पिछले सप्ताह ही सुबह सुबह अहमदाबाद से जगदीश काका का फोन आ गया।एक अनहोनी आशंका से मैं एकदम घबरा सा गया।85 वर्षीय जगदीश काका वृद्धाश्रम में रह रहे हैं, उनका एकलौता बेटा मुन्ना नौकरी करने अमेरिका चला गया।उसके जाने के दो माह बाद ही जगदीश काका की पत्नी का स्वर्गवास हो गया,मुन्ना नही आ पाया।अकेलेपन की मार से बचने को जगदीश काका अपने बँगले में ताला लगाकर वृद्धाश्रम में आ रहने लगे।यहां उनका जुड़ाव 73 वर्षीय रजनीश से हो गया,जो उनका पूरा ध्यान रखता था।
जगदीश काका फोन पर रोते हुए बता रहे थे कि भाई आज रजनीश भी साथ छोड़ गया।पता नही मुझे मौत कब आयेगी?उनके अंतर्नाद से मैं अंदर तक हिल गया।मैंने बस इतना कहा, काका मैं कल सुबह ही अहमदाबाद आ रहा हूँ,केवल आपके पास।आपके बँगले में ही आपके साथ तीन चार दिन रहना है।सुनते ही उनको दिलासा मिली।
मैं जगदीश काका के पास चार दिन रुका।उनकी बातें खत्म ही नही हो रही थी।मैं दो वर्षों बाद मिल रहा था।इस बीच की कोई भी बात या घटना वो छोड़ना नही चाहते थे,सब बातें मुझे शेयर कर रहे थे।मैं उनके अंदर के दुःख और अकेलेपन के अहसास को खूब समझ रहा था।इसलिए इन चार दिनों में मैंने केवल उन्हें ही बोलने दिया।मैं चाहता था उनका पूरा गुबार निकल जाये।
चार दिन भी गुजर गये, मेरे जाने का दिन आ गया,मैं अपना सामान समेटने में लगा ,जगदीश काका उस दिन सुबह से ही उदास थे।मैं उनकी उदासी का कारण समझ रहा था,पर मैं भी कब तक रुक सकता था।
जाते जाते मैंने जगदीश काका को एक झूठी दिलासा दे दी,असल मे मुझे कुछ सूझ ही नही रहा था।मैंने उनसे कह दिया कि काका मेरे पास मुन्ना का फोन आया था, उसने बताने को मना किया था,पर मैं अपने को रोक नही पा रहा हूं।जगदीश काका अचंबित से हो मेरे पास खिसक आये मेरा हाथ पकड़ बोले क्या कहा तुमने मुन्ना का फोन आया था,क्या कह रहा था,कैसा है वो,उसे कोई परेशानी तो नही?
मैं देख रहा था एक बूढ़े बाप को जिसका बेटा बुढ़ापे में उसे मरने को छोड़ गया हो,और बाप उसके आये फोन की बात सुनकर ही उसके परेशानी को पूछने लगे।
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मैंने कहा काका मुन्ना आपके पास आने वाला है।आपको सरप्राइज देने।मुन्ना कह रहा था अंकल मैं अपने पापा से पांव पकड़ कर माफी मांगूगा,उनके पास ही रहूँगा,अंकल पापा मुझे माफ़ तो कर देंगे ना?
मैंने मुन्ना को आश्वस्त कर दिया है,बेटा जगदीश काका तो तुम्हारी ही बाट जोह रहे है।आ जाओ, बेटा अपने बाप के पास।
जगदीश की भाव भंगिमा ही बदल गयी।मैं तो वापस पुणे आ गया।मुझे नही पता इस झूठी उम्मीद जगदीश काका को देने का मैंने पाप किया है या नही?पर मुझे उस समय कुछ सूझा ही नहीं।
अनमयस्क हो पुणे वापस आ मैंने मुन्ना को व्हाट्सएप पर एक चिठ्ठी अवश्य लिख कर भेज दी-
मुन्ना-
मैं तुम्हारे लिये अनजान हूँ, मुझे तुम्हारा असली नाम भी नही मालूम।जगदीश काका तुम्हे हमेशा मुन्ना ही कहते है,सो इसी नाम से तुम्हे संबोधित कर रहा हूँ।
बेटा, जगदीश काका पूरी तरह टूट चुके है,कहते कुछ नही पर उनके मन की भाषा को मैं समझता हूं।उनकी सांस बस तुम्हें देखने को ही अटकी पड़ी हैं।आ जाओ मुन्ना एक बार आ जाओ अपने पप्पा के पास फिर शायद वो चैन से मर सके।
मुझे नही पता मुन्ना लौटेगा या नही,मैं कुछ और कर भी नही सकता था।मैंने तो बस एक उम्मीद की किरण जगदीश काका को दे दी, वो उन्हें प्रकाशित कर पायेगी या नही,ईश्वर जाने।
#उम्मीद
बालेश्वर गुप्ता
पुणे(महाराष्ट्र)
मौलिक एवं अप्रकाशित