अमन और रश्मि के विवाह को 3 साल बीत गए थे,,
पर अमन की माँ ने कभी दिल से नहीं अपनाया था रश्मि को ,,उनको यही डर लगा रहता कि कहीं बेटा मुहँ ना मोड़ ले,,,अमन ने बहुत बार माँ को समझाना चाहा पर सीमा जी जैसे कुछ सुनना ही नहीं चाहती थी,,,
रश्मि को मायके भेजने की पक्षधर भी नहीं थी,,रश्मि को समझ नहीं आता सीमा जी का स्वभाव उससे ही कड़क क्यूँ है उसके लिए ही जमाने भर की बंदिशें क्यूँ है,,
बार बार प्रयत्न करने के बाद भी वो अपनी सास का दिल नहीं जीत पा रही थी,
बस एक खुशनुमा बात ये थी कि उसकी नन्द रागिनी बहुत समझदार थी और उससे बहुत प्यार भी करती थी ।
रश्मि के मायके से बुलावा आया था उसके मामा के बेटे की शादी थी,,इसीलिए सीमा जी ने उसको भेजने की हामी भर ली थी 1 हफ्ते के लिए।
अमन अपनी माँ के कमरे मे आया और बोला “माँ रश्मि मायके जा रही है तो खर्च करने के लिए उसको कुछ रुपये दे दो,”
सीमा जी सुनते ही बिफर गयी “कहां से रुपये दूँ मेरे पास कोई पैसे नहीं है “
अमन ने कहा “माँ मैं अपनी सारी सैलरी आपको ही लाकर देता हूं,,,मेरे पास होते तो मैं ही दे देता “
सीमा जी ने कहा “कपड़े बनवा लिए गिफ्ट खरीद लिये अब पैसों की क्या जरूरत “
अमन ने एक बार फिर समझाते हुए कहा “माँ वो मायके जा रही है विवाह मे शामिल होने,,हो सकता है कुछ जरूरत पड़ जाए “
सीमा जी ने हाथ झाड़ते हुए बोल दिया ” मेरे पास नहीं है “
दरवाजे की ओट से रश्मि सब बाते सुन रही थी अपने पति की मिन्नते और सास का बिफरना नहीं देख पा रही थी पर बीच मे कुछ बोलना उसको खुद को सही नहीं लग रहा था,,बेबसी मे उसकी आँखों से आंसू निकल पड़े और उसके गाल भिगोते चले गए,,
तभी बाहर ऑटो रुकने की आवाज आयी जिसे सुनकर अमन बाहर आया और अपनी बहन रागिनी को देखकर बहुत खुश हुआ गले लगाते हुए बोला “आप तो अगले हफ्ते आने वाली थी,,इसी हफ्ते कैसे आ गयी “
रागिनी अंदर आते हुए बोली ” मेरी नन्द आ रही है अगले हफ्ते इसीलिए मैं इसी हफ्ते चली आयी “
सीमा जी ने आगे बढ़कर प्यार से सिर पर हाथ फेरते हुए कहा ” अहा मेरी गुड़िया,,मेरा अकेलापन दूर करने आ गयी “
रागिनी ने कहा “माँ आप अकेली कहां हो,,मेरी भाभी है ना आपके साथ “
सीमा जी ने कहा “हाँ,,है तो, पर….”
“पर, वो एक हफ्ते के लिए मायके जा रही है” अमन ने बात पूरी करते हुए कहा
“पर मेरी भाभी है कहां ” रागिनी ने कहा
“मैं यहां हूं दीदी ” रश्मि पानी के ग्लास की ट्रे लाते हुए बोली।
रागिनी ने गौर से रश्मि का चेहरा देखा आंसुओ की सूखी रेखा नजर आ रही थी जो आँखों से लेकर गालों तक बिखरी पड़ी थी , उसके हाथ से ट्रे लेकर साइड मे रखी और उससे पूछा ” क्या हुआ भाभी, आप रो रही थी,,,माँ, अमन भाभी क्यूँ रो रही थी “
सीमा जी ने कहा “मायके मे खर्च करने को पैसे चाहिए अमन की जेब मे ढेला नहीं इसीलिए टेसुए बहा रही है “
“पर अमन की सैलरी तो अच्छी खासी है फिर ——“
अमन बोला “मैं तो पहले की तरह सारी सैलरी अब भी माँ को ही दे देता हूं अपने खर्चे के लिए भी पैसे माँ से ही लेता हूं “
अपनी माँ के व्यवहार को रागिनी जानती थी इसीलिए एक पल मे सारा माजरा समझ गयी
“ये तुम गलत करते हो भाई , तुम्हारे पैसों पर तुम्हारी पत्नि का भी उतना ही हक है जितना तुम्हारे जीजाजी की सैलरी पर तुम्हारी दीदी का, “
“पर दी रश्मि को पैसों की क्या जरूरत वो क्या करेगी “अमन हैरान सा होते हुए बोला
रागिनी ने समझाया ” भाई,, पत्नी पति के लिए धनलक्ष्मी होती है जितना तुम उसको दोगे जरूरत पड़ने पर कैसे भी करके दुगुना करके वापस देगी “
अमन और उसकी माँ एक दूसरे का चेहरा देख रहे थे
रागिनी ने बात आगे करते हुए कहा ” तुम माँ को पैसे देते हो तो उसमे से कुछ पैसे निकाल कर रश्मि को पहले दे दिया करो”
“और रश्मि ये पकड़ो पैसे,,खूब खुशी से खर्च करना और विवाह का पूरे मन से आनन्द लेना “
“नहीं दीदी मैं ये कैसे ले सकती हूं “रश्मि ने हाथ पीछे करते हुए कहा
रागिनी ने पैसे उसके हाथ मे दिए ” उधार हैं, पर लौटाने की कोई जल्दबाज़ी नहीं है,,जब अमन तुम्हें पैसे देने लगे वापस कर देना ” रागिनी मुस्कराते हुए बोली ।
रश्मि ने आगे बढ़कर रागिनी को गले लगा लिया,,,,
इतिश्री