सुबह से ही सुधा की मां कांता जी बहुत खुश थी कि आज उनके कलेजे की कौर वापस घर आयेगी, वो सुबह से ही पकवान बनाने में जुटी हुई थी। उसकी पसंद का सारा खाना बना दिया, और पलकें बिछाकर उसका इंतजार करने लगी।
अभी तक भी नहीं आई वो बरामदे में बेचैनी से चहलकदमी करने लगी, सवेरे ग्यारह बजने को हैं, उसने तो दस बजे का बोला था, फोन भी लगा रही थी, पर फोन नहीं लगा, अब उनकी चिंता बढ़ने लगी, वो उदास हो गई, तभी प्यारी सी आवाज उनके दिल में उतर गई, ‘मां, कहां हो? मै आ गई हूं।
उन्होंने जैसे ही पीछे मुड़कर देखा, उसने उन्हें बांहों में कस लिया, बेटी के सिर पर हाथ फेरकर वो उसे चूमने लगी और आशीर्वाद दिया, सातों सुख मिले, दूधो नहाए पूतो फले और उसकी बलाएं लेने लगी, फिर उनकी नजरें जंवाई बाबू को ढूंढने लगी, दीपक जी नहीं आये ?
मां, उनके साथ ही तो आई हूं, वो बाहर आंगन में अम्मा के पास बैठे हैं, और वो उन्हें खींचकर बाहर ले गई, दीपक ने उनके पांव छुए और आशीर्वाद लिया।
सुधा के चेहरे की चमक बता रही थी, उसे बहुत ही अच्छा ससुराल मिला है, अभी तीन दिन पहले ही तो मेहता जी ने अपनी लाडली को विदा किया था, उसके जाते ही घर सूना-सूना हो गया, लेकिन एक उम्मीद थी कि वो पगफेरे पर आयेगी ।
लाल साड़ी, सोने के जेवर और सिंदूर, चूड़ियों से सजी उनकी बेटी बहुत ही सुन्दर लग रही थी, वो फटाफट रसोई में गई और राई नमक ले आई, नजर ना लगे मेरी लाडली को किसी की और नजर उतारने लगी।
शादी में से सब मेहमान जा चुके थे, केवल सुधा की बुआ रमा जी रूकी थी। रमा जी की तीन बेटियां थीं, और वो इसी दुख से दुखी रहती थी कि तीन बेटियों की शादी करनी होगी और इसे करना बड़ा भारी काम होगा, बड़ा खर्चा होगा, वो अकसर कांता जी से यही कहती थी कि ‘भाभी तुम बड़ी किस्मतवाली हो जो एक ही बेटी है, हमारी सुधा भी किस्मत वाली है, वरना तीन बहनें होती तो इसकी शादी इतने धूमधाम से नहीं होती, आखिर सारा धन एक पर तो नहीं लुटा देते।
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कांता जी को अपनी ननद की यही बातें अच्छी नहीं लगती थी, उनका मानना था कि हर लड़की अपना भाग्य लेकर आती है, जरूरी नहीं है कि जिनके एक बेटी हो वो किस्मत वाली हो और जिनके एक से ज्यादा बेटी हो वो भाग्यहीन हो, सबको अपनी क़िस्मत से ही मिलता है।
कांता जी रसोई में गई और भोजन परोसने की तैयारी करने लगी, सुधा की पसंद का बना था तो वो चटखारे लेकर खा रही थी, वो अपनी बेटी को निहार रही थी, आखिर कितनी सी देर के लिए आई है, अभी शाम को चली जायेगी, फिर मां के हाथ के खाने के लिए तरस ही जायेगी।
खातिरदारी में दोपहर हो गई, सुधा से मिलने पडौस की सहेलियां भी आ गई, आस-पास की चाची, काकी भी आशीर्वाद दे गई, शाम होते ही उसके जाने का समय हो गया, अब कांता जी का दिल टूटने लगा, उन्होंने भारी मन से बेटी को विदाई दी। सुधा के जाते ही फूट-फूटकर रोने लगी तो रमा जी ने आकर गले लगाया, ‘भाभी बेटियां तो होती ही जाने के लिए है, तुमने तो एक को विदा किया है, मुझे तो तीन को विदा करना है, मेरा सोचो क्या हाल होगा?
कांता जी थोड़ी शांत हुई और अपने काम पर लग गई, रमा जी थोड़े दिन वहीं पर रूक गई ताकि भाभी का मन लगा रहेगा।
अगले दिन कांता जी मेहता जी से बोली, ‘आज सुधा से फोन पर बात नहीं हुई, मै सुबह से फोन लगा रही हूं, दीपक जी भी फोन बार-बार काट रहे हैं, मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा है,।”
अरे! तुम बेकार ही चिंता करती हो, अभी नई-नई शादी हुई है, जरूरी नहीं है कि रोज ही फोन पर बात हो, अब उसकी शादी हो गई है, नया घर, नये लोगों के साथ रहेगी तो उन्हें समय भी देना होगा। मेहता जी ने अपनी पत्नी को समझाया।
कांता जी ने ठंडी आहें भरी और अपने काम पर लग गई, दिन भर रमा जी साथ रहती तो उनका मन लगा रहता था, अगले दिन सुबह-सुबह सुधा का फोन आया, वो भरॉई आवाज में बोली, ‘पापा ये लोग कार की मांग कर रहे हैं, दीपक मुझसे ढंग से बात भी नहीं कर रहे हैं, यहां सभी मुझे प्रताड़ित कर रहे हैं, कह रहे हैं कि एक ही बेटी है, कम से कम कार तो देनी चाहिए, अपने घर से कार भी नहीं लेकर आई, हमने तो एक ही बेटी है, यही देखकर शादी की थी।’
ये सुनकर मेहता जी के कान सुन्न रह गये, उन्होंने तो अच्छे से देखभाल कर रिश्ता किया था, दीपक की खुद की इतनी अच्छी नौकरी थी, कार की बात तो उन्होंने यूं ही कही थी, पर उसके ससुराल वाले इतने गंभीर हो जायेंगे, ये सोचा नहीं था। फिर अभी इतना दहेज तो पहले ही दिया है, सुधा के ससुराल वालों को देने में कुछ भी कमी नहीं रखी थी, अब तो बेटी ब्याह दी, ये ही मांग वो शादी के पहले करते या शादी के समय करते तो वो रिश्ता तोड़ देते।
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ये सब सुनकर कांता जी भी भौंचक्की रह गई, सुधा के ससुराल वाले बहुत पैसे वाले थे, उन्होंने उसे पसंद करके आगे होकर रिश्ता भेजा था, अच्छा पैसा और लडका देखकर उन्होंने हां कर दी, काश! लडके और उसके घरवालों की थोडी जांच-पड़ताल कर लेते।
मेहता जी ने समय देखा और कांता जी को लेकर सुधा के ससुराल रवाना हो गये, वहां पर सुधा बेबस खड़ी थी।
मेहता जी का बेटी का हाल देखकर दिल भर आया, जंवाई जी आप तो पढ़े-लिखे हैं, आप भी दहेज की मांग कर रहे हो, हमने तो पहले ही इतना दिया है, हमें आपसे ये उम्मीद नहीं थी’।
तभी दीपक चिढ़ गया, एक तो आप बिना बुलाए हमारे घर आये हो, और ऊपर से इतना ज्ञान दे रहे हो, एक ही बेटी है तो आप खुद समझदार हो, आपको अपनी बेटी की जरूरत का ध्यान रखना चाहिए, मुझे तो शर्म आती है कि मुझे आपसे कार मांगनी पड़ रही है, अब मै दोस्तों और रिश्तेदारों को क्या मुंह दिखाऊंगा कि मेरे ससुर ने एक कार भी नहीं दी, मुझे लगा आप पगफेरे पर कार उपहार में देंगे, पर आपने तो हमें बहुत निराश किया है।’
अपने पापा का इस तरह से अपमान सुधा को बर्दाश्त नहीं हुआ, वो अपने कमरे में गई, अपना सभी सामान पैक किया और बोली, ‘पापा चलिए, अपने घर चलते हैं, मुझे इस इंसान के साथ नहीं रहना है, ससुराल में सास-ससुर लालची होते हैं, पर यहां तो पति ही लालची हैं।’
‘तुम ऐसे कैसे जा सकती हो? समाज को क्या मुंह दिखाओगी? अभी शादी को दो दिन ही हुए हैं, और अब तुम इस घर की हो चुकी हो, दीपक ने गुरूर से कहा।
सुधा भी गुस्से से बोली, ‘जो मुंह समाज को तुम दिखाओगे, वो ही मै भी दिखा दूंगी, मै ऐसे लालची पति के साथ नहीं रह सकती हूं, काश! तुम अपना ये रूप शादी के पहले दिखाते तो मै तुमसे शादी ही नहीं करती, कार तो तुम्हें कभी नहीं मिलेगी, और तलाक के पेपर जल्द ही मिल जायेंगे, मै भी पढ़ी-लिखी हूं, तुम्हारी ये प्रताड़ना कभी नहीं सहूंगी, अपने पैरों पर खड़े होकर, किसी अच्छे इंसान से दोबारा शादी कर लूंगी, मेहता जी और कांता जी भारी मन से अपनी बेटी को वापस ले आयें।
घर पहुंचकर वो रमा जी के गले लगकर रो पड़ी, जीजी जरूरी नहीं है कि एक बेटी हो वो किस्मत वाली हो, आपके चाहें तीन बेटियां हैं, पर सब अपना भाग्य लेकर आती है, दुःख एक बेटी वाले पर भी पड़ता है, और जिसके घर में एक से ज्यादा बेटियां होती है, वो भी सुख पाती है, आप अपनी बेटियों को इतना मत कोसा कीजिए, उन्हें प्यार से रखिए और उनकी अच्छी किस्मत की प्रार्थना कीजिए।
कांता जी रो रही थी और रमा जी शर्मिंदा हो रही थी कि क्या पता सुधा के भाग्य को उनकी ही नजर लग गई, वो ही कहती रहती थी कि सुधा एक ही बेटी है, बड़ी किस्मतवाली है, वो सामने बैठी सुधा से नजरें नहीं मिला पाई।
धन्यवाद
अर्चना खंडेलवाल
मौलिक अप्रकाशित रचना
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