मीरा अपने माता-पिता की एकलौती संतान थी, जो हमेशा उसे प्यार और समर्थन देते रहे। उसके पिता ने अपनी मेहनत से उसे अच्छी शिक्षा दिलाई, और मीरा ने एक उत्कृष्ट नौकरी हासिल की। उसे अपने परिवार का गर्व था, और वे भी उसकी सफलता पर खुश थे। जब मीरा की शादी रोनित से हुई, तो उसने सोचा कि वह अपने सपनों को आगे बढ़ा सकती है, लेकिन धीरे-धीरे उसे एहसास हुआ कि उसकी शादी में सब कुछ वैसा नहीं था, जैसा उसने सोचा था।
शादी के बाद, मीरा ने रोनित से कहा कि वह काम करना चाहती है। लेकिन रोनित और उसके परिवार ने इसका विरोध किया। उन्होंने बताया कि उनके परिवार की बहु को घर पर रहना चाहिए। मीरा को यह बात बहुत निराश करती थी, लेकिन उसने कोशिश की कि रोनित को मनाए। उसने कहा कि नौकरी करने से न केवल उसकी पहचान बनी रहेगी, बल्कि वह आर्थिक रूप से भी स्वतंत्र रहेगी। लेकिन रोनित अपने विचार पर अड़ा रहा।
मीरा ने फिर भी हार नहीं मानी। उसने रोनित से कहा कि उसकी नौकरी उसके लिए कितनी महत्वपूर्ण है। वह अपने माता-पिता की इकलौती बेटी है और उन्हें भी उसकी जरूरत है। लेकिन रोनित का कहना था कि घर का काम करना अधिक महत्वपूर्ण है। वह उसे अपने माता-पिता से मिलने भी नहीं देता था, यह कहकर कि ऐसा करने से घर का ध्यान नहीं रखा जा सकेगा।
एक दिन, मीरा के पिता की तबियत अचानक बिगड़ गई। उसने रोनित से कहा कि वह अपने माता-पिता के पास जाना चाहती है। रोनित ने तुनक कर कहा, “अगर तुम अपने माता-पिता के पास जाना चाहती हो, तो तुमने शादी क्यों की? अगर तुम वहाँ गई, तो यहाँ मत आना।” मीरा को यह सुनकर गहरी निराशा हुई।
उसे अपने माता-पिता का ध्यान रखना जरूरी लगा। उसने रोनित को जवाब दिया, “मैं आज भी उनकी बेटी हूँ। मेरे माता-पिता ने मेरी शादी की है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि मैं उन्हें भूल जाऊं।” मीरा ने रोनित की सोच को नकारते हुए कहा कि वह उसके साथ नहीं रह सकती। इस पर उसने घर छोड़ने का निर्णय लिया।
मीरा अपने माता-पिता के पास चली गई। वहां, उसने अपने पिता की देखभाल की और उन्हें सांत्वना दी। कुछ दिनों बाद, मीरा ने तलाक़ लेने का फैसला किया। यह उसके लिए कठिन था, लेकिन उसने खुद को आज़ाद करने का निर्णय लिया।
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तलाक़ के बाद, मीरा ने फिर से नौकरी की तलाश शुरू की। उसने अपने करियर पर ध्यान केंद्रित किया और आत्मनिर्भर बन गई। उसे अपने काम में आनंद मिला और धीरे-धीरे उसने अपनी पहचान को फिर से पाया। मीरा ने अपनी ज़िंदगी को एक नई दिशा दी। उसने सीखा कि स्वतंत्रता और आत्म-सम्मान सबसे महत्वपूर्ण हैं।
आज, मीरा को एक घुटन भरे रिश्ते से आज़ादी मिल गई थी। वह अपने माता-पिता के साथ और अपने सपनों का पीछा करते हुए अपनी ज़िंदगी को खुशी-खुशी जी रही थी। मीरा ने अपनी पहचान को फिर से खोज लिया, और अब वह अपनी ज़िंदगी में नई संभावनाओं के लिए तैयार थी।
लेखिका : सांची सोनी