आप सबने अभी तक पढ़ा कि निम्मी शहर में अपनी मौसी के घर पढ़ने लगी है … हालांकि उसकी मौसी उसे पढ़ाने के लिए कम,,,घर के काम कराने के लिये ही ज्यादा लेकर आयी है … इधर राजू की पढ़ाई भी गांव के सरकारी स्कूल में रफतार पकड़ रही है … राजू निम्मी के लिए दिल लगाकर पढ़ रहा है ….
एक दिन निम्मी की मौसी पास में ही दावत खाने अपनी बेटी मन्नु के साथ गयी हुई है …. मौका पाकर जमीन पर बैठकर पढ़ती हुई निम्मी को उसका मौसा गंदी नियत से उसे पीछे से दबोच लेता है ….
अब आगे….
निम्मी मौसा के स्पर्श से सहम ज़ाती है …
वो जोर जोर से चिल्लाती है …
मौसा क्या कर रहे हो आप…. आप तो बहुत गंदे मौसा हो….
उसकी आवाज सुन मौसा निम्मी का मुंह अपने हाथों से कसके दबाता है ….
निम्मी छटपटाती है ….
चुप रहना… किसी से कुछ कहने की ज़रूरत नहीं … अगर जबान खोली तो तेरे माँ बापू को जान से मार डालूँगा … तेरे भाई को भी यहां ले आऊंगा…
मौसा निम्मी के कपड़ो पर हाथ रखता ही है….. निम्मी को अपने सर के सिखाये कुछ हथकंडे याद आतें है … वो मौसा के पेट में लात मारती है … उसके हाथ में कसके काट लेती है …..
निम्मी जोर जोर से चिल्लाती है … कोई बचा लो…. कोई बचा लो मुझे….
मौसा दर्द के मारे झटपटाने लगता है … वो शैतान के रुप में दहाड़ता है …
आज तुझे कहीं का नहीं छोडूँगा …. तेरी इतनी मजाल …. मुझे मारेगी…. रुक…
मौसा निम्मी के कपड़े फाड़ने का प्रयास करता है … निम्मी खुद को बचाने के लिये हर संभव प्रय़ास कर रही है …..
तभी निम्मी की आवाज सुन पड़ोस में रहने वाला एक य़हीं कोई 16-17 साल का लड़का छत के रास्ते से,,,,ज़िसका दरवाजा खुला रहता है … जल्दी से सीढ़िय़ां ऊतरता हुआ आता है ….
उसे देख मौसा जल्दी से दूसरे कमरे में चला जाता है …
वो लड़का निम्मी को चुप कराता है …
तुम क्यूँ चिल्ला रही थी निम्मी ….. आज तुम्हे छत पर भी नहीं देखा… तुम ठीक तो हो??
वो लड़का निम्मी की अस्त व्यस्त हालत देख पूछता है ….
भईया… अच्छा हुआ आप आ गए…. आज मेरे मौसा मुझे मार डालते… देखो कैसे मेरे कपड़े फाड़ दिये ….
वो लड़का समझ गया कि निम्मी के मौसा ने उसकी इज्जत पर हाथ डालना चाहा है …..
उसका मन बहुत विचलित हो जाता है … निम्मी तू अपने अम्मा बापू के पास चली जा… तेरा मौसा तुझे कहीं का नहीं छोड़ेगा ….
निम्मी के पास आकर वो लड़का उसके आंसू पोंछता है …
तभी निम्मी की रानी मौसी घर में प्रवेश करती है ….
तू क्या कर रहा है यहां…. और निम्मी तुझे क्या हुआ?? तेरे कपड़े …
निम्मी रोते हुए मौसी के गले लगती है … इससे पहले निम्मी कुछ बोलती मौसा अंदर से महापुरूष बना हाथों में आरती की थाली लिए आता है ….
आप घर में थे…. फिर निम्मी की ऐसी हालत कैसे हुई??
मौसी अपने पति से पूछती है ….
इतनी भी नासमझ नहीं हो तुम रानी… मैने तुम्हे मना किया था कि किसी की लड़की की ज़िम्मेदारी मत लो… वो भी सयानी लड़की.. देखो क्या गुल खिलाया है तेरी बहन की लड़की ने….
रोज तेरे जाने पर छत पर चली ज़ाती है पढ़ने के बहाने से….. पड़ोस के इस रिंकु ने इसे पटा लिया …. आज मौका पाकर दोनों मुंह काला करने जा रहे थे वो तो भगवान का शुक्र है कि मैं समय पर आ गया….तुम्हे देखकर लग नहीं रहा कि आज़ कुछ गलत हो जाता…. अभी भी य़हीं खड़ा है बेशर्म रिंकु….. कितना कहा गया ही नहीं…..
अरी मोरी मईया ….. अभी जीजी को फ़ोन लगाती हूँ….. ये तो हमारी नाक कटाने आयी है … ज्यादा जवानी सूझ रही तो जा अपने गांव में ही मुंह काला करा जाकर ….
नहीं मौसी… भईया ने कुछ नहीं किया …. वो तो मौसा मेरे साथ गलत काम करने जा रहे थे…
रोती हुई निम्मी सुबकते हुए बोली…
हां आंटी….. अंकल ही निम्मी के साथ गलत काम करने जा रहे थे … वो तो निम्मी की आवाज सुन मैं इसे बचाने आ गया…. आप गलत समझ रही है… ये तो मेरी बहन जैसी है….
मुझे भईया बोलती है …..
रिंकु रानी मौसी को समझाने का असफल प्रयास कर रहा है ….
देख रही हो रानी… उल्टा चोर कोतवाल को डांटे …. तू भी जानती है निम्मी और मन्नु में मैने कभी फर्क नहीं किया ….
मौसा झूठ पर झूठ बोला जा रहा है …
आपको सफाई देने की कोई ज़रूरत नहीं…. मेरे पति है आप…. आपको अच्छे से जानती हूँ…. मैं जानती हूँ… इस निम्मी की हरकतें ….. अभी दीदी को फ़ोन लगाती हूँ…
रिंकु जा चुका है …
मौसा कोने में कुटिल मुस्कान लिए खड़ा है ……
निम्मी को बस इस बात का सुकून है कि शायद अब वो अपनी अम्मा के पास गांव चली जायें ….
तभी रानी मौसी फ़ोन लगाती है …
फ़ोन की घंटी लगातार बज रही है ….
तभी फ़ोन उठता है ….
राम राम दीदी….
रानी मौसी बोलती है ….
राम राम छुटकी….. कैसी है और मेरी लाडो रानी कैसी है …. उसकी पढ़ाई कैसी चल रही…. और पैसों की ज़रूरत हो तो बता देना… तेरे खाते में भेज देंगे तेरे जीजा जी…. बस लली को बढ़िया स्कूल में पढ़ाना …. पढ़ने में बहुत होशियार है मेरी निम्मी ….
निम्मी की माँ बोलती जा रही है …
निम्मी माँ की आवाज सुन फफककर रो पड़ी है … उसका बस चलता तो वो अभी गांव जाकर अपनी अम्मा से लिपट ज़ाती….
दीदी…. आप अपनी ही कहती ज़ाओगी या मेरी भी सुनोगी….
हां बोल छुटकी का कह रही….
दीदी… तुम्हारी निम्मी ने हमें कहीं का नहीं छोड़ा है ….
क्यूँ क्या किया मेरी निम्मी ने…
निम्मी की अम्मा घबरा ज़ाती है …
वो हमारे बगल में रहने वाले पड़ोसी के लड़के से नैन मटक्का कर रही है …. आज तो हद हो गयी… मौका पाकर दोनों मुंह काला करने जा रहे थे …. वो तो अच्छा हुआ समय रहते ये आ गए तो बचा लिया … नहीं तो हमें तभी खबर होती जब ये पेट से हो ज़ाती….
निम्मी की अम्मा यह बात सुन अपने कानों पर हाथ रख लेती है …
ऐसा नहीं हो सकता… मेरी निम्मी ऐसी नहीं है …. वो ऐसा कभी ना कर सकती….
निम्मी की अम्मा की आँखों में आंसू आ गए है … निम्मी का बापू भी कान लगाये सब बातें सुन रहा है ….
दीदी…. सभी माँ बापू अपने बच्चों पर अंधा विश्वास करे है … जब बच्चे गलत काम कर लेते है … तब पछताते है … तुम्हे विश्वास ना हो तो मैं बीडीओ वाली काल कर रही… देख लेओ अपनी छोरी की हालत….
वीडियो कॉल लगायी ज़ाती है …
निम्मी अपने फटे कपड़ों को छुपा सिकुड़ी जा रही है …
अब तो विश्वास हो गया दीदी…. देख लो….
निम्मी की अम्मा बापू सर पर हाथ रख लेते है ….
ऐसा कर तू इसे काटके गंगा में बहा दे… हमें ना चाहिए ऐसी छोरी…
निम्मी का बापू कंपकपाती आवाज में बोलता है ….
रानी… तू इसके लिये शहर में ही कोई छोरा देख दे… अब ना पढ़ाना इसे… हो गयी इसकी पढ़ाई…. इसका ब्याह कर देओ … निम्मी के बापू….
गांव में भी यहीं करम कर रही थी…. यहां आयी तो फिर मुंह काला करायेगी……
निम्मी चिल्ला रही है नहीं अम्मा मुझे पढ़ना है … अपनी निम्मी की बात तो सुनो…
ठीक है दीदी हमाई नजर में एक छोरा है … उमर 25 साल होगी… ज्यादा बड़ा ना है …. बात करती हूँ…..
निम्मी की मौसी रानी बोली….
इधर राजू स्कूल पढ़ने आया है … निम्मी के घर के बगल में रहने वाली उसकी ताई की लड़की राजू को बताती है …
राजू पता है निम्मी का ब्याह है अगले महीने … शहर से हो रहा… अब यहां नहीं आयेगी रे तेरी सहेली निम्मी ….
निम्मी तो पढ़ने गयी थी ना अपनी रानी मौसी के यहां…. तो ब्याह कैसे…. निम्मी तो अभी बहुत छोटी है ….
यह बात सुन राजू बेचैन हो जाता है …. वो सर जी से ये बात बताता है …….
सर बोलते है चल राजू मेरे साथ शहर ….
आगे की कहानी कल…. तब तक के लिए जय संतोषी माँ
अगला भाग
एक प्यार ऐसा भी …(भाग – 9) – मीनाक्षी सिंह : Moral Stories in Hindi
मीनाक्षी सिंह की कलम से
आगरा