ी साड़ी में हमेशा लिपटे रहने को मजबूर कर रखा है।
बेटा शादी के बाद साड़ी ही अच्छी लगती है।
हां ठीक है लेकिन घर में तो सूट पहनने दें काम करने में आसान रहता है। खाना वगैरह से निवृत हो श्रेया ने सलोनी को अपने पास ही लिटा लिया और उससे ढेरों बातें करती रही। सलोनी को लग ही नहीं रहा था कि वह बड़ी ननद है। बच्चे भी मामी-मामी कहते सलोनी के आगे पीछे डोलते रहते। अंकित को देख हैरान थी सलोनी कितने अच्छे तरीके से सबसे बात करते हैं,न खाने पीने में कोई नखरे। किसी भी काम को स्वयं ही कर लेते हैं कोई दामाद वाला ठसका नहीं दिखाते।
घूमना फिरना, शापिंग करना,मौज मस्ती में कब दिन गुजर रहे थे पता ही नहीं चला।
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श्रेया एक दिन बोली सच बता सलोनी तू हर समय ये साड़ी अपनी स्वेच्छा से पहनती है, तुझे परेशानी नहीं होती।
होती तो है दीदी शादी से पहले कभी पहनी नहीं थी न किन्तु अब आदत हो जायेगी धीरे -धीरे।
क्या तुझे मेरी लाई ड्रेसेज पंसद नहीं आईं।
आईं तो हैं दीदी पहले मैं भी ऐसी ही ड्रेसेज पहना करती थी पर अब कब पहनूंगी और कहां जाऊंगी पहनकर।
तुझे ये सब पहनने को मम्मी ने मना किया है न ।
सलोनी चुप रह गई।
जबाब दे ना चुप क्यों रह गई।
वो क्या है न दीदी शादी के बाद तो साड़ी ही पहननी पड़ती है।
श्रेया समझ गई कि वह मम्मी का नाम नहीं लेना चाहती सो कितनी समझदारी से बात टाल गई। फिर श्रेया ने मम्मी को समझाया मम्मा घर में सलोनी को सूट पहनने दो परेशान होती है, और रही बात इन ड्रेसेज की तो दोनों कभी बाहर घूमने जाएं तो पहनने दो। आपकी बेटी भी तो पहनती है। मेरे सास-ससुर ने मुझ पर कभी किसी प्रकार की रोक -टोक नहीं लगाई। क्या मैं उनका सम्मान नहीं करती।
मम्मा सम्मान करना अलग बात हैऔर ड्रेसेज पहनना अलग।दिल में बड़ों के प्रति सम्मान होना चाहिए और वह सलोनी में है।वह आप लोगों की बहुत इज्जत करती है। बच्ची है उसकी भी इच्छा होती होगी शादी से पहले वह भी पहनती थी अब एक दम रोक लगाना ठीक नहीं है। कितना मन मारती होगी।कभी तो उसे भी हुडक उठती होगी । और श्रेया, सलोनी को ले जाकर सूट दिलवा लाई घर मे पहनने के लिए ।
मम्मा आप अपने हाथों से उसे दो और पहनने को कहो तभी वह बेहिचक पहन सकेगी।वह भी बेटी ही है आपकी।
अच्छा मेरी मां मानती हूं तेरी बात कुछ और समझायेगी कहते हुए मम्मी ने प्यार से उसके चपत लगा दी।
कब कैसे हंसी खुशी के माहौल में बीस दिन निकल गये पता ही नहीं चला। और आज श्रेया सपरिवार जा रही थी अपनी ससुराल।
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मम्मी-पापा तो बिछड़ने के ग़म से दुखी थे ही किन्तु सलोनी की आंखों से अविरल आंसू बह रहे थे। रोते-रोते उसने तिलक लगा सबको विदाई दी और बोली दीदी अब आप सब कब आओगे ,जल्दी आना आप सबकी बहुत याद आएगी ।इतने दिनों में ही आपने इतना प्यार दिया मेरी बड़ी बहन बनकर कि मैं उसे कभी भुला नहीं पाऊंगी मुझे लगा ही नहीं कि आप मेरी ननद हैं या सहेली या बड़ी बहन, दीदी जल्दी बापसआना।
श्रेया उसे प्यार करते बोलीं आऊंगी मेरी गुड़िया, मम्मी-पापा, सलिल का ध्यान रखना और खुश रहना और सबको रखना कह वे सब रवाना हो गए।
सलिल हंसते हुए बोला सलोनी अब तो चिंता दूर हो गई ।ननद के नाम का भय खत्म हो गया ना। मैंने कहा था ना मेरी दीदी है ही इतना प्यार करने वाली।
शिव कुमारी शुक्ला
15-3-25
स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित
शब्द*****ननद