एक फैसला आत्मसम्मान के लिए – डॉ ममता सैनी : Moral Stories in Hindi

सरकारी अस्पताल के धुंधले गलियारों में, राजीव बेचैनी से बैठा हुआ था, अपने फोन को कसकर पकड़े हुए। उस सुबह ही खबर आई थी—उसके पिता, जो उसके लिए सब कुछ छोड़ चुके थे, को लकवा मार गया था। मुंबई में एक प्रतिष्ठित व्यवसायी बनने के बाद, राजीव ने पिछले पांच वर्षों में अपने माता-पिता को नहीं देखा था।

पिछले कुछ साल उसके लिए आर्थिक रूप से बहुत अच्छे रहे थे। उसने अपनी मेहनत से एक साम्राज्य खड़ा किया था, कई व्यवसायों का मालिक बना, और अपनी पत्नी निशा के साथ एक आलीशान पेंटहाउस में रहता था।

लेकिन सफलता की इस दौड़ में, उसने अपनी जड़ों से दूरी बना ली थी। उसके पिता के फोन कॉल्स को वह अक्सर “मैं बिजी हूँ, बाबा” कहकर टाल देता था। उसकी माँ, सुनीता, ने फोन करना ही बंद कर दिया था, यह समझकर कि उनका बेटा अब उनके लिए समय नहीं निकाल सकता।

अब, जब वह आईसीयू के बाहर इंतजार कर रहा था, तो अपराधबोध उसे अंदर से खाए जा रहा था।

एक नर्स बाहर आई और उसे अंदर आने का इशारा किया। वह दौड़कर गया। उसके पिता, एक कमजोर शरीर और धंसी हुई आँखों के साथ, बिस्तर पर पड़े थे, उनकी साँसें धीमी हो रही थीं। सुनीता उनके पास बैठी थी, उनके झुर्रियों वाले हाथों को थामे हुए।

आत्मसम्मान का निर्णय – डॉ ममता सैनी : Moral Stories in Hindi

जब राजीव अंदर आया, तो उसकी माँ ने उसकी ओर देखा। उनके चेहरे पर न तो गुस्सा था, न ही कोई शिकायत—बस एक गहरी उदासी झलक रही थी।

राजीव अपने पिता के पास बैठा और फुसफुसाया, “बाबा, मैं आ गया।”

उसके पिता ने कांपते हाथों से उसका हाथ पकड़ने की कोशिश की। बहुत मुश्किल से उन्होंने कहा, “तुम आए… आखिरकार।”

राजीव के गले में कुछ अटक गया। वह माफी मांगना चाहता था, यह बताना चाहता था कि वह हमेशा आने की सोचता था, लेकिन ज़िंदगी की व्यस्तताओं ने उसे रोक दिया। लेकिन इससे पहले कि वह कुछ कह पाता, उसके पिता की पकड़ ढीली पड़ गई।

मॉनिटर की बीप धीमी हो गई… और फिर पूरी तरह बंद हो गई।

कमरे में सुनीता की दिल दहला देने वाली चीख गूँज उठी। राजीव स्तब्ध बैठा रहा। वह बहुत देर कर चुका था।

अंतिम संस्कार के बाद, राजीव ने अपनी माँ से मुंबई में उसके साथ रहने के लिए कहा। लेकिन सुनीता ने मना कर दिया।

“मेरा घर यही है, राजीव। मैं यहीं रहूंगी।”

“लेकिन माँ, यहाँ अब तुम्हारे लिए कुछ नहीं बचा है,” उसने विनती की। “आओ हमारे साथ रहो। मैं और निशा तुम्हारा ख्याल रखेंगे।”

सुनीता ने उसे गहरी नजरों से देखा। “क्या सच में रखोगे?”

 निशानी –  अरूण कुमार अविनाश

राजीव झिझक गया। उसने अब तक निशा को इसके बारे में नहीं बताया था। वह जानता था कि उसे यह पसंद नहीं आएगा—वह पहले ही जब उसके माता-पिता मुंबई आते थे, तो नाखुश रहती थी। वह हमेशा कहता था कि पैसे भेज देना ही काफी है।

सुनीता ने उसकी आँखों में उसकी असमंजस देख ली। उन्होंने हल्की मुस्कान के साथ कहा, “अब मुझे एक निर्णय लेना है, राजीव। और इस बार, यह मेरे आत्मसम्मान के लिए होगा।”

वह उसके पास से गुजरती हुई अपने छोटे से घर में चली गई, जहाँ उसने अपनी पूरी ज़िंदगी बिताई थी।

राजीव वहीं खड़ा रह गया, अपनी गलतियों के बोझ तले दबा हुआ। उसे लगा था कि पैसा और सफलता उसकी अनुपस्थिति की भरपाई कर देंगे, लेकिन उसकी माँ ने स्पष्ट कर दिया था—प्रेम का कोई मोल नहीं होता, यह स्नेह और उपस्थिति से ही पूरा होता है।

जैसे ही उसने अपनी कार मोड़ी, पीछे छूटता हुआ घर शीशे में और छोटा होता गया। और पहली बार, राजीव ने महसूस किया कि कुछ दूरियाँ कभी पाटी नहीं जा सकतीं।

डॉ ममता सैनी

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