एक ही डोर में पिरे दो मोती – स्नेह ज्योति : Moral stories in hindi

Moral stories in hindi : बारिश का मौसम था ,ख़ुशी का मौक़ा था इसलिए लक्ष्य मिठाई के साथ पकोड़े लिए घर जा रहा था । अगर ख़ुशी को मापने का कोई पैमाना होता तो वो आज छलक रहा होता । क्योंकि आज लक्ष्य को आख़िर कार एक अच्छें पब्लिकेशन हाउस में काम करने का मौक़ा मिल ही गया ।

लेकिन हमेशा से ऐसा नही था…लक्ष्य ने इस पल का ना जाने कितना इंतज़ार किया था । ना जाने उसने कितनी ही कहानियाँ लिख डाली ,पर एक अच्छा मंच ना मिलने के कारण उसकी कहानियो को वो मक़ाम नही मिला जो मिलना चाहिए था ।

इसी कारण उसके पापा हमेशा उसकी उपेक्षा ही करते रहते थे । ये भी कोई काम है जिसमें कोई नाम नही , कोई पहचान नही । आख़िर तुमने लिखा ही क्या है ?? बस चंद जासूसी कहानियाँ “। उन्हीं कहानियों के पर्चों पे लोग भेल खा हाथ पूँछ फेंक देते हैं । जिन्हें कोई पढ़ने की चेष्टा भी नहीं करता । ये सुन ! लक्ष्य हताशा से भरे स्वर में बोला …..

पापा ! “आप पढ़िए तो तब आपको पता चलेगा कि एक कहानी को लिखने में कितने किरदारों को एक माला के रूप में पिरो के एक साथ चलना होता हैं” ।

मैंने एक कहानी पढ़ी थी तुम्हारी , पर मुझे तो वो इतनी खास नही लगी । माफ करना बेटा ! “अगर तुम्हें मेरी बात बुरी लगी हो” ! अगर तुम्हारी कहानियाँ इतनी ही अच्छी होती तो आज तुम यहाँ नहीं होते ! शर्मा जी के बेटे को देखो वो आज अमेरिका में एक अच्छी लगी बंधी नौकरी कर रहा है ।

और तुम कितने सालो से बस पेजों पर कलम घिस-घिस सब बर्बाद ही कर रहे हो । माँ देखो पापा कैसी बातें कर रहे हैं ?? मुझे एक मौक़ा और दे ! मैं इस बार आपको मायूस नही करूँगा । ठीक है देखता हूँ …..अब तक तो कोई चमत्कार हुआ नही ……

एक वो दिन था और एक आज का दिन जब लक्ष्य अपने पापा की अपेक्षाओं पे खरा उतरने की कोशिश कर रहा हैं । यही सब सोचते हुए जब वो मिठाई और पकोड़े ले घर पहुँचा तो , सबसे पहले उसने अपने पापा का मुँह मीठा किया और बताया की पापा मुझे एक पब्लिकेशन हाउस के साथ काम करने का मौक़ा मिला हैं ।

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*दावत* – किरण केशरे 

अब आप देखना मेरी सोच और मेरी कलम क्या क्या कमाल करती है । बहुत बहुत मुबारक हो बेटा ! यें बोल वो अंदर चले गए , शायद वो उसकी अपेक्षाओं को भी समझने लगे थे ।

अगले दिन लक्ष्य स्टोरी विज़न नामक पब्लिकेशन हाउस के ऑफ़िस में गया । जहाँ कहानी और कविता दोनो ही प्रकाशित की जाती है । यहाँ सभी नए लेखकों को अपनी सोच को सही साबित करने का सामान अवसर दिया जाता हैं ।

ऐसा नही की लक्ष्य बहुत ही प्रसिद्ध लेखक था । उसने बहुत मेहनत कर ऑफ़िस में अपनी एक पहचान बनायी । लेकिन आज भी वो जब हताश होता तो अंदर ही अंदर अपने सपनो अपनी कहानियो को पेपर प्लेन की तरह हवा में उड़ता हुआ महसूस करता ।

इसी झुँझलाहट में जब वो अपने साथ काम करने वाले लेखकों के प्रति ईर्षा से ग्रस्त होने लगता । तो तब उसे अपने पापा की एक बात याद आती “वो हमेशा कहते थे कि अगर कुछ पाना है तो ईर्षा का त्याग कर ,धैर्य को अपनाओ , तभी तुम्हारी एक अलग पहचान होगी” ।

बहुत अथक प्रयास कर आख़िर उसे उसके सवालों के जवाब मिल ही गए , या ये कह सकते है कि वो जान गया कि अपनी सोच अपने लेखन से पाठकों के जीवन में कैसे तड़का मार अपनी रेसिपी को पास कराया जाता हैं ।

ऐसा ही एक चमत्कार हुआ और उसकी प्रकाशित कहानी को पाठकों से इतनी प्रशंसा मिली कि उसकी कहानी एक नए आयाम पर पहुँच गयी ।इस लिए आज वो इस कम्पनी के एक सम्मानित लेखकों में से एक हैं ।

इसलिए दोस्तों कभी निराशा को पास मत आने दो क्योंकि अपेक्षा और उपेक्षा एक ही सिक्के के दो पहलू हैं । कभी एक ऊपर तो कभी दूसरा लेकिन मौका दोनो को मिलता है ।

#उपेक्षा

स्वरचित रचना

स्नेह ज्योति

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